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सोमवार, 10 जनवरी 2011
हिमालय और हम
१९ वी सदी तक
तुम गर्व से चूर थे हिमालय
बौना बनाते रहे तुम
हम मानवों को //
हिमाच्छादित शिखरों को दिखा-दिखा
मुंह चिढाते रहे //
चिर दी
हम मानवों ने
तुम्हारी छाती
२० वी सदी में
गाड आये अपना झंडा
तुम्हारे मस्तक पर //
और सुनो
ढेर सारा कचड़ा छोड़ आया हूँ
तुम्हारे गोद में
जो कह रहे है कहानी
मेरे फतह की//
आने वाली पीढ़ी
नाज़ करेगी हम पर //
कितनी ताकत है
तुम्हारे बर्फ में
ज़रा इन आधुनिक कचड़ो को
गला कर तो दिखाओ //
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प्रकृति से खिलवाड़ तो हम नहीं करना चाहते परन्तु जाने -अनजाने बहुत साड़ी गलतियां हम कर बैठे है / हिमालय फतह करने के दौरान हम ढेर सारा कचड़ा रास्ते में छोड़ते जा रहे है /
वर्ष २००८ के जुलाई -अगस्त में मैं नेपाल का प्रमुख पर्यटन केंद्र "पोखरा " गया /पोखरा के हिमालयन संग्र्लाय जो पोखरा एअरपोर्ट के सामने अवस्थित है , में जाकर आप बिना हिमालय चढ़े ,उसके सारे रंगों ,प्राकृतिक विविधताये ,हिम मानव और नेपाल की पूरी भाषा और संस्कृति से रूबरू हो सकते है /
मैं नेपाल सरकार को धन्यबाद देना चाहता हूँ जो अभियान चलाकर ईन कचड़ो को हटाने का कार्य कर रही है ,जिनमे से कुछ कचड़े इस संघ्रालय में भी रखे है
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:(
जवाब देंहटाएंham manav nahi jante jo darp ham wahan kachhra chhod kar dikha rahe hain, wo hame kahin ka nahi chhodega....
bahut khub, sir....
hamare blog pe dustak den...
सहि कहा सर प्रकृति को दुषित करने का खामियाजा तो किसी न किसी को भुगतना ही पड़ेगा !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबबन जी...........सही लिखा आपने खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा..................मानव जाति को चेतावनी देती एक अच्छी रचना.................बधाई!!!!
जवाब देंहटाएंजी बबन जी कल ही में इस पर काफी लिखा है ....प्रकृति ने खुद को अलग तरह से बना लिया है ...अब हम जो आज रा -मटेरियल इसको दे रही है कही वो ही हमारे आने वाली पीडी का सब कुछ !!!!!!!!!!प्रल्रोती भी कही इसी मुड में की तेरा तुझ को अर्पण क्या लगे मेरा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंbahut mahatva poorna vishay par sundar lekhan!
जवाब देंहटाएंprakriti se ched chad ka dushparinam humlog jhel rahe hai.
जवाब देंहटाएंबबन भाईसाहब...बहुत ही सार्थक व सन्देश देने वाली रचना है, ऐसी रचनाएँ पढ़ कर ही लोग कुछ शिक्षा ले सकते हैं...अपने कर्तव्य याद कर सकते हैं इस धरती, इस प्रकृति के प्रति...हिमालय हमारा गुरुर है, जिस पर नाज़ है हमें...और यदि हम ही उसका ख्याल ना रखें तो लानत है हमारी इंसानियत पर....
जवाब देंहटाएंसोचने पर मजबूर करती एक सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसादर
और सुनो
जवाब देंहटाएंढेर सारा कचड़ा छोड़ आया हूँ
तुम्हारे गोद में
ज़रा इन आधुनिक कचड़ो को
गला कर तो दिखाओ
this is called poem. grt.
A good write-up.
जवाब देंहटाएंbahut hi aachi ka
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,एक प्रेरक सन्देश ,बधाई हो पाण्डेजी ..
जवाब देंहटाएंकचरे संग्रहालय में रखे हैं, जान कर आश्चर्य हुआ.
जवाब देंहटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता
मन को भावुक कर दिया
आभार / शुभ कामनाएं
we are spreading.. garbage not only in plains but in HIMALYA also... why are we doing so?
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंवाह ... अति सुन्दर प्रेरणादाई रचना.