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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

आओ हँस लें


बचपन भूखा
जवानी भूखी
भूखी खेत के फसलें
क्यों कहते हो
आओ हंस लें ॥

पैर भी सूखे
लव भी सूखे
और भींगी है पलकें
क्यों कहते हो
आओ हंस ले ॥

8 टिप्‍पणियां:

  1. श्रीयुत बबंजी..भूखे पेट भजन भी नहीं होत,,हंसना तो बहुत ही दूर की बात है..रचना प्रासंगिक और साम्यिक है..

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  2. dats true lines sirjee ...

    jimmedari ki ek latika ,,
    apne baju me kas le ,
    aaj apna kurban kare hum ,
    taki kal hum has le ..

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  3. ye log kese has le jab inke pas rahne ko ghar nhi
    khane ko kuch nhi
    mera mun to karta hai
    ki
    aao aaj hum pran le
    ki apne jivan mai kuch yesa kare
    jis se in logo ka bhala kar sake
    ..

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  4. achha laga aap ne un logo ke bare me likha jinke bare me logo ke pas sochne ke liye samay nahi hai

    dhanyawad

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  5. दिल को सुकून दे.
    और
    आओ हंस ले....

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