एक दिन में नहीं आता
धीरे -धीरे
जेहन में पसरती है अनुभव
लडखडाती है
पुनः कुलांचे भरती है ॥
कभी -कभी लगता है
हम पूर्ण हो गए है
अनुभवी हो गए है
इतराने लगते है अपने अनुभव पर ॥
मगर ....
फिर कुछ ऐसा घट जाता है
अनुभव का लम्बा वृक्ष
बौना हो जाता है ॥
लगता है
अभी तो हम बच्चे है
टूट जाता है
अनुभवी होने का दंभ ॥
हम सीखते है
अनुभव बटोरना
शायाद ...जीवन पर्यन्त॥
बहुत सुंदर रचना. मैंने अपने ब्लॉग संग्रह को एक नया नाम दिया है.
जवाब देंहटाएंआपका पूर्ववत प्रेम अपेक्षित है .
www.the-royal-salute.blogspot.com
thanks...sumant ji
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