नज़ारा देखने वाले सीनिअर की भीड़ थी । सितम्बर के महीने में थोड़ी उमस थी । नंगे  बदन ठण्ड नहीं लग रही थी । प्रायः सभी लोगो की नज़ारे नीची थी । इसके पूर्व मैंने राजगीर में पूर्ण नंग के रूप में जैन -मुनियों को अपने कार्य में मस्त देखा था /
कोई रेलगाड़ी की सीटी बजाता  तो छुक छुक करता /एक चक्कर करीब दो किलोमीटर का रहा होगा .दो चक्कर लगाने  के बाद शरीर   से  पसीना  आने  लगा था  /फिर  एक सीनिअर ने  कहा  -बेहुदे  कहीं  के शर्म  नहीं आती  ,जाओ  कपडे  पहनो  /मानों प्यासी धरती को जल बूंदों के रूप में मोटी मिल गई हो /
रात के करीब ग्यारह बज चूके थे । दौड़ने के कारण शरीर चिपचिपा था । खैर पंखे की हवा मिल रही थी । आँख तुरंत लग लगी /
मैं यह मान कर चल रहा था कि रैंगिंग पढाई का ही एक हिस्सा है और अपने को वातावरण में ढालने कि कोशिस में लग गया । जैसा कि बात चीत से लग राह था सीनिअरो  का यह उत्पीडन  कार्यक्रम  करीब एक माह तक चलेगा .

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