जब भींगी तेरी ओढ़नी
बादल देख झूमा उपवन
झूम रहे मोर -मोरनी
और ज़वां लगने लगी तुम
जब भींगी तेरी ओढ़नी //
भर गए सारे ताल-तलैया
मेढकी गाने लगी रागिनी
आने लगी महक यौवन की
जब नभ में छाई चांदनी //
काले का भ्रम फैलाती
काली लम्बी तेरी मेखला
तेरी अँखियाँ जिधर कौंधती
बरस पड़ती उधर दामिनी //
अहाहा .. अति सुंदर!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रस रंग बबन पाण्डेय जी बारिश का क्या आनंद दिलाया
जवाब देंहटाएं-मदमस्त -पर भीगी तेरी ओढ़नी की जगह
शायद उड़ गयी इसकी ओढ़नी
ओढनी भीग जाने के बाद सौन्दर्य में और निखार आजाना श्रंगार रस का एक उम्दा उदाहरण है। नजर कि लिये कौधना , उसकी उपमा चांदनी से देना और सबसे बढिया बात यह कि चित्र के अनुरुप रचना । बहुत प्यारी और मौसम के अनुरुप कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंतेरी अंखियां जिधर कौंधतीं, बरह पड़ती उधर दामनी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।