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शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

गलतियां

खूब मन लगता था
बचपन में
गलतियां खोजने में
एक ही तरह दिख रहे
दो चित्रों के बीच

आदत वहीँ से बन गयी
अब तो
गलतियां -ही गलतियां
अवगुण ही अवगुण
झट खोज बैठता हूँ ..
हर इंसान में //

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब
    ~~
    गलतियां खोजने में
    एक ही तरह दिख रहे
    दो चित्रों के बीच
    मेरी आदत तो आज भी है

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  2. सच है पर कभी कभी अपने आप को आईने में देख के गलतियां निकाला अच्छा होता है ... आत्मशुद्धि तो होती है ... अच्छे भाव लिए सार्थक रचना ...

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  3. दूसरों अवगुण ढूँढना ,उस अवगुण को अपनाने के बराबर है !
    latest post केदारनाथ में प्रलय (भाग १)

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  4. बहुत ही सही ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार ।

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