आदरणीय सीनिअर महोदय के" एक" कहते ही हमलोगों ने ख़ुशी -ख़ुशी अपने शर्ट उतार कर कोने में डाल दिया
'दो' बोलने के साथ ही सबने अपने -अपने गंजी वनियान उतार डाला । 'तीन' बोलने के बाद सबने अपने पैंट उतार दिए । पैंट उतारने तक कोई परेशानी न थी क्योकि अमूनन इस स्थिति में लड़के लोग प्रायः रहते ही है । 'चार' जैसे ही उन्होंने बोला कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । किसी ने अपना जांघिया नहीं उतारा ।
फिर गालियों की बौछार और गालियाँ भी वैसी जैसे गाँव में anpadh देते है । अब क्या था किसे गाली और थप्पड़ खाना था । सब के सब दो से तीन मिनट के बीच नंगे हो चूके थे । इज्ज़त इसलिए बची थी कि यह फिल्म हास्टल के अन्दर के बरामदे पर फिल्माई जा रही थी जहाँ रोशनी मात्र जीरो वाट के बल्व से आ रही थी । हास्टल के बाहर बड़ा सा मैदान था और किनारे -किनारे कोलतार की सडकें । हास्टल में रहने वाले सीनिअर के अलावे इस नयूड फिल्म का और कोई चस्मदिद गबाह नहीं था ।
फिर सीनिअर द्वारा हर एक दुसरे के अपने आगेवाले मित्र के कंधों पर हाथ देने का आदेश दिया गया । फिर सबसे खड़े लड़के को रेलगाड़ी की छूक - छुक आवाज निकालते हुए हास्टल के बाहर लाया गया ।
आपके संस्मरण की शृंखला बहुत उपयोगी है!
जवाब देंहटाएंye hi hota hai aaj kal
जवाब देंहटाएंhamare college mai dekha tha humne
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आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
संस्मरण बहुत अच्छा लगा ... बधाई
जवाब देंहटाएंआपके संस्मरण ने समाचारपत्रों में पढ़ी कई घटनाऐं याद दिला दीं... रैगिंग का चलन कभी-कभी भयावह भी होता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति।
कटु सत्य.
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