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गुरुवार, 30 सितंबर 2010
प्रिय ! मेरी बात सुनो
आप प्रकृति की अनुपम रचना है
मगर ...
कृत्रिम प्रसाधनो का लेपन
बनावटीपन जैसा लगता है ॥
मैं आपको रंगना चाहता हूँ
प्रकृति के रंगों से ॥
मैं आपको देना चाहता हूँ
टेसू के फूलों की लालिमा
कपोलों पर लगाने के लिए ॥
मृग के नाभि की थोड़ी सी कस्तूरी
देह -यष्टि पर लगाने के लिए ॥
फूलों के रंग -बिरंगे परागकण
माथे की बिंदी सजाने के लिए ॥
और तो और
थोड़ी सी लज्जा मांग कर लाई है मैंने
आपके लिए
लाजवंती के पौधों से ॥
इसके बाद
हवाएं आपसे अठखेलियाँ करेंगी
इन्द्रधनुष शरमा जाएगा
और तितलियाँ
अजूबा -अजूबा कह शोर मचा देंगी ॥
बुधवार, 29 सितंबर 2010
औरत ही औरत की दुश्मन
विदाई का समय था
माँ की आंखों में आंसू थे
मगर ससुराल जाने से पहले
बेटी को बताना था एक राज ॥
माँ ने बेटी को बताया
पति को वश में रखना
सास है ...
कोई देवी नहीं है कि
उसकी हर नाज़ -नखरे उठाओ ॥
मगर बाद में
जब घर में बहू आई
तो वह वह भूल चुकी थी
बहू की माँ ने भी
उसे वही सिखाया होगा
जो मैंने अपनी बेटी को सिखाया था ॥
माँ की आंखों में आंसू थे
मगर ससुराल जाने से पहले
बेटी को बताना था एक राज ॥
माँ ने बेटी को बताया
पति को वश में रखना
सास है ...
कोई देवी नहीं है कि
उसकी हर नाज़ -नखरे उठाओ ॥
मगर बाद में
जब घर में बहू आई
तो वह वह भूल चुकी थी
बहू की माँ ने भी
उसे वही सिखाया होगा
जो मैंने अपनी बेटी को सिखाया था ॥
बटवारा
उसकी बातें चुभती थी
कील की तरह
यद्प्पी वह सच बोलता था ॥
उसने कहा था
भाईयो की शादी हो गई
बटवारा कर लो चूल्हे का
नश्तर की तरह चुभी थी ये बातें
लगा था .....
साजिश कर रहा था वह
घर तोड़ने की ॥
नहीं पटी
हम सब भाईयो की पत्नियों के बीच
सुनता रहा मैं भी
बेजुवानो की तरह
उनकी उल-जुलूल बातें
अब चूल्हे ही नहीं बटे
खेत बटे /बच्चे बटे
माँ -बाप बटे
सबसे अहम् ....
अपना दिल भी बट गया
और देखिये
हम -सब अब खुश हैं ॥
कील की तरह
यद्प्पी वह सच बोलता था ॥
उसने कहा था
भाईयो की शादी हो गई
बटवारा कर लो चूल्हे का
नश्तर की तरह चुभी थी ये बातें
लगा था .....
साजिश कर रहा था वह
घर तोड़ने की ॥
नहीं पटी
हम सब भाईयो की पत्नियों के बीच
सुनता रहा मैं भी
बेजुवानो की तरह
उनकी उल-जुलूल बातें
अब चूल्हे ही नहीं बटे
खेत बटे /बच्चे बटे
माँ -बाप बटे
सबसे अहम् ....
अपना दिल भी बट गया
और देखिये
हम -सब अब खुश हैं ॥
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
जाल
हालांकि ....
मैं /आप /हमसब
रोज देखते है
मकड़े को
बुनता हुआ एक जाल
फिर फंसता हुआ उसी जाल में भी ॥
फिर भी ...
हम बाज नहीं आते
बुनते रहते है
घर में /मंदिर में /समाज में
स्वं को फंसाने वाला एक जाल
और अंततः हम फंस जाते है ॥
मैं /आप /हमसब
रोज देखते है
मकड़े को
बुनता हुआ एक जाल
फिर फंसता हुआ उसी जाल में भी ॥
फिर भी ...
हम बाज नहीं आते
बुनते रहते है
घर में /मंदिर में /समाज में
स्वं को फंसाने वाला एक जाल
और अंततः हम फंस जाते है ॥
फैसला अयोध्या का
सबको.....
फैसले का है इंतज़ार॥
कौन जीतेगा
कौन हारेगा
बजेगा शंख
या होगा अज़ान
या फिर शुरू हो जाएगा
एक नया घमासान
सोच -सोच कर सब है बेज़ार ॥
हम फैसले की नहीं
अपने दिल की सुनेगें
जब बैठा ही दिल में खुदा
तो बांकी बाते है बेकार ॥
कहीं ये फैसला
बढ़ा न दे
राम -रहीम का फासला
उजड़ न जाए
कितनों का घोसला
और समाज हो जाए तार -तार ॥
फैसले का है इंतज़ार॥
कौन जीतेगा
कौन हारेगा
बजेगा शंख
या होगा अज़ान
या फिर शुरू हो जाएगा
एक नया घमासान
सोच -सोच कर सब है बेज़ार ॥
हम फैसले की नहीं
अपने दिल की सुनेगें
जब बैठा ही दिल में खुदा
तो बांकी बाते है बेकार ॥
कहीं ये फैसला
बढ़ा न दे
राम -रहीम का फासला
उजड़ न जाए
कितनों का घोसला
और समाज हो जाए तार -तार ॥
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
अयोध्या --तीन कविताएं
.............(१)..........
अयोध्या को
हमने बना दिया है
एक अखाडा
जहां राम और रहीम का दंगल
कराने को आमदा है हमलोग ॥
ऊपर बैठा इश्वर
ठठाकर हंसता है
कहता है
मैंने बनाया मनुष्यों और जानवरों को
मगर जानवरों ने नहीं बनाया
अपना धर्म इंसानों की तरह ॥
............(२)................
मुझे तलाश है
हिन्दू धर्म मानने वाली
एक अदद गाय की
ताकि ,उसका दूध
मैं पी सकू और
पिला सकू अपने बच्चे को
क्योकि मैं हिन्दू हूँ ॥
मेरा मुस्लिम मित्र भी
तलाश में है
मुस्लिम धर्म मानने वाली गाय की
ताकि वह
उसका दूध अपने बच्चे को पिला सके ॥
हम दोनों
अयोध्या आये है
ऐसे ही गाय की खोज में
ओ !....
अयोध्या के मौलवियों /पूजारियो
अगर कही मिलता हो
अलग -अलग धर्म मानने वाले जानवर
तो अवश्य बताये ॥
-----------(३).......
अयोध्या .....
जहां मिलता था अहर्निश
शंख और घड़ियाल का स्वर
अब मिलती है
सैनिकों के बुटो की खटखटाहट ॥
मुस्लिम कहते है
वह मस्जिद कैसा
जिसमे नहीं पढ़ी गयी नवाज़ १२ वषों तक
हिन्दू कहते है
कण -कण में विराजते है राम ॥
तो फिर यह कैसी लड़ाई
कितना फर्क है
हमारी कथनी /करनी में
अयोध्या को
हमने बना दिया है
एक अखाडा
जहां राम और रहीम का दंगल
कराने को आमदा है हमलोग ॥
ऊपर बैठा इश्वर
ठठाकर हंसता है
कहता है
मैंने बनाया मनुष्यों और जानवरों को
मगर जानवरों ने नहीं बनाया
अपना धर्म इंसानों की तरह ॥
............(२)................
मुझे तलाश है
हिन्दू धर्म मानने वाली
एक अदद गाय की
ताकि ,उसका दूध
मैं पी सकू और
पिला सकू अपने बच्चे को
क्योकि मैं हिन्दू हूँ ॥
मेरा मुस्लिम मित्र भी
तलाश में है
मुस्लिम धर्म मानने वाली गाय की
ताकि वह
उसका दूध अपने बच्चे को पिला सके ॥
हम दोनों
अयोध्या आये है
ऐसे ही गाय की खोज में
ओ !....
अयोध्या के मौलवियों /पूजारियो
अगर कही मिलता हो
अलग -अलग धर्म मानने वाले जानवर
तो अवश्य बताये ॥
-----------(३).......
अयोध्या .....
जहां मिलता था अहर्निश
शंख और घड़ियाल का स्वर
अब मिलती है
सैनिकों के बुटो की खटखटाहट ॥
मुस्लिम कहते है
वह मस्जिद कैसा
जिसमे नहीं पढ़ी गयी नवाज़ १२ वषों तक
हिन्दू कहते है
कण -कण में विराजते है राम ॥
तो फिर यह कैसी लड़ाई
कितना फर्क है
हमारी कथनी /करनी में
शनिवार, 18 सितंबर 2010
मैं इंद्र का पुजारी हूँ
कुबेर को नहीं पूजता मैं
मैं तो इंद्र का पुजारी हूँ
आप खुश होते होंगे /मर्सिडीज खरीद कर
मैं खुश हूँ /ट्रैकटर खरीदकर
जी हाँ ....मैं किसान हूँ ॥
सूरज को नाचता है
मेरे खेतों में लगा सूरजमुखी का फूल
पुलकित हो जाता है
मेरा रोम -रोम /जब देखता हूँ
रस से भरे गन्ने के मोटे-मोटे डंठल
ताजे मकई के हरे -हरे भुट्टे
ताजे फल /ताज़ी सब्जियां
ताज़ी मुली और गाजर के
स्वाद का क्या कहना ॥
शायद यही है
मेरे स्वस्थ शरीरका गहना ॥
मेरे बच्चे ने
कृषि -विज्ञान में स्नातक
और कृषि प्रबंधन पढ़ा है
नई खेती की शुरुयात की है उसने
वर्मी कम्पोस्ट
और नए कृषि यंत्र की मदद से॥
किसानों को संगठित किया उसने
खाद्य -प्रसंकरण की कारखाना खोलेगा वह ॥
अपने कृषि उत्पाद वह
मिटटी के भाव नहीं बेचेगा ॥
मैं तो इंद्र का पुजारी हूँ
आप खुश होते होंगे /मर्सिडीज खरीद कर
मैं खुश हूँ /ट्रैकटर खरीदकर
जी हाँ ....मैं किसान हूँ ॥
सूरज को नाचता है
मेरे खेतों में लगा सूरजमुखी का फूल
पुलकित हो जाता है
मेरा रोम -रोम /जब देखता हूँ
रस से भरे गन्ने के मोटे-मोटे डंठल
ताजे मकई के हरे -हरे भुट्टे
ताजे फल /ताज़ी सब्जियां
ताज़ी मुली और गाजर के
स्वाद का क्या कहना ॥
शायद यही है
मेरे स्वस्थ शरीरका गहना ॥
मेरे बच्चे ने
कृषि -विज्ञान में स्नातक
और कृषि प्रबंधन पढ़ा है
नई खेती की शुरुयात की है उसने
वर्मी कम्पोस्ट
और नए कृषि यंत्र की मदद से॥
किसानों को संगठित किया उसने
खाद्य -प्रसंकरण की कारखाना खोलेगा वह ॥
अपने कृषि उत्पाद वह
मिटटी के भाव नहीं बेचेगा ॥
शुक्रवार, 17 सितंबर 2010
जवानी
बुधवार, 15 सितंबर 2010
सूई
सूई ....
बड़ा ही डर लगता था /बचपन में
चार की लम्बी सूई से ॥
अब ये सूई
खून चूसवा हो गई है
हम डॉक्टर बदलते है
जब उनकी सूई बेअसर होती है ॥
मगर ...तब तक डॉक्टर
चूस लेते है खून
डेंगू मच्छड़ो की तरह ॥
मास्टर की सूई का असर
तब चलता है
जब हमारे बच्चे लाते है
इम्तहान में ३० /१०० ॥
खरी -खोटी बातों की
सूई लगाती है
सास -बहु एक दुसरे को ॥
टैक्स की मोटी सूई
घोपती है सरकार॥
वालीवुड /होल्लीवूद के कलाकार
नए फैशन के सूई लगाते है
मगर भाई ,...
पुलिस की सूई
नक्सलवादी बनाती है ॥
बड़ा ही डर लगता था /बचपन में
चार की लम्बी सूई से ॥
अब ये सूई
खून चूसवा हो गई है
हम डॉक्टर बदलते है
जब उनकी सूई बेअसर होती है ॥
मगर ...तब तक डॉक्टर
चूस लेते है खून
डेंगू मच्छड़ो की तरह ॥
मास्टर की सूई का असर
तब चलता है
जब हमारे बच्चे लाते है
इम्तहान में ३० /१०० ॥
खरी -खोटी बातों की
सूई लगाती है
सास -बहु एक दुसरे को ॥
टैक्स की मोटी सूई
घोपती है सरकार॥
वालीवुड /होल्लीवूद के कलाकार
नए फैशन के सूई लगाते है
मगर भाई ,...
पुलिस की सूई
नक्सलवादी बनाती है ॥
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
कुदाल छलांग नहीं लगा सकता
सोना छलांग लगाता है
चाँदी भी उछलती है
और ....
शेअर बाज़ार के क्या कहने
सब खुश होते है ॥
मगर ...
चावल /गेहूँ /दाल
नहीं लगा पाते छलांग
ये जब सरकते है
सब लोग कहते है
महँगाई डायन आ गई ॥
इन्हें किसानों ने उपजाया है
इनके पैर नहीं होते
उछलेगे कहाँ से
इन्हें तो हम /सरकार
गिराने की फिराक में रहते है ॥
आखिर ...
कुदाल कितना उछल सकता है ?
चाँदी भी उछलती है
और ....
शेअर बाज़ार के क्या कहने
सब खुश होते है ॥
मगर ...
चावल /गेहूँ /दाल
नहीं लगा पाते छलांग
ये जब सरकते है
सब लोग कहते है
महँगाई डायन आ गई ॥
इन्हें किसानों ने उपजाया है
इनके पैर नहीं होते
उछलेगे कहाँ से
इन्हें तो हम /सरकार
गिराने की फिराक में रहते है ॥
आखिर ...
कुदाल कितना उछल सकता है ?
छोड़ो पब ,भजो रब
छोड़ दिया पब को
जोड़ लिया रब को
निकल पड़ा मैं
गले लगाने सब को ॥
जबसे सजाने लगा हूँ
प्रभु के आरती की थाली
सजाने लगे है ,प्रभु भी
मेरा हृदय ,बन कर माली ॥
वंदना है मेरी ...
साथ ले चल तू सबको ॥
जब से मन ने किया है
सदविचारों का पान
कलुषित हृदय गाने लगा है
नित्य नए अमृत गान
अर्चना है मेरी
संभाल ले तू सबको ॥
जोड़ लिया रब को
निकल पड़ा मैं
गले लगाने सब को ॥
जबसे सजाने लगा हूँ
प्रभु के आरती की थाली
सजाने लगे है ,प्रभु भी
मेरा हृदय ,बन कर माली ॥
वंदना है मेरी ...
साथ ले चल तू सबको ॥
जब से मन ने किया है
सदविचारों का पान
कलुषित हृदय गाने लगा है
नित्य नए अमृत गान
अर्चना है मेरी
संभाल ले तू सबको ॥
सोमवार, 13 सितंबर 2010
तुम्हें नरसिंह बनना होगा
तुम मुझे जो भी कह लो
सुन लूंगा चुपचाप
चाहे मुझे तुम
पाखंडी /देशद्रोही /बलात्कारी
व्यवस्थाओ को तोड़ने वाला
या फिर उग्रवादी विचारों वाला कह लो
तुम जानते हो /इन बातों से
मैं तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ॥
भला , सिर्फ विचारों के प्रहार से
क्या बिगड़ेगा तुम्हारा
जरा ,..एक चोर को चोर कह कर देखो
कुरूरता के भयानक पंजे
चीथड़े -चीथड़े कर देगी तुम्हें
अरे ..छोड़ो ....
सच का सामना कितने लोग करते है ॥
जानता हूँ ...
सत्य कर्म पर अग्रसर प्रह्लाद पर
जुल्म ढाते हिरण्यकश्य्पू का वध करने
कोई नरसिंह नहीं आयगा ॥
मेरे दोस्तों ...
लगाना होगा इन्कलाब
जलाना होगा
अपने अधिकारों के तेल से बने लुकाठी का मशाल
जागो ...
तुम्हारे अंगों में पानी नहीं /लाल खून है
बढ़ने दो अपने नाखुनों को
हो जाने दो केश -राशि लम्बे
बन जाओ नरसिंह
वध कर दो उन हिरनकश्पुओ का
जो....
भ्रस्टाचार/आतंकबाद /नक्सलवाद के
आग की लपटें फैला कर
कर रहे है देश को खोखला
अंदर ही अन्दर ॥
सुन लूंगा चुपचाप
चाहे मुझे तुम
पाखंडी /देशद्रोही /बलात्कारी
व्यवस्थाओ को तोड़ने वाला
या फिर उग्रवादी विचारों वाला कह लो
तुम जानते हो /इन बातों से
मैं तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ॥
भला , सिर्फ विचारों के प्रहार से
क्या बिगड़ेगा तुम्हारा
जरा ,..एक चोर को चोर कह कर देखो
कुरूरता के भयानक पंजे
चीथड़े -चीथड़े कर देगी तुम्हें
अरे ..छोड़ो ....
सच का सामना कितने लोग करते है ॥
जानता हूँ ...
सत्य कर्म पर अग्रसर प्रह्लाद पर
जुल्म ढाते हिरण्यकश्य्पू का वध करने
कोई नरसिंह नहीं आयगा ॥
मेरे दोस्तों ...
लगाना होगा इन्कलाब
जलाना होगा
अपने अधिकारों के तेल से बने लुकाठी का मशाल
जागो ...
तुम्हारे अंगों में पानी नहीं /लाल खून है
बढ़ने दो अपने नाखुनों को
हो जाने दो केश -राशि लम्बे
बन जाओ नरसिंह
वध कर दो उन हिरनकश्पुओ का
जो....
भ्रस्टाचार/आतंकबाद /नक्सलवाद के
आग की लपटें फैला कर
कर रहे है देश को खोखला
अंदर ही अन्दर ॥
फूलों ने हँस कर बताया
पूरी तरह
खिली भी नहीं थी
कली थी
कल तो तोडा था
मेरे बच्चे ने
गणेश -पूजा के लिए ॥
आज पुनः
पूजा से पहले देखा
वह कली
अब फूल बन कर हँस रही थी ॥
वह कह रही थी ...
मुझे मालूम है
तुम मुझे फेंक दोगे
कूड़ेदान में ॥
मैंने ईश्वर के चरणों में रहकर
सिख लिया ज्ञान ॥
तुम्हारी तरह
मंदिर /मस्जिद/गुरु द्वारा /चर्च में
नहीं भटकता ॥
और सुनो .....
मैं तुम्हारी तरह
बात -बात पर नहीं रोता
परिवर्तन से डरना कैसा ॥
रविवार, 12 सितंबर 2010
मैं बूढ़ा नहीं होऊंगा
मैंने ....
अपने दोस्त से कहा
क्या बचपन लौट सकता है ?
क्यों नहीं ...
बचपन के दोस्तों से मिलिए
पुरानी बातों को याद कीजिये
दिल खोल कर हंसिये
आपका बचपन लौट जाएगा ॥
वैसा ही किया मैंने
लंगोटिया दोस्तों के पास गया
उन्हें गले लगाया
खूब बातें की
अपने प्यार की
शैतानी की
पतंग काटने की
और कागज से बने नाव के
बहते पानी में दौड़ लगाने की ॥
सच में ....
जब तक मेरे दोस्त
इस दुनियाँ में रहेगे
मैं बूढ़ा नहीं होऊंगा ॥
अपने दोस्त से कहा
क्या बचपन लौट सकता है ?
क्यों नहीं ...
बचपन के दोस्तों से मिलिए
पुरानी बातों को याद कीजिये
दिल खोल कर हंसिये
आपका बचपन लौट जाएगा ॥
वैसा ही किया मैंने
लंगोटिया दोस्तों के पास गया
उन्हें गले लगाया
खूब बातें की
अपने प्यार की
शैतानी की
पतंग काटने की
और कागज से बने नाव के
बहते पानी में दौड़ लगाने की ॥
सच में ....
जब तक मेरे दोस्त
इस दुनियाँ में रहेगे
मैं बूढ़ा नहीं होऊंगा ॥
शनिवार, 11 सितंबर 2010
अकुलाती मेरी बाँहें
मौन निमंत्रण सी तेरी आँखे
गर्माहट देती साँसे
कलि खिलकर फूल बनी है
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाहें ॥
छन-छना-छन कंगन के संग
पायलिया सुर में गाये
नभ के पंछी
तुम्हें देखकर
पल -पल बदले राहें ॥
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाँहें ॥
खेत के पीले सरसों
तुम्हें छूने को तरसें
मेहँदी के
रंगों के घुलकर
कितना भरू मैं आहें ॥
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाँहें ॥
गर्माहट देती साँसे
कलि खिलकर फूल बनी है
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाहें ॥
छन-छना-छन कंगन के संग
पायलिया सुर में गाये
नभ के पंछी
तुम्हें देखकर
पल -पल बदले राहें ॥
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाँहें ॥
खेत के पीले सरसों
तुम्हें छूने को तरसें
मेहँदी के
रंगों के घुलकर
कितना भरू मैं आहें ॥
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाँहें ॥
" बादलों की चाहत '"
मैं पहाड़ो के ऊपर क्यों हूँ
...कोई बतायेगा ?
ये पहाड़ो के बंजर पत्थर
नहीं देखना मुझे अब
मुझे तो हरियाली पसंद है
...मैं बरसुगा ...
.इन्ही के ऊपर
अगली बार जब कोई आएगा
तो मेरा दोस्त पहाड़
उसे छाया देगा ..
शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
एहसास
पहाड़ो के
शिखर पर बैठे पत्थर
समय के चक के साथ
टूट कर
समा चूके है
सडकों के नीचे ॥
पत्थर कहता है
आज जाना मैंने
दुःख किसे कहते है ॥
शिखर पर बैठे पत्थर
समय के चक के साथ
टूट कर
समा चूके है
सडकों के नीचे ॥
पत्थर कहता है
आज जाना मैंने
दुःख किसे कहते है ॥
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
गरीब के आंसू
कहते हैं
बड़ा दम होता है
गरीब की आंखों से
निकलने वाले आंसुओ में ॥
भष्म कर देते है
पत्थरो से बने महलों को ॥
ठीक उसी तरह
जैसे नदी का बहता
शीतल -कोमल जल
बालू बना देती है
तोड़ -तोड़ कर
पत्थरो को॥
बड़ा दम होता है
गरीब की आंखों से
निकलने वाले आंसुओ में ॥
भष्म कर देते है
पत्थरो से बने महलों को ॥
ठीक उसी तरह
जैसे नदी का बहता
शीतल -कोमल जल
बालू बना देती है
तोड़ -तोड़ कर
पत्थरो को॥
बुधवार, 8 सितंबर 2010
चीटियाँ और हम
उफ़ ये चीटियाँ
बिना बजाये सीटियाँ
खोज लेती है मिठाईयाँ
ठीक मनुष्यों की तरह
जैसे खोज लेते है हम
सारे हथकंडे अपने स्वार्थ पूर्ति के ॥
एक दिन .....
माँ ने तरकीब निकाली
मिठाईयों को बचाने की
किचेन के टेबल के
चारों कोनों के नीचे रख दिया
पानी से भरे कटोरे ॥
वाह रे पानी !!
चीटियों को तो हमने रोक दिया
हमें कौन रोकेगा
स्वार्थ की मिठाईयाँ खाने से ॥
क्या गुरु के सानिध्य में
पूजा में /जप -तप में /भजन में
पानी जैसा दम है ??
बिना बजाये सीटियाँ
खोज लेती है मिठाईयाँ
ठीक मनुष्यों की तरह
जैसे खोज लेते है हम
सारे हथकंडे अपने स्वार्थ पूर्ति के ॥
एक दिन .....
माँ ने तरकीब निकाली
मिठाईयों को बचाने की
किचेन के टेबल के
चारों कोनों के नीचे रख दिया
पानी से भरे कटोरे ॥
वाह रे पानी !!
चीटियों को तो हमने रोक दिया
हमें कौन रोकेगा
स्वार्थ की मिठाईयाँ खाने से ॥
क्या गुरु के सानिध्य में
पूजा में /जप -तप में /भजन में
पानी जैसा दम है ??
नया तराना
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
बंदरों को तो फंसना ही है
मित्रों ,यह कविता बिहार में अक्टूबर -नवम्बर २०१० में होने वाले चुनाव के परिपेक्ष्य में लिखा गया है ॥लालटेन
तीर ,हाथ और कमल ...विभिन्न राजनितिक दलों के चुनाव चिन्ह है //
आ गया मदारी
बजा रहा है डुगडुगी
बंदरों में होने लगी है सुगबुगी
अनेकों हैं नुस्खे
बंदरों को रिझाने के
नज़र डालिएगा इन पर जरा हंस के ॥
पिछली गल्तियाँ अब नहीं करूगाँ
सवर्णों को भी टिकट दूगाँ॥
अपने शाले ने भोंका था भाला
लगाने चला था मेरे ही घर में ताला
इसीलिए घर से उसको निकाला
रोशनी फैलाना ही बचा है मेरा काम
चाहे जाए तो जाए मेरा प्राण
आप ही हैं मेरे कृपा निधान
बातें सुन लो मेरी खोलकर अपने कान ॥
दौड़ पड़े है बन्दर
मदारी ने ऐसा मारा मंतर
विकास का टायर
भाषणों से होने लगा पंचर
लगता है जाति की हवा चलेगी
ईसीसे सबकी दाल गलेगी॥
दिल्ली का फंडा
बिहार में बना है गुल्ली -डंडा
यहाँ "हाथ " का साथ नहीं
"लालटेन " बिन रात नहीं
बिना" तीर" के घात नहीं
"कमल" बिना कोई बात नहीं ॥
तीर ,हाथ और कमल ...विभिन्न राजनितिक दलों के चुनाव चिन्ह है //
आ गया मदारी
बजा रहा है डुगडुगी
बंदरों में होने लगी है सुगबुगी
अनेकों हैं नुस्खे
बंदरों को रिझाने के
नज़र डालिएगा इन पर जरा हंस के ॥
पिछली गल्तियाँ अब नहीं करूगाँ
सवर्णों को भी टिकट दूगाँ॥
अपने शाले ने भोंका था भाला
लगाने चला था मेरे ही घर में ताला
इसीलिए घर से उसको निकाला
रोशनी फैलाना ही बचा है मेरा काम
चाहे जाए तो जाए मेरा प्राण
आप ही हैं मेरे कृपा निधान
बातें सुन लो मेरी खोलकर अपने कान ॥
दौड़ पड़े है बन्दर
मदारी ने ऐसा मारा मंतर
विकास का टायर
भाषणों से होने लगा पंचर
लगता है जाति की हवा चलेगी
ईसीसे सबकी दाल गलेगी॥
दिल्ली का फंडा
बिहार में बना है गुल्ली -डंडा
यहाँ "हाथ " का साथ नहीं
"लालटेन " बिन रात नहीं
बिना" तीर" के घात नहीं
"कमल" बिना कोई बात नहीं ॥
सोमवार, 6 सितंबर 2010
२१ व़ी सदी के मित्र
पहले के लोग कहते थे
"मुझे मेरे मित्रों से बचाओ "
भाई ...अब
मैं तो लगा हूँ
मित्र बनाओ अभियान में ॥
२१ व़ी सदी के मित्र
तंग नहीं करते
वे अपने मित्रों से नहीं कहते
चलो न ....
तोड़ लेते है
रामू काका के खेत से
रस भरे मीठे गन्ने
उखाड़ लेते है
हरे चने की झंगरी
मटर की हरी -हरी फलियाँ ॥
न पेड़ों पर चढ़कर
गोरैया के अंडे खोजने की जिद करते है ॥
नहीं कहते
कुऐं की जगत पर बैठ कर नहाने को ॥
२० व़ी सदी के मित्र
ऐसा करते होंगें ॥
अब के मित्र
टेलीफोन कर भी तंग नहीं करते
गाना सुनवाते है
कविता पढवाते है
अपने कार्टून दिखाते है
और तो और
अपने बर्थडे पर
कुछ भी खर्च नहीं लगता ॥
इसके उलट
इन्टरनेट से मिलती है
फूलों के गुलदस्ते और मिठाईयाँ॥
अब कहाँ नहीं है मेरे मित्र
अजी ,भारत की बात छोडिये
विदेशों में भी बैठे मेरे मित्र
कविताएं पढ़ते है मेरी ॥
"मुझे मेरे मित्रों से बचाओ "
भाई ...अब
मैं तो लगा हूँ
मित्र बनाओ अभियान में ॥
२१ व़ी सदी के मित्र
तंग नहीं करते
वे अपने मित्रों से नहीं कहते
चलो न ....
तोड़ लेते है
रामू काका के खेत से
रस भरे मीठे गन्ने
उखाड़ लेते है
हरे चने की झंगरी
मटर की हरी -हरी फलियाँ ॥
न पेड़ों पर चढ़कर
गोरैया के अंडे खोजने की जिद करते है ॥
नहीं कहते
कुऐं की जगत पर बैठ कर नहाने को ॥
२० व़ी सदी के मित्र
ऐसा करते होंगें ॥
अब के मित्र
टेलीफोन कर भी तंग नहीं करते
गाना सुनवाते है
कविता पढवाते है
अपने कार्टून दिखाते है
और तो और
अपने बर्थडे पर
कुछ भी खर्च नहीं लगता ॥
इसके उलट
इन्टरनेट से मिलती है
फूलों के गुलदस्ते और मिठाईयाँ॥
अब कहाँ नहीं है मेरे मित्र
अजी ,भारत की बात छोडिये
विदेशों में भी बैठे मेरे मित्र
कविताएं पढ़ते है मेरी ॥
तेरा साथ हो तो
तेरा साथ हो
और
हाथो में हाथ
डाले चलेगें हम
नाप लेगे सारी दूरियाँ
मिटा देगे अन्धकार
दिखा देगे ....
सब तलाक़ शुदा दम्पतियों को
कैसे किया जाता है प्यार ..
और
हाथो में हाथ
डाले चलेगें हम
नाप लेगे सारी दूरियाँ
मिटा देगे अन्धकार
दिखा देगे ....
सब तलाक़ शुदा दम्पतियों को
कैसे किया जाता है प्यार ..
सलाम -बंदगी
बसंत के फूल को सहना पड़ता है ,पतझड़ का धूल
अपनी जवानी को सहना पड़ता है ,बुढ़ापे का शूल ॥
धन -लोलुपता और भौतिक सुन्दरता बनाने के क्रम में
हम नहीं बना सके ,सामाजिक रिश्तों का स्वस्थ पुल ॥
प्रकृति की भाषा समझने में ,अबोध है बिलकुल
खनकते है सिक्के ,जब सब रहते है मिलजुल ॥
मेरे दोस्तों ,कर लो खुदा को सलाम बंदगी
न जाने कब जिंदगी की बत्ती हो जाए गुल ॥
अपनी जवानी को सहना पड़ता है ,बुढ़ापे का शूल ॥
धन -लोलुपता और भौतिक सुन्दरता बनाने के क्रम में
हम नहीं बना सके ,सामाजिक रिश्तों का स्वस्थ पुल ॥
प्रकृति की भाषा समझने में ,अबोध है बिलकुल
खनकते है सिक्के ,जब सब रहते है मिलजुल ॥
मेरे दोस्तों ,कर लो खुदा को सलाम बंदगी
न जाने कब जिंदगी की बत्ती हो जाए गुल ॥
रविवार, 5 सितंबर 2010
डाकू
सन्नाटो को चीरती
घोड़ों की टाप
और घुड़सवार की रोबदार आवाज
डाकुओ की पहचान थी
चम्बलो की बीहड़ो में रहते थे ॥
आज भी कायम है
डाकुओ की बादशाहत
हमने तो पहनाया था ताज
लोकतंत्र के सिपाही का
उस सिपाही का
जिसकी आवाज लोकतंत्र में
गोलियों से भारी होती है ॥
मगर ....
इन सिपाहियों की आवाज
कुंद हो गई है
नाख़ून और पंजे बढ़ गए है ॥
इन्होने अपनी सेवा में
लगा रखी है ,कई पुतलीबाई
घोड़ो की जगह है
चमचमाती गाड़ियाँ॥
एक विशेष अंतर आया है ...
पहले
हम डाकुओ से डरते थे
आज
डाकू हमें डराते है ॥
घोड़ों की टाप
और घुड़सवार की रोबदार आवाज
डाकुओ की पहचान थी
चम्बलो की बीहड़ो में रहते थे ॥
आज भी कायम है
डाकुओ की बादशाहत
हमने तो पहनाया था ताज
लोकतंत्र के सिपाही का
उस सिपाही का
जिसकी आवाज लोकतंत्र में
गोलियों से भारी होती है ॥
मगर ....
इन सिपाहियों की आवाज
कुंद हो गई है
नाख़ून और पंजे बढ़ गए है ॥
इन्होने अपनी सेवा में
लगा रखी है ,कई पुतलीबाई
घोड़ो की जगह है
चमचमाती गाड़ियाँ॥
एक विशेष अंतर आया है ...
पहले
हम डाकुओ से डरते थे
आज
डाकू हमें डराते है ॥
शनिवार, 4 सितंबर 2010
अनुभव
एक दिन में नहीं आता
धीरे -धीरे
जेहन में पसरती है अनुभव
लडखडाती है
पुनः कुलांचे भरती है ॥
कभी -कभी लगता है
हम पूर्ण हो गए है
अनुभवी हो गए है
इतराने लगते है अपने अनुभव पर ॥
मगर ....
फिर कुछ ऐसा घट जाता है
अनुभव का लम्बा वृक्ष
बौना हो जाता है ॥
लगता है
अभी तो हम बच्चे है
टूट जाता है
अनुभवी होने का दंभ ॥
हम सीखते है
अनुभव बटोरना
शायाद ...जीवन पर्यन्त॥
धीरे -धीरे
जेहन में पसरती है अनुभव
लडखडाती है
पुनः कुलांचे भरती है ॥
कभी -कभी लगता है
हम पूर्ण हो गए है
अनुभवी हो गए है
इतराने लगते है अपने अनुभव पर ॥
मगर ....
फिर कुछ ऐसा घट जाता है
अनुभव का लम्बा वृक्ष
बौना हो जाता है ॥
लगता है
अभी तो हम बच्चे है
टूट जाता है
अनुभवी होने का दंभ ॥
हम सीखते है
अनुभव बटोरना
शायाद ...जीवन पर्यन्त॥
झूट बोलने की जिद
यह जानते हुए
सच की खुशबू
एक दिन फैलेगी ही
उर्जा व्यर्थ गंवाते है हम
ढकने में उसे
झूठ की चादरों से ॥
सच वह ओस है
जिसे प्रत्येक दिन
झूठ का तमतमाता सूरज
गायब कर देता है ॥
मगर पुनः
कल सबेरे
सच का ओस
फिर हाज़िर हो जाता है
अपने चमकीले रूप में ॥
मेरे दोस्त ...
सच को परास्त करना नामुमकिन है
छोड़ दो जिद
झूट बोलने की ॥
सच की खुशबू
एक दिन फैलेगी ही
उर्जा व्यर्थ गंवाते है हम
ढकने में उसे
झूठ की चादरों से ॥
सच वह ओस है
जिसे प्रत्येक दिन
झूठ का तमतमाता सूरज
गायब कर देता है ॥
मगर पुनः
कल सबेरे
सच का ओस
फिर हाज़िर हो जाता है
अपने चमकीले रूप में ॥
मेरे दोस्त ...
सच को परास्त करना नामुमकिन है
छोड़ दो जिद
झूट बोलने की ॥
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010
सरकारी बन्दूक
बन्दूक .....
एक भय है
एक डर है
लोगों को डराने की चीज है
मारने की नहीं ॥
इससे गोलीयाँ
शायद ही कभी निकलती हो ॥
जो इस बात को समझ गया
वह बन्दूक से नहीं डरता ॥
बल्कि ...
चाकू दिखाकर
छीन लेता है बन्दूक ॥
हमारे नक्सली
सरकारी बंदूकों की भाषा
अच्छी तरह पढ़ चूके है ॥
एक भय है
एक डर है
लोगों को डराने की चीज है
मारने की नहीं ॥
इससे गोलीयाँ
शायद ही कभी निकलती हो ॥
जो इस बात को समझ गया
वह बन्दूक से नहीं डरता ॥
बल्कि ...
चाकू दिखाकर
छीन लेता है बन्दूक ॥
हमारे नक्सली
सरकारी बंदूकों की भाषा
अच्छी तरह पढ़ चूके है ॥
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