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मंगलवार, 28 जून 2011

माँ की परिभाषा


पिता को परिभाषित करना कुछ हद तक आसान है ,परन्तु माँ को किसी परिभाषा में बंधना उतना ही कठिन है ,जितना समुद्र के पानी को किसी वर्तन में ज़मा करना ....


माँ ....
तुम हो ,वात्सल्य का एक खिलौना
तेरे सामने हम हो जाते बौना //


माँ ...
तुम हो ,प्यार की मीठी बांसुरी
नहीं डराती अब ,शक्ति आसुरी //

माँ ....
तुम हो ,स्नेह की एक गरम अंगीठी
मुझे बता बचपन की बातें , मीठी //

माँ....
तुम हो नदी ,सिंचती जीवन की बगिया
जी लूंगा ,बना के तेरी यादों का तकिया //

2 टिप्‍पणियां:

  1. माँ को सत् सत् नमन ...सुन्दर कविता दुनिये के सबसे प्यारे रिश्ते पर

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  2. माँ ....
    तुम हो ,स्नेह की एक गरम अंगीठी
    मुझे बता बचपन की बातें , मीठी

    बहुत सुन्दर रचना
    कभी हमारे ब्लॉग पर भी आगमन करे
    vikasgarg23.blogspot.com

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