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मंगलवार, 28 सितंबर 2010

जाल

हालांकि ....
मैं /आप /हमसब
रोज देखते है
मकड़े को
बुनता हुआ एक जाल
फिर फंसता हुआ उसी जाल में भी ॥

फिर भी ...
हम बाज नहीं आते
बुनते रहते है
घर में /मंदिर में /समाज में
स्वं को फंसाने वाला एक जाल
और अंततः हम फंस जाते है ॥

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