" 21वीं सदी का इंद्रधनुष "
(बिना अनुमति के रचना न लें ) विविध रंग की कविताएं
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मंगलवार, 29 नवंबर 2011
तुमसे है दुनियाँ
खुशियों की बौछार तुम्हीं हो
उदासी की तलवार तुम्हीं हो
तुम्हीं हो मेरी गंगा -यमुना
हर मौसम का प्यार तुम्ही हो //
तुम प्रकृति के दिलकश नजारे
तुम नभ के हो चाँद-सितारे
तुम्हीं हो मेरी फूल और खुशबू
मुदित मन का आधार तुम्हीं हो //
शनिवार, 26 नवंबर 2011
मुझे काली बीबी नहीं चाहिए
पंडित ने कहा
आप पर शनि की साढ़े सती है
काले घोड़े की नाल की अंगूठी पहने
वास्तु दोष है
काला कुत्ता घर में रखे
काली गाय को रोटी खिलाएं //
साधक ने कहा
मुझे तंत्र-मन्त्र करना है
काली बिल्ली चाहिए //
"माँ काली " भी तो काली ही हैं
और शंकर जी और कृष्ण जी भी
पर मैं ....
काली बीबी क्यों लाऊ //
शुक्रवार, 18 नवंबर 2011
आप बताएं मेरी जाति
मेरी सुबह की शुरुआत
टॉयलेट सफाई से शुरू होती है
मैं डोम बन जाता हूँ
दाढ़ी बनाते समय
मैं नाई बन जाता हूँ //
नहाने से पहले
अपने कपडे धोता हूँ
मैं धोबी बन जाता हूँ //
अपने गाँव में खेती करता हूँ
मैं भूमिहार बन जाता हूँ
अन्याय के विरुद्ध लड़ता हूँ
मैं क्षत्रिय बन जाता हूँ //
जब अपनी थाली धोता हूँ
शुद्र बन जाता हूँ //
मेरे पिता जी ने मुझसे कहा था
तुम ब्रह्माण हो
अब आप ही बताएं
मेरी जाति क्या है ?
शनिवार, 12 नवंबर 2011
मच्छड़
कटीले मच्छड़ , नशीले मच्छड़
क्यों नहीं मरते ये आजकल
चाहे कितना मरो थप्पड़ //
चलते फिरते या बैठे-बैठे
भाषण का ये डंक मारते
अन्धकार की बात निराली
उजाले से भी ,ये नहीं डरते
इनके जैसा न कोई गप्क्कड़
मोटे मच्छड़, पतले मच्छड़//
नहीं डरता इन्हें रसायन
मिल जाते ये हर वातायन
हाथ हिलाते बढ़ते जाते
और सुनते अपना गायन
इनके जैसा न कोई भुलक्कड़ //
गोरे मच्छड़, काले मच्छड़....
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