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मंगलवार, 14 सितंबर 2010

कुदाल छलांग नहीं लगा सकता

सोना छलांग लगाता है
चाँदी भी उछलती है
और ....
शेअर बाज़ार के क्या कहने
सब खुश होते है ॥

मगर ...
चावल /गेहूँ /दाल
नहीं लगा पाते छलांग
ये जब सरकते है
सब लोग कहते है
महँगाई डायन आ गई ॥

इन्हें किसानों ने उपजाया है
इनके पैर नहीं होते
उछलेगे कहाँ से
इन्हें तो हम /सरकार
गिराने की फिराक में रहते है ॥

आखिर ...
कुदाल कितना उछल सकता है ?

4 टिप्‍पणियां:

  1. आखिर ...
    कुदाल कितना उछल सकता है ?

    काफी तीखा व्यंग है आपकी पंक्तियों में ....
    बहुत खूब....!!

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  2. bhai yadi sahi krishi niti banai jaye toh yakin maniye ye kudal itna acha kudega ki hamare desh ka her nagric jhoom jayega or desh per maha lakshmi ji ki kirpa barasne lagegi ......aisa abh jaroor hone wala hai kiyoki aisa sochne wala hamara sabka pyara comman man ki sunane wala ek matra bhartiya neta @rahul gandhi ji jo hai hamare sabke her sujhav ko we bariki se dekhte or perkhte hai phir bina bhed bhav ke uska upyog desh hit mai karne ki sachi soch rakhte hai so abh kudal ka uchal ka aanad lijiyega ....

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  3. बबन जी | अच्छी रचना है और सोंच भी गहरी है |
    इंसानों और राजनेताओं की मानसिकता तो इतनी शर्मसार हो गयी हैं या यूँ कहिये की पतन की गहराई में इतनी उतर चुकी हैं की एक बक्त ऐसा आएगा जब इन्सान के पास सोना, पैसा सब होगा मगर हो सकता है वो खाने को तरस जाये |

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