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शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

नज्म


झुकना नहीं सीखा था ,इसलिए टूट गया हूँ
लूटना नहीं सीखा था, इसलिए लुट गया हूँ //

अविश्वास की डोर से,मैं रिश्ते नहीं बाँध पाया
अपनों ने छोड़ा मुझे,मैं परायों को भी नहीं छोड़ पाया //

सबका खून एक है,मगर क्यों कोई ईमान बेच देता है
अपने चूल्हे की आग बुझा ,दुसरे पर रोटी सेक लेता है //



स्वस्थ बीज अगर बोयेगा किसान ,फल ज़रूर निकल जाएगा
इत्मीनान से बैठकर सोचो बबन ,कोई हल ज़रूर निकल जाएगा //

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना है बब्बन जी

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  2. आपकी नज्म बहुत अच्छी लगी.क्या तारीफ़ करू कुछ कहते नही बनता..

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  3. झुकना नहीं सीखा था ,इसलिए टूट गया हूँ
    लूटना नहीं सीखा था, इसलिए लुट गया हूँ //
    bhut acha.

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  4. bahut hi umda sabdon ki najuk kaliyo ko bhavnao me khilaya hai sir ji

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  5. झुकना नहीं सीखा था ,इसलिए टूट गया हूँ
    लूटना नहीं सीखा था, इसलिए लुट गया हूँ /

    Kya khoo likha hai aapne

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  6. प्रिय बबन भाई,
    आपकी लेखन शैली विशिष्ट है। नये और पुराने को एक साथ मिलाने की कला अद्भुत है!

    राधे राधे।

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रिय बबन भाई,
    आपकी लेखन शैली विशिष्ट है। नये और पुराने को एक साथ मिलाने की कला अद्भुत है!

    राधे राधे।

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