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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

प्रिय ! मेरी बात सुनो


आप प्रकृति की अनुपम रचना है
मगर ...
कृत्रिम प्रसाधनो का लेपन
बनावटीपन जैसा लगता है ॥
मैं आपको रंगना चाहता हूँ
प्रकृति के रंगों से ॥

मैं आपको देना चाहता हूँ
टेसू के फूलों की लालिमा
कपोलों पर लगाने के लिए ॥
मृग के नाभि की थोड़ी सी कस्तूरी
देह -यष्टि पर लगाने के लिए ॥
फूलों के रंग -बिरंगे परागकण
माथे की बिंदी सजाने के लिए ॥
और तो और
थोड़ी सी लज्जा मांग कर लाई है मैंने
आपके लिए
लाजवंती के पौधों से ॥

इसके बाद
हवाएं आपसे अठखेलियाँ करेंगी
इन्द्रधनुष शरमा जाएगा
और तितलियाँ
अजूबा -अजूबा कह शोर मचा देंगी ॥

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