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बुधवार, 8 सितंबर 2010

चीटियाँ और हम

उफ़ ये चीटियाँ
बिना बजाये सीटियाँ
खोज लेती है मिठाईयाँ
ठीक मनुष्यों की तरह
जैसे खोज लेते है हम
सारे हथकंडे अपने स्वार्थ पूर्ति के ॥

एक दिन .....
माँ ने तरकीब निकाली
मिठाईयों को बचाने की
किचेन के टेबल के
चारों कोनों के नीचे रख दिया
पानी से भरे कटोरे ॥

वाह रे पानी !!
चीटियों को तो हमने रोक दिया
हमें कौन रोकेगा
स्वार्थ की मिठाईयाँ खाने से ॥
क्या गुरु के सानिध्य में
पूजा में /जप -तप में /भजन में
पानी जैसा दम है ??

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