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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

मैं कवि हू

मैं मछुआरा नहीं
जो नायलोन से बने जाल से
मछली पकड़ लू
मैं कवि हू
शब्दों के बने जाल से
भाव पकड़ता हू ॥

मैं राम नहीं
जो अपने बाण से
समुद्र सूखा दू
मैं कवि हू
नश्तर की तरह चुभने वाला
व्यंग बाण चलाता हू ॥

मैं माली नहीं
जो फूलों को तोड़कर
एक माला बना लू
मैं कवि हू
हर दिल में नित्य
हास्य -कमल खिलाता हू ॥

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