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बुधवार, 20 नवंबर 2013

उठो, और फिर चल पड़ो

पत्थर हूँ मैं 
झरने की वेगमयी धारा का विरोधी
टूट जाउंगा /बिखर जाऊँगा 
यु ही घुटने नहीं टेकूंगा //

वृक्ष    हूँ
तूफानों   को   रोकता  हूँ 
मेरे फल-फूल गिर जाते है 
शाखाएं टूट जाती है 
कभ-कभी तो मैं स्वम् उखड जाता हूँ //

विपत्तियों के सामने घुटने टेकना
ज़िंदगी से हार जाना // 

2 टिप्‍पणियां:

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