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मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011
तिरिया चरितर
( तिरिया चरित्र का शाब्दिक अर्थ होता है - स्त्रियों द्वारा पुरुषों को मुर्ख बनाने का खेल )
नाक से लेकर मांग तक
सिंदूर लगाकर
बहुत जँच रही थी
बडकी भौजी
पुराणों में वर्णित
देवी की तरह //
जैसे ही सब आगंतुक
जो आये थे
भाग लेने
सूर्य -उपासना के पर्व में
चले जायेंगें
बाघ-बकरी का खेल
शुरू हो जाएगा
सास-बहू में //
बहू बरसाने लगेगी बातों के डंडे
अपनी सास पर /
और सास राह देखेगी
अपने बेटे के आने का //
बेटा आ गया ...
बहू का सास के प्रति सेवा देख
गदगद हो गया /
माँ के शिकायत को
बेटा को नज़रंदाज़ करना पडा //
बेटा !
चला गया कुछ दिनों बाद
और फिर से शुरू हो गया
खेल तिरिया चरितर का //
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अति सुन्दर....** दीप ऐसे जले कि तम से संग मन को भी प्रकाशित करे ***शुभ दीपावली **
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसुंदर पोस्ट,..सपरिवार दीपपर्व की हार्दिक मंगलकामनाए,समय समय पर सहयोग समर्थन प्रतिक्रियाए के लिए आभार.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना... आपको दीपावली की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! दीपावली के शुभ बेला पर --दीपावली की शुभ कामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा... इसी तरह से हमारे आस पास की छोटी छोटी बातों का अवलोकन होता रहेगा.. तभी हम समझ पाएँगें की आखिर जीवन चीज़ क्या है...
जवाब देंहटाएंसभी जानते हैं , देखते है , सुनते- समझते भी हैं किन्तु आपने अपने शब्दों में बयां किया ...बहुत ही अच्छी तरह
जवाब देंहटाएंसही चित्रण ..... आपको बधाई !
जवाब देंहटाएंतिरिया चरित्तर पुरुष की नकारात्मक उर्जा का विस्तार है जिसके द्वारा पाखंडी नारी की निंदा की जाती है.
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