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गुरुवार, 23 जून 2011
कलम अब तलवार नहीं है
हर जगह आग है, शोला है, कही प्यार नहीं है
सकून दे सके आपको,ऐसी कोई वयार नहीं है //
कितना संभल कर चलेंगे आप,अब गुल में
हर पेड़ अब खार है,कोई कचनार नहीं है //
हंसी मिलती है,अब सिर्फ तिजारत की बातों में
रिश्तों का महल बनाने, अब कोई तैयार नहीं है //
अश्क पोछना होगा अब आपको,अपने ही रुमाल से
पोछ दे आपका अश्क,अब ऐसा कोई फनकार नहीं है //
माँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
शायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //
जी भर लूटो ,खाओ , इस हिन्दुस्तान मेरे दोस्त !!
मेरी कलम,अब कलम है ,कोई तलवार नहीं है //
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सार्थक कविता.अभी तक की सभी रचनाओ में सबसे ज्यादा आग लिए हुए.आपका असंतोष मेरे मन को भी सोचने को विवश कर रहा है.समाज पर व्यंग्य करती हुयी समाज सुधारक कविता.सुबह की सार्थक सुबह के लिए धन्यवाद बबन भैया.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अंचित ...पढ़ते रहो लिखते रहो
जवाब देंहटाएंअश्क पोछना होगा अब आपको,अपने ही रुमाल से
जवाब देंहटाएंपोछ दे आपका अश्क,अब ऐसा कोई फनकार नहीं है //
जी भर लूटो ,खाओ , इस हिन्दुस्तान मेरे दोस्त !!
मेरी कलम,अब कलम है ,कोई तलवार नहीं है //
सटीक बात ..अच्छी रचना
माँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
जवाब देंहटाएंशायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //
बहुत गहन और विचारणीय बातें लिखीं हैं अपने अपनी कलम से ...
अच्छे विचार और अच्छी रचना ..बधाई..!!
खूब चली है आपकी कलम, बनी रहे यही धार और ये रफ्तार.
जवाब देंहटाएंजी भर लूटो ,खाओ , इस हिन्दुस्तान मेरे दोस्त !!
जवाब देंहटाएंमेरी कलम,अब कलम है ,कोई तलवार नहीं है //
माँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
शायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //
समाज पर व्यंग्य करती हुयी बहुत अच्छी रचना .......
Bahut sundar prastuti baban ji ....... very nice
जवाब देंहटाएंआपकी कलम की धार बड़ी पैनी है...तलवार नहीं बम है हुजूर...
जवाब देंहटाएंकलम तलवार बन कर करे भी क्या , कुछ असर होता दिखता नहीं तो !
जवाब देंहटाएंग़ज़ल मौजूदा हालातों में में आम जन के भीतर दबे गुस्से को बयान कर रही है !
कलम का बखूबी इस्तेमाल किया है आपने
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल ,कक़्ता ख़ुसूसी रूप में पसंद आया, मुबारकबाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा .
जवाब देंहटाएंमाँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
जवाब देंहटाएंशायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //
बहुत बढ़िया...
माँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
जवाब देंहटाएंशायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //
समसामयिक विमर्श करती कविता के लिए हार्दिक बधाई...
satik vyangya....bahu karara
जवाब देंहटाएंअच्छी व्यंगात्मक कविता .....
जवाब देंहटाएंkya baat hai.wah.
जवाब देंहटाएंमाँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
जवाब देंहटाएंशायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //
बहुत सुन्दर और सटीक...
दूसरे शेर में 'अब गुल' के वजाय गुलशन भी हो सकता था। खुद के आंसू खुद ही पौछलो कोई यहां पौछने वाला नहीं है बहुत ही सारगर्भित । क्या जबरदस्त बात कहदी सर मां लिखना कहना भूल गया आदमी इससे दुखद और क्या होगा ।आखिरी शेर में तो व्यंग्य में सब कुछ कह दिया ।
जवाब देंहटाएंBahut hi behtareen bhrata shri. aaj ke samaj ki sahi tasvir.
जवाब देंहटाएंBabanji.....very nice creation.....but we all r praying such times r going to end soon....n we will see a new INDIA , a Corruption free INDIA.....Hail ANNA ji.....Support him.......VANDE MATARAM..
जवाब देंहटाएंवाह .......आप माने या न माने .....लेखनी आपकी तलवार ही है ........
जवाब देंहटाएंसटीक व वेहतरीन उदगार, बब्बन जी वाह !
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जवाब देंहटाएंमाँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
शायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //
जी भर लूटो ,खाओ , इस हिन्दुस्तान मेरे दोस्त !!
मेरी कलम,अब कलम है ,कोई तलवार नहीं है /