न तुमने कभी
मेरे गेसुओं को हाथों से हिलाया है
न कभी
मेरे नर्म गुलाबी लवों को सहलाया है
मुझसे कभी नहीं कहा
झरने सी गुनगुनाती हो
गोरी इंतनी कि दूध शरमा जाए
आदि-आदि
जो लड़के कहते है
लड़कियों से अक्सर
समीप पाने की चाह में //
तुम तो बस
हाथों में हाथ लेकर
मेरी आँखों में देखते हों
पक्का यकीन हो चूका है मुझे
शादी पूर्व के बंधनों को
तुम नहीं तोड़ने वाले
दिल जीत लिया तुमने मेरा
अपने सभ्य व्यवहारों से //
अब देखना है शादी के बाद
जब पंडित जी और माता-पिता
मेरा हाथ रख देंगे /तुम्हारे हाथ पर
तो देखते है
कौन पहल करता है हाथ हटाने की //
Well said. Good one . Plz visit my blog.
जवाब देंहटाएंवाह ,,,बहुत सुंदर प्यारी रचना,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: जनता सबक सिखायेगी...
behtareen rachna ..mere blog par bhee aapka swagat hai
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबब्बन भाई, काफी दिनों के बाद आपसे मुखातिब होने के लिए क्षमा चाहता हूँ.....इस रचना मे आपने एक ऐसे पहलू को उजागर किया है जिससे गुजरते तो सब हैं ही आवश्यकता भी है की इस भाव को हर कोई आत्मसात कर ले...बहुत ही अच्छी रचनाके लिए बधाई...मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है....हम तो यही कहेंगे कि..."कभी मेरी गली आया करो...."
जवाब देंहटाएंलिंक:merekhayaal-ajay.blogspot.com
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
मेरे TV स्टेशन ब्लाग पर देखें । मीडिया : सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/05/blog-post_22.html?showComment=1369302547005#c4231955265852032842