उर का संगम पाकर
मस्त हुई तेरी ओढ़नियाँ
मेरा आलिंगन पाकर
बज उती तेरी पैजनियाँ //
तेरी आँखों में लगकर
मस्त हुआ ये काजल
उड़ता गेसू देख तुम्हारा
मस्त हुआ ये बादल //
तेरे माथे में सजकर
मस्त हुआ ये कुमकुम
कुछ तो बोलो गोरी
क्यों बैठी हो गुम-शुम //
तेरे कानों को चूमकर
मस्त हुई ये बाली
अपना लो प्रीतम मुझको
कर दुगां तेरी रखवाली //
बहुत सुंदर रचना,......
जवाब देंहटाएंतेरी आँखों में लगकर
मस्त हुआ ये काजल
उड़ता गेसू देख तुम्हारा
मस्त हुआ ये बादल //
MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअइसन बुझाता के होरी के मस्ती अबहियों बड़ले बा | हई फोटोवा कहवाँ से कबड़ले बाड़ हो मरदे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 19-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
तेरे कानों को चूमकर
जवाब देंहटाएंमस्त हुई ये बाली
अपना लो प्रीतम मुझको
कर दुगां तेरी रखवाली //
GREAT LINES SIR JEE
फ़ोटो भी अच्छी है
जवाब देंहटाएंश्रृंगार को नए आयाम देती रचना .
जवाब देंहटाएं" हा हुसैन हम न हुए" ;))) बहुत खूब बब्बन जी :)
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी है,
जवाब देंहटाएंपर छायाकृति का चुनाव बिल्कुल ग़लत;
ना तो ओढ़नियाँ है और न ही पैजनियाँ.
ना तो कुमकुम, न ये गुम-शुम.
आपकी शिकायत सही है
हटाएंदयानंद पांडेय जी का नोवेल " लोक कवि अब गाते नहीं" पढ़ा कुछ दिन पहले
हटाएंउसमे लोक कवि जो पहले बिरहा गाते थे, बाद में आरकेस्ट्रा ग्रूप बना लेते है, जिसमें लड़किया नाचती हैं. तो लोग लड़कियों का नाच देखने आने लगे पैसा भी बहुत आने लगा, पर लोगों को लोक कवि का बिरहा नहीं अब लड़कियों का नाच अच्छा लगने लगा था.
कहीं ऐसा ना हो की यहाँ लोग कविता कम पढ़ें फोटो ज़्यादे देखे, कविता के साथ अन्याय होगा आपका.
दयानंद पांडेय जी का नोवेल "लोक कवि अब गाते नहीं" पढ़ा कुछ दिन पहले
हटाएंhttp://sarokarnama.blogspot.in/2012/02/blog-post_09.html
उसमे लोक कवि बिरहा गायक हैं. जो बिरहा गाते गाते आरकेस्ट्रा ग्रूप चलाने लगते है. और लड़किया नाचने लगती है, उनके ग्रूप मे और वो गाते हैं. बाद में लोग लड़कियों का नाच देखने आने लगे उनका बिरहा तो सुनने कौन ही आता.
तो कहीं ऐसा न हो की लोग लड़कियों की फोटो देखे कविता किनारे हो जाए.
ये कविता के साथ अन्याय होगा.
आपके दो ब्लॉग की कई कवितायें पढ़ीं। मस्ती के साथ-साथ गंभीर और बेहतरीन कविताएं भी हैं। चित्र ऐसे लगाते हैं मानो चित्र देख कर ही कविता लिखते हों। आपको पढ़ना अच्छा रहा..।
जवाब देंहटाएंभाई देवेन्द्र जी ... आपका बहुत -बहुत आभार
हटाएंदेवेन्द्र पाण्डेय जी मुझे लगता है या तो आपने फोटो अच्छे से नहीं देखा, या फिर कविता नहीं पढ़ी, और मैं ये क्यों कह रहा हूँ ये आप उपर मेरा कॉमेंट पढ़ कर समझ जाएँगे.
हटाएंअब तो यहाँ उदाहरण भी है बब्बन भैया.
suner prastuti..sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेमपगी रचना:-)
जवाब देंहटाएंसौंदर्य से आभूषण की गरिमा का बढ़ जाने की कल्पना एक'सुन्दरम' का अध्यात्म दर्शन है |
जवाब देंहटाएंसराहनीय !साधुवाद!