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मंगलवार, 4 जनवरी 2011
हंसने के पीछे का राज
हँसी नहीं आ रही है
कई सालों से मुझे
भूल गया हूँ
कब हंसा था खिलखिलाकर पिछली बार //
हास्य -क्लब ज्वाईन किया
वहाँ तो लोग
हँसते कम है
दांत निपोरते ज्यादा है //
सम्बन्धियों के यहाँ गया
सोचा हंस लेगे सब मिलकर
मगर ...
हंसी नाम की चिड़ियाँ उड़ चुकी थी //
हंस कर स्वागत करते है
दुकानदार ....जब सामान खरीदता हूँ
एजेंट .....जब पालिसी लेता हूँ
गर्ल फ्रेंड ....जब पार्टी लेती है
पत्नी.... जब गहने खरीदना हो
मित्र .... जब उधार लेना हो //
क्या हंसी .....
अब व्यवसाय बन चुकी है //
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बहुत ही सही विवेचना किया आपने..बहुत खुब
जवाब देंहटाएंsir aapne bilkul sahi vivechna ki hai real me aaj ki duniya mtlb ki duniya hai
जवाब देंहटाएंसही कहा है I परन्तु दुःख तो इसी बात का है की लोग व्यापार में भी धोका दे रहें हैं I असली हंसी तो अब कहीं सुनायी भी नही पड़ती, दिखाई देना तो दूर की बात है I
जवाब देंहटाएंहंसी
जवाब देंहटाएंगर हँसना निर्भर करता है किसी घटना पर
तो हंसी वाकई बिकती है बाजारों में
गर हँसना निर्भर करता है सम्मलेन पर
तो हंसी वाकई मिलती है त्योहारों पर
हंसी के बदले गर तुम्हे ना मिले हंसी
तो समझ लो तुम भी शामिल हो खरीदारों में
किसी न किसी लोभ में ही चल रहा है संबंधों का व्यापार...
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त हंसी अब कहाँ!
सुन्दर रचना!
बबनजी..हंसी की चिडिया तो सही अर्थों मे उड चुकी है..हास्य अब परिहास बन कर रह गया है..इसका स्थान आज के बेतुके लाफ्टर शो ले चुके हैं जो अपनी टी.आर.पी.के चक्कर में सभी समाजिक मर्यदाएं छोड चुके हैं..इस प्रकार हंसी का व्यसायीकरण तो हुआ है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जगदीश भाई ब्लॉग पर एक सार्थक कमेन्ट के लिए //
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी
सत्यम जी
Wah sundar----------mujhe vi kuch yad ayaa-----
जवाब देंहटाएंhansi udhar ki hay,
ek chavanni hansi,
dosto ne kaha -kinu?
athanni- ya rupaya kinu nahi,
tab maine ek kahani sunayi,,
main ekvar mere aamir mitra ke paas poucha-
to mere swagat me wo chavanni hansi diye..
jiska matlab- aye ho thik hay--mang na mat.
to wo hansi dekh kar main bola--
hansi udhar ki hay/
ek chavanni hansi hay--
सच कहा आपने ,हंसी भी अब आने के बहाने खोजती है और बहुत नपी तुली मात्रा में ही दिखती है ,लाभ के अनुपात में ही लोग हंसते है .आपकी इस सुन्दर रचना के बहाने ही सही इस दुर्लभ प्रजाति की चर्चा तो हुई .बधाई...
जवाब देंहटाएंक्या हंसी .....
जवाब देंहटाएंअब व्यवसाय बन चुकी है //
हंसी वो उधार है जिसे आप किश्तो मे चुकता करते हैं………………बेहतरीन प्रस्तुति अब तक की।
वक्त व्यवसाय के तरीके जान गया है...हंसी इसी दायरे मे आती है...बहुत खूब बबन जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर विश्लेषण!
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना!
सच कहा भईया अपने ... हंसी तो अब व्यापार ही बन गयी है ....
जवाब देंहटाएंइन आँखों को खुशिया दे ..
जवाब देंहटाएंमौला ..
ये प्यार के काबिल हैं
... kyaa kahane ... bahut sundar !!
जवाब देंहटाएंएक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
जवाब देंहटाएंबहुत संजीदा तरीके से लिखी गयी कविता
आज के समय में ज्यादातर लोगों के मन स्थिर नहीं हैं | सभी को कहीं न कहीं जाना होता हैं | २४ घंटों का समय भी कम पड़ रहा हैं | क्या पाया है, उसकी खुशी नहीं जता सकतें मगर क्या नहीं पाया उसका अफसोस और दौड़ रहती हैं.... ऐसे में खुद के बारे में सोचना तो दूर, हँसाना भी लोग भूल गए हैं |
जवाब देंहटाएंkya bhaiye.... gazab.... bahut achchha laga
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दरता से व्यक्त किया है आपने हर भाव को ।
जवाब देंहटाएंपत्नी को कविता पढ़ाई या नहीं सर जी ?
जवाब देंहटाएंबबन जी सही कहा आपने आज हसी का भी व्यवसाई करण हो गया है, लोग वही हॅस्कर दिखाते है, जहाँ उनके स्वार्थ की पूर्ति होती है, वो भी नितांत खोखली हसी.............
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder bhav
जवाब देंहटाएंblog par aane ko aabhar
m aap ko follow kar rhi hu
ehdum khubshurti ke sath sachai prashtut ki hain aisha lagta hain ki aapne ye Raaj mere upper hi likha hain
जवाब देंहटाएंजैसे आज शुद्ध शहद, शुद्ध घी दुर्लभ hai, वैसे ही अब शुद्ध हंसी दुर्लभ हो गयी ही. क्या कीजियेगा, मिलावट का जमाना है बबन जी. बहुत ही चुटीली कविता है. सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंक्या हंसी .....
जवाब देंहटाएंअब व्यवसाय बन चुकी है // Very True - like it.
बबन भाई साहिब .अपनी रचना के माध्यम से आपने आज के सच को उजागर किया .........कि आजकल वास्तविक मुस्कराहट कितनी अमूल्य और दुर्लभ वस्तु हो गयी है ........और जो देखने को मिलती है वो कितनी व्यावसायिक हो गयी है .........pay and get ....concept chalta hai .
जवाब देंहटाएंBabban Bhai,
जवाब देंहटाएंDuniya bari hoti ja rahi hai rishtey chotey ho rahe hai. Dikhawat ka jamana hai dikhane ko kewal aadmi muskrata hai baki wo apne aap mein hi mast hai. dinyadari mein hi itna ulzha hai ki uske paas hasne ke liye waqt hi nahi hai.
Anand Jeet Sharma
आपने सही कहा कि हंसी की चिड़िया उड़ चुकी है, लेकिन इसके वजह भी हम खुद हैं. पहले हमें छोटी छोटी चीजों में भी खुशी मिलती थी जबकि आज बड़ी चीजों में हम खुशी नही ढूँढ नही पाते.
जवाब देंहटाएंsach me bohot achchi hai apki kavita......aaj pahli bar aditya uncle ki wall pe apki post dekhi.....wakai bohot achchi hai
जवाब देंहटाएंबहुत संजीदा और मन को छू लेने वाली रचना पाण्डेय जी , बहुत ही अच्छी ! ...साधुवाद!!
जवाब देंहटाएंबबन जी, इस बनावटी दुनिया के पीछे मत जाईये................आप अपना मन साफ़ रखिये और दिल खोल कर हंसिये.................लोग खुद ब खुद आपका साथ पाने को आपके पास आयेंगे..............आजकल यही तो एक ऐसा खज़ाना है जो कीमत चूका कर भी हासिल नहीं होता!!!!!
जवाब देंहटाएंक्या हंसी .....
जवाब देंहटाएंअब व्यवसाय बन चुकी है-----
hansi spontaneous hoti hai---dil se hoti hai--jab jeevan se saralata hi gayab ho gaye---hansi ek vanabat hi reh jayegi---laughter club meine bhi jaa ke dekha hansne ki acting to sekh hi li----
हंसी पाने के लिए भी शायद कीमत चुकानी पड़ती है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपके विचार पढ़ के बहुत ही संदर है आपकी हर पोस्ट कभी अप्प मेरे ब्लॉग पे भी आईये
जवाब देंहटाएंदिनेश पारीक
http://vangaydinesh.blogspot.com/
सुन्दर रचना. हँसते हँसते दम भी निकल सकता है.
जवाब देंहटाएंAAPNE AAJKAL KE AADMI KI HANSI KO SAHI PAKDA...
जवाब देंहटाएंmujhe pahlee hi kavitaa me anand aa gaya.....saaree padhnee hai
जवाब देंहटाएंऐसा कह सकने की हिम्मत पर दाद कबूल फरमाइए जनाब।
जवाब देंहटाएंtoo good
जवाब देंहटाएंहंस कर स्वागत करते है
जवाब देंहटाएंदुकानदार ....जब सामान खरीदता हूँ
एजेंट .....जब पालिसी लेता हूँ
गर्ल फ्रेंड ....जब पार्टी लेती है
पत्नी.... जब गहने खरीदना हो
मित्र .... जब उधार लेना हो //
क्या हंसी .....
अब व्यवसाय बन चुकी है //