followers
रविवार, 30 अक्टूबर 2011
एक बार मुस्कुरा दो !!
मुझे पता है ...
बालू,बजरी और ईटों का
अलग से कोई बजूद नहीं होता
जब तक उसमे सीमेंट न मिली हों/
मेरे भाई /दोस्त /रिश्तेदार
सब ईट/बालू/बजरी की तरह है
अलग -अलग
मुझे सीमेंट की ज़रूरत है प्रिय
इन्हें जोड़ने के लिए //
आकर
एक बार मुस्कुरा दो
मुझे यकीन है
तुम्हारी मुस्कराहट
सबके लिए सीमेंट बनेगी //
शनिवार, 29 अक्टूबर 2011
आवारा गुब्बारे
मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011
तिरिया चरितर
( तिरिया चरित्र का शाब्दिक अर्थ होता है - स्त्रियों द्वारा पुरुषों को मुर्ख बनाने का खेल )
नाक से लेकर मांग तक
सिंदूर लगाकर
बहुत जँच रही थी
बडकी भौजी
पुराणों में वर्णित
देवी की तरह //
जैसे ही सब आगंतुक
जो आये थे
भाग लेने
सूर्य -उपासना के पर्व में
चले जायेंगें
बाघ-बकरी का खेल
शुरू हो जाएगा
सास-बहू में //
बहू बरसाने लगेगी बातों के डंडे
अपनी सास पर /
और सास राह देखेगी
अपने बेटे के आने का //
बेटा आ गया ...
बहू का सास के प्रति सेवा देख
गदगद हो गया /
माँ के शिकायत को
बेटा को नज़रंदाज़ करना पडा //
बेटा !
चला गया कुछ दिनों बाद
और फिर से शुरू हो गया
खेल तिरिया चरितर का //
शनिवार, 22 अक्टूबर 2011
दोष किसका है
नावों के डूबने में ,क्या दोष है पतवारों का
चमन को लुटने में , क्या दोष है खारों का //
बढ़ाते हैं , हम और आप इस दुनिया को
महगाई बढ़ने में ,क्या दोष है बाज़ारों का /
बेवज़ह तान तेदे हैं बंदूकें एक दुसरे पर
क़त्ल हो जाए तो,क्या दोष हैं तलवारों का //
तुम शिकायत लेकर कहाँ जाओगे ,बबन !
जब नल ही दूटा हो, क्या दोष है फब्बारों का //
शनिवार, 8 अक्टूबर 2011
नज्म
झुकना नहीं सीखा था ,इसलिए टूट गया हूँ
लूटना नहीं सीखा था, इसलिए लुट गया हूँ //
अविश्वास की डोर से,मैं रिश्ते नहीं बाँध पाया
अपनों ने छोड़ा मुझे,मैं परायों को भी नहीं छोड़ पाया //
सबका खून एक है,मगर क्यों कोई ईमान बेच देता है
अपने चूल्हे की आग बुझा ,दुसरे पर रोटी सेक लेता है //
स्वस्थ बीज अगर बोयेगा किसान ,फल ज़रूर निकल जाएगा
इत्मीनान से बैठकर सोचो बबन ,कोई हल ज़रूर निकल जाएगा //
गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011
कील
सदस्यता लें
संदेश (Atom)