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रविवार, 23 जनवरी 2011
मुझे रोना नहीं आता
दोस्तों ....
मुझे रोना नहीं आता
सीखू भी किससे
हाल के दिनों में
मैंने नहीं देखा किसी को
जार -ज़ार रोते //
किसी के यहाँ दुःख बाटने जाता हूँ
पहन लेता हूँ कला चश्मा
ताकि लोग यह न कहें
मैंने रोया ही नहीं//
पिता का नश्वर शरीर
पंचतत्व में विलीन हो चूका था
मेरे आने से पहले
आने पर रोने की कोसिस की
मगर लोगों ने चुप करा दिया //
पहले माँ की आँखें
डूब जाती थीं आंसुओ में
जब बेटी बैठती थी डोली में
बेटी ने लव -मैरिज की
माँ की आंखों में भी अब
नहीं आते आंसू //
सच है दोस्तों !
मरने -मारने की रोज आती खबरों
और हंसने के चक्कर में
हम रोना भी भूल गए //
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बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसच है दोस्तों !
जवाब देंहटाएंमरने -मारने की रोज आती खबरों
और हंसने के चक्कर में
हम रोना भी भूल गए //
बहुत सुन्दर..
सच है दोस्तों !
जवाब देंहटाएंमरने -मारने की रोज आती खबरों
और हंसने के चक्कर में
हम रोना भी भूल गए //
सच कह रहे हैं आप्……………कितने संवेदनहीन हो गये हैं हम्……………सुन्दर अभिव्यक्ति।
bahut bahut bahut acha likha sir ji aapne.....barso se mujhe rona nahi aaya....
जवाब देंहटाएंzazbaat ki roo mai khona nahi aaya,...we have became too much emotionless that when we want to cry tears do not come from our eyes too .:(
सुंदर अभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबालिका दिवस
हाउस वाइफ़
nice one
जवाब देंहटाएंwaakayi ab hamaare andar ki samvedna marti ja rahi hai
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavita
badhaayi
aabhaar
bahut katu satya darshaati aapki rachna ...........ab hum zor se rona bhi bhool gaye hain
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर व अच्छी प्रस्तुति। धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंhttp://hamarbilaspur.blogspot.com/2011/01/blog-post_5712.html
Dil main gush jaate hain pandey ji !!!
जवाब देंहटाएंवाह पांडे जी! बहुत सुन्दर लिखा है.. आपने.. रोना नहीं आता हसने के चक्कर में .. लेकिन आपकी कविता जितनी गंभीर है उतनी हसा भी रही है ..व्यंग का पुट भी है..
जवाब देंहटाएंदोस्तों !
जवाब देंहटाएंमरने -मारने की रोज आती खबरों में
सच में हम रोना भूल गए
सच में हम रोना भूल गए
जवाब देंहटाएंबब्बन जी बहुत बढ़िया किया है बयां
जवाब देंहटाएंये वक़्त का सितम नहीं तो और क्या??
simply supper.......
जवाब देंहटाएंBahut achchi rachna.......
जवाब देंहटाएंवर्तमान संवेदनहीनता की स्थिति को आपने बड़ी शिद्दत एवं गहराई से महसूस किया है और अपने लेखनी से उसे उसी रूप में बखूबी उकेरा है .........सकारात्मक सोच के लिए प्रेरणादायक रचना के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं .....
जवाब देंहटाएंसंवेदना शून्य हो गए हैं हम.....ये घटनाएं भी नई नहीं रहीं....यह संवेदनाहीन होने की पराकाष्ठा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
http://veenakesur.blogspot.com/
naseeb wale hai. ..............very good...
जवाब देंहटाएंbilkul sahi likha hai aapne shayad is yug me sabhi ke aansu sookh gaye hai .
जवाब देंहटाएंसहज, सटीक एवं प्रभावशाली लेखन के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी पढ़िए......
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
बहुत सुंदर अवस्मार्निया !
जवाब देंहटाएंअप्रतिम.....बहुतही सुंदर......
जवाब देंहटाएंthats so true. we are really trying too hard to laugh things off. and genuine response and genuine stimulus.
जवाब देंहटाएंtrue baban ji ham hasne ke chakkar me sahi me rone ka tarika aur salika bhool gaye hai .ab sahi me kisi ke dukh me ansu hi nahi ate ,,,
जवाब देंहटाएंसच है दोस्तों
जवाब देंहटाएंहंसने के चक्कर में
हम रोना भी भूल गए....
सच है दोस्तों !
जवाब देंहटाएंमरने -मारने की रोज आती खबरों
और हंसने के चक्कर में
हम रोना भी भूल गए //
SATIK SHABD HAI