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शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

यादों की नदी


मेरे दिल में
तेरी यादों की नदी बहती  है
और
मेरे कानों  में
तेरी यादों की चिड़ियाँ चहचहांती  है

इस नदी का पी लेता हूँ
दो घूंट पानी
छा जाता है नशा
शराब की तरह मुझमें
और तब
मैं अपने को
तुम्हारी यादों से बने
वृक्षों के बीच पाता हूँ //




19 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे दिल में
    तेरी यादों की नदी बहती है
    और
    मेरे कानों में
    तेरी यादों की चिड़ियाँ चहचहांती है

    इस नदी का पी लेता हूँ
    दो घूंट पानी
    छा जाता है नशा
    शराब की तरह मुझमें
    और तब
    मैं अपने को
    तुम्हारी यादों से बने
    वृक्षों के बीच पाता हूँ //

    दर्द नशा है इस मदिरा का (नदिया का ),

    विगत स्मृतियाँ साकी हैं ,

    पीड़ा में आनंद जिसे हो आये मेरी मधुशाला (ब्लॉग शाला ).

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  2. इस नदी का पी लेता हूँ
    दो घूंट पानी
    छा जाता है नशा
    शराब की तरह मुझमें
    और तब
    मैं अपने को
    तुम्हारी यादों से बने
    वृक्षों के बीच पाता हूँ //

    बब्बन भाई साहब आज मन भर गया .आज कहा जा सकता है कि आप जल संसाधन विभाग में ही कार्यरत हैं .नदिया ,दरिया , झरना ,सोता सब बह चला .

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    उत्तर
    1. रमाकांत भाई .. .. कभी कभी .. कोई रचना .. मार्मिक हो जाती है

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  3. एक इन्तजार था कि कभी तुझे घर लायेगें,
    कल्पना न की थी कभी ऐसा जख्म पायेगें!
    बेवफा, देखना एक दिन हम जरूर याद आयेगें,
    ये झूठ,फरेब,के आँसू हम छुपा के मुस्कुरायेगें,,,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  4. अच्छी रचनाएँ हैं
    कब से लिख रहे हैं
    कोई प्रकाशन....?
    मेरा साधुवाद स्वीकार करें

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  5. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 15-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1033 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  6. आपने यादों के घुमड़ते बादल .. जो दिल में सदैव रहते हैं .. का एक खुबसूरत वर्णन किया है ..

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  7. शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन

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  8. और तब
    मैं अपने को
    तुम्हारी यादों से बने
    वृक्षों के बीच पाता हूँ //
    ... bahut sundar panktiyan

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