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बुधवार, 22 फ़रवरी 2012
पर्दाफाश
कुहू-कुहू सुन झूमे मन
जब बसंत है आता
लोभ का चादर जब मैं ओढू
मेरा विवेक मर जाता //
आंच आता जब मेरे स्वार्थ पर
मैं तिल का ताड़ बनाता
बात -बात पर मित्रों का मैं
निन्दा -रस पान कराता //
रुपयों -पैसों की खातिर मैं
छल की तलवार चलाता
हार प्रतीत होने पर
तुरंत ही शीश नवाता //
माँ -पिता भी गुरु तुल्य है
इस बात को मैंने झुठलाया
आत्मा-शांति करने उनका
'गया ' में पिंड -दान करवाता //
जब भी आगंतुक आता
मीठी बातों की छौक लगाता
इज्जत ढकने को खातिर
मैं झूठ का लेप लगाता //
जब देखू कोई नार सुंदरी
मैं मंद-मंद मुस्काता
शादी का प्रलोभन दे मैं
नित नए-नए रास रचाता //
मेरी बातों में न दम है
न किये गए पापों का गम है
अपने कुकृत्यों को धोने
मैं गंगा रोज नहाता //
मुह में राम ,हाथ में छुरी
यह निति अब मैं अपनाता
नेता और पुलिस देखकर
अब नहीं कभी घबराता //
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मेरी बातों में न दम है
जवाब देंहटाएंन किये गए पापों का गम है
अपने कुकृत्यों को धोने
मैं गंगा रोज नहाता //
....वर्तमान हालात और मनोवृति का बहुत सटीक चित्रण...
jabardast pardafaash hai.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,बबन जी,लोगों के मनोवृति अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन रचना./
जवाब देंहटाएंMY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
मुह में राम ,हाथ में छुरी
जवाब देंहटाएंयह निति अब मैं अपनाता... sach kaha aapne .. aise hi hain aaj ke halaat.. bahut sundar...
जब भी आगंतुक आता
जवाब देंहटाएंमीठी बातों की छौक लगाता
इज्जत ढकने को खातिर
मैं झूठ का लेप लगाता //
... ati uttam...
जब देखू कोई नार सुंदरी
जवाब देंहटाएंमैं मंद-मंद मुस्काता
शादी का प्रलोभन दे मैं
नित नए-नए रास रचाता //
... SUCH ME SIR JEE... PURUSH MANSIKTA TO YAHI HAI AAJKAL
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
waah bahut badiya prastuti.............badhai
जवाब देंहटाएंbahut sundar ! khud ko pahachanana bhi badi samjhdari ka kam hai ...aur aapaki paktian sabko khud se jodati hai ....
जवाब देंहटाएंDr. ratnesh Tripathi
मुह में राम ,हाथ में छुरी
जवाब देंहटाएंयह निति अब मैं अपनाता
नेता और पुलिस देखकर
अब नहीं कभी घबराता // Good one ! keep writing . u'll go a long way... ...
सटीक...बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya sir your poem is . is . is ... no word for says.
जवाब देंहटाएंमाँ -पिता भी गुरु तुल्य है
हटाएंइस बात को मैंने झुठलाया
आत्मा-शांति करने उनका
'गया ' में पिंड -दान करवाता
बहुत ही सटीक प्रहार है समाज पर व् आज के इंसान पर |
आज के हालात पर सटीक
जवाब देंहटाएंमेरी बातों में न दम है
जवाब देंहटाएंन किये गए पापों का गम है
अपने कुकृत्यों को धोने
मैं गंगा रोज नहाता //
bahut khub aap ka samast rachnaye lajawab hota hai sir aur yah rachana to bahut hi utkrisht shreni ka hai sir,sadhubaad.
vaah !!!! bahut khub.
जवाब देंहटाएंजय जय श्री राम !!!!अति सुन्दर ..वर्तमान स्थिति का बहुत सुन्दर विवेचन ....
जवाब देंहटाएंBaban ji... aap ki rachanaa kahin na kahin dil ko chhoo kar aage nikal jati hai... roj jo dekhane mein milta hai usi ko kalam band karne mein aapko jo maharathh haasil hai wo asaamaanya hai... Bahut Bahut Saadhuwaad
जवाब देंहटाएंपर्दा फाश तक पहुँचते पहुँचते ज़िन्दगी का गणित आप हमें भी सिखा गए .औसत एक भ्रामक अवधारणा है जिसका सम्बन्ध किसी भी चीज़ से नहीं होता है .
जवाब देंहटाएंअब क्या कहूँ .........बस, समझ लीजिये, भाई !
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा............!!