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सोमवार, 6 सितंबर 2010

२१ व़ी सदी के मित्र

पहले के लोग कहते थे
"मुझे मेरे मित्रों से बचाओ "
भाई ...अब
मैं तो लगा हूँ
मित्र बनाओ अभियान में ॥

२१ व़ी सदी के मित्र
तंग नहीं करते
वे अपने मित्रों से नहीं कहते
चलो न ....
तोड़ लेते है
रामू काका के खेत से
रस भरे मीठे गन्ने
उखाड़ लेते है
हरे चने की झंगरी
मटर की हरी -हरी फलियाँ ॥

पेड़ों पर चढ़कर
गोरैया के अंडे खोजने की जिद करते है ॥
नहीं कहते
कुऐं की जगत पर बैठ कर नहाने को ॥

२० व़ी सदी के मित्र
ऐसा करते होंगें ॥

अब के मित्र
टेलीफोन कर भी तंग नहीं करते
गाना सुनवाते है
कविता पढवाते है
अपने कार्टून दिखाते है
और तो और
अपने बर्थडे पर
कुछ भी खर्च नहीं लगता ॥
इसके उलट
इन्टरनेट से मिलती है
फूलों के गुलदस्ते और मिठाईयाँ॥

अब कहाँ नहीं है मेरे मित्र
अजी ,भारत की बात छोडिये
विदेशों में भी बैठे मेरे मित्र
कविताएं पढ़ते है मेरी ॥

2 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा बबन जी, अब तो पता भी नहीं होता की कौन मित्र कहाँ बैठा हमारी रचनाएँ पढ़ रहा है. जन्मदिन याद रखने की जहमत से भी मुक्त कर दिया है फेसबुक ने. तो हो जाए एक जाम... इक्कीसवीं सदी की दोस्ती के नाम

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