(बिना अनुमति के रचना न लें ) विविध रंग की कविताएं
wah ,,pandey ji ....kya bat hai..umda
मेरे दिल मेंतेरी यादों की नदी बहती हैऔर मेरे कानों में तेरी यादों की चिड़ियाँ चहचहांती हैइस नदी का पी लेता हूँदो घूंट पानीछा जाता है नशाशराब की तरह मुझमेंऔर तबमैं अपने कोतुम्हारी यादों से बनेवृक्षों के बीच पाता हूँ //दर्द नशा है इस मदिरा का (नदिया का ),विगत स्मृतियाँ साकी हैं ,पीड़ा में आनंद जिसे हो आये मेरी मधुशाला (ब्लॉग शाला ).
अपनी ब्लॉग का लिंक दे भाई ..
इस नदी का पी लेता हूँदो घूंट पानीछा जाता है नशाशराब की तरह मुझमेंऔर तबमैं अपने कोतुम्हारी यादों से बनेवृक्षों के बीच पाता हूँ //बब्बन भाई साहब आज मन भर गया .आज कहा जा सकता है कि आप जल संसाधन विभाग में ही कार्यरत हैं .नदिया ,दरिया , झरना ,सोता सब बह चला .
रमाकांत भाई .. .. कभी कभी .. कोई रचना .. मार्मिक हो जाती है
एक इन्तजार था कि कभी तुझे घर लायेगें,कल्पना न की थी कभी ऐसा जख्म पायेगें!बेवफा, देखना एक दिन हम जरूर याद आयेगें,ये झूठ,फरेब,के आँसू हम छुपा के मुस्कुरायेगें,,,,,,,MY RECENT POST: माँ,,,
अच्छी रचनाएँ हैं कब से लिख रहे हैं कोई प्रकाशन....?मेरा साधुवाद स्वीकार करें
how to tke membership
वाह!आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 15-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1033 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
आपने यादों के घुमड़ते बादल .. जो दिल में सदैव रहते हैं .. का एक खुबसूरत वर्णन किया है ..
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
बेहतरीन नशा है!
सुंदर प्रस्तुति |
bahut hi sundar...bahut khoob
सुन्दर भावांकन !
yaadein amrit hoti hain....:)
बहुत सुन्दर..:-)
और तबमैं अपने कोतुम्हारी यादों से बनेवृक्षों के बीच पाता हूँ //... bahut sundar panktiyan
bahut khub likha he
wah ,,pandey ji ....kya bat hai..umda
जवाब देंहटाएंमेरे दिल में
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की नदी बहती है
और
मेरे कानों में
तेरी यादों की चिड़ियाँ चहचहांती है
इस नदी का पी लेता हूँ
दो घूंट पानी
छा जाता है नशा
शराब की तरह मुझमें
और तब
मैं अपने को
तुम्हारी यादों से बने
वृक्षों के बीच पाता हूँ //
दर्द नशा है इस मदिरा का (नदिया का ),
विगत स्मृतियाँ साकी हैं ,
पीड़ा में आनंद जिसे हो आये मेरी मधुशाला (ब्लॉग शाला ).
अपनी ब्लॉग का लिंक दे भाई ..
हटाएंइस नदी का पी लेता हूँ
जवाब देंहटाएंदो घूंट पानी
छा जाता है नशा
शराब की तरह मुझमें
और तब
मैं अपने को
तुम्हारी यादों से बने
वृक्षों के बीच पाता हूँ //
बब्बन भाई साहब आज मन भर गया .आज कहा जा सकता है कि आप जल संसाधन विभाग में ही कार्यरत हैं .नदिया ,दरिया , झरना ,सोता सब बह चला .
रमाकांत भाई .. .. कभी कभी .. कोई रचना .. मार्मिक हो जाती है
हटाएंएक इन्तजार था कि कभी तुझे घर लायेगें,
जवाब देंहटाएंकल्पना न की थी कभी ऐसा जख्म पायेगें!
बेवफा, देखना एक दिन हम जरूर याद आयेगें,
ये झूठ,फरेब,के आँसू हम छुपा के मुस्कुरायेगें,,,,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
अच्छी रचनाएँ हैं
जवाब देंहटाएंकब से लिख रहे हैं
कोई प्रकाशन....?
मेरा साधुवाद स्वीकार करें
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हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 15-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1033 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
आपने यादों के घुमड़ते बादल .. जो दिल में सदैव रहते हैं .. का एक खुबसूरत वर्णन किया है ..
जवाब देंहटाएंशब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन नशा है!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar...bahut khoob
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावांकन !
जवाब देंहटाएंyaadein amrit hoti hain....:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएं:-)
और तब
जवाब देंहटाएंमैं अपने को
तुम्हारी यादों से बने
वृक्षों के बीच पाता हूँ //
... bahut sundar panktiyan
bahut khub likha he
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