अब सर से पानी निकलने लगा है
तैरता मन भी अब डूबने लगा है ॥
सूनी माँ की आंखों में , बेटे का इंतज़ार है
अब ,सिर्फ उनका ताबूत घर आने लगा है ॥
आशा लगाईं थी कुदाल ने , लाल कोठी पर
कपास के खेतों में भी अब दरार आने लगा है ॥
अब खाव्बो की मलिका , मरने लगी है
इच्छाओ का घर भी अब ,जलने लगा है ॥
मैं कुछ कर न सका दोस्तों, देश के लिए
इसका मलाल अब मुझे , आने लगा है॥
लाल कोठी-संसद
आज की राजनीति, तथा उसका समाज और सामान्य लोगों के संबंध को बहुत हीं कम पंक्तियों में व्यक्त क्राने के लिए साधुवाद !
जवाब देंहटाएंchandan ji ,blog par jaakar padhne ke liye aapka aabhari hu
जवाब देंहटाएंमैं कुछ कर न सका दोस्तों, देश के लिए
जवाब देंहटाएंइसका मलाल अब मुझे ,खलने लगा है॥
(खलने लगा है ज्यादा प्रभावित करता है )
thanks manish ji
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