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दोस्तों ....
मुझे रोना नहीं आता
सीखू भी किससे
हाल के दिनों में
मैंने नहीं देखा किसी को
जार -ज़ार रोते //
किसी के यहाँ दुःख बाटने जाता हूँ
पहन लेता हूँ कला चश्मा
ताकि लोग यह न कहें
मैंने रोया ही नहीं//
पिता का नश्वर शरीर
पंचतत्व में विलीन हो चूका था
मेरे आने से पहले
आने पर रोने की कोसिस की
मगर लोगों ने चुप करा दिया //
पहले माँ की आँखें
डूब जाती थीं आंसुओ में
जब बेटी बैठती थी डोली में
बेटी ने लव -मैरिज की
माँ की आंखों में भी अब
नहीं आते आंसू //
सच है दोस्तों !
मरने -मारने की रोज आती खबरों
और हंसने के चक्कर में
हम रोना भी भूल गए //