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मंगलवार, 21 मई 2013

एक लड़की का अंतर्द्वंद


न तुमने कभी
मेरे गेसुओं को हाथों से हिलाया है
न कभी
मेरे नर्म गुलाबी लवों को सहलाया है
मुझसे कभी नहीं कहा
झरने सी गुनगुनाती हो
गोरी इंतनी कि दूध शरमा जाए
आदि-आदि
जो लड़के कहते है
लड़कियों से अक्सर
समीप पाने की चाह में //

तुम तो बस
हाथों में हाथ लेकर
मेरी आँखों में देखते हों
पक्का यकीन हो चूका है मुझे
शादी पूर्व के बंधनों को
तुम नहीं तोड़ने वाले
दिल जीत लिया तुमने मेरा
अपने सभ्य व्यवहारों से //

अब देखना है शादी के बाद
जब पंडित जी और माता-पिता
मेरा हाथ रख देंगे /तुम्हारे हाथ पर
तो देखते है
कौन पहल करता है हाथ हटाने की //

6 टिप्‍पणियां:

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  2. बब्बन भाई, काफी दिनों के बाद आपसे मुखातिब होने के लिए क्षमा चाहता हूँ.....इस रचना मे आपने एक ऐसे पहलू को उजागर किया है जिससे गुजरते तो सब हैं ही आवश्यकता भी है की इस भाव को हर कोई आत्मसात कर ले...बहुत ही अच्छी रचनाके लिए बधाई...मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है....हम तो यही कहेंगे कि..."कभी मेरी गली आया करो...."
    लिंक:merekhayaal-ajay.blogspot.com

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  3. अच्छी रचना
    बहुत सुंदर

    मेरे TV स्टेशन ब्लाग पर देखें । मीडिया : सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/05/blog-post_22.html?showComment=1369302547005#c4231955265852032842

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