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शनिवार, 11 सितंबर 2010

अकुलाती मेरी बाँहें

मौन निमंत्रण सी तेरी आँखे
गर्माहट देती साँसे
कलि खिलकर फूल बनी है
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाहें ॥

छन-छना-छन कंगन के संग
पायलिया सुर में गाये
नभ के पंछी
तुम्हें देखकर
पल -पल बदले राहें ॥
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाँहें ॥

खेत के पीले सरसों
तुम्हें छूने को तरसें
मेहँदी के
रंगों के घुलकर
कितना भरू मैं आहें ॥
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाँहें ॥

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