दर्द की शुरुयात
पेट दर्द से हुई थी
आँख.नाक,कान होते हुए यह दर्द
पुरे बदन में फ़ैल गया था //
ज़वानी में कदम रखा ही था कि
भाई-बंधुओं के बीच
बना स्नेह-सौहार्द का महल टूटने लगा...
पहली बार अनुभव हुआ..
रिश्तों के टूटने का दर्द
बेरहम आफिस के कर्मचारियों ने
दौड़ाते-दौड़ाते न जाने कितने दर्द दिए
फिर साथ पढ़ने -वाली पर दिल आया
पता नहीं दिल कैसा होता है
टूट कर आवाज तो नहीं करता
पर दे जाता है
एक लाईलाज दर्द //
पेट दर्द से हुई थी
आँख.नाक,कान होते हुए यह दर्द
पुरे बदन में फ़ैल गया था //
ज़वानी में कदम रखा ही था कि
भाई-बंधुओं के बीच
बना स्नेह-सौहार्द का महल टूटने लगा...
पहली बार अनुभव हुआ..
रिश्तों के टूटने का दर्द
बेरहम आफिस के कर्मचारियों ने
दौड़ाते-दौड़ाते न जाने कितने दर्द दिए
फिर साथ पढ़ने -वाली पर दिल आया
पता नहीं दिल कैसा होता है
टूट कर आवाज तो नहीं करता
पर दे जाता है
एक लाईलाज दर्द //
दर्द ही तो लेखन का सबब बन जाता है...
जवाब देंहटाएंहां भाई @ Vaanbhatt jee
हटाएंबहुत खूब लिखा आपने .......
जवाब देंहटाएंआभार और शुक्रिया @ रत्नेश त्रिपाठी जी उर्फ़ आर्य जी
हटाएंइसी बहाने कलम तो चल जाती है. अति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंइस लाइलाज दर्द का कोई इलाज नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंगहरी बातें सहज ही लिख दीं ...