तुम्हारे
गोरे बदन पर लिपटी
सफ़ेद साडी का आँचल
कुछ ऐसे उडी
मुझे नर्मदा नदी का
भेड़ा-घाट याद आया ॥
तुम्हारा
मसूरी के कैम्पटी फ़ाल में
अधनंगे बदन नहाना
पहली बार देखा
आगरे की ताजमहल का
पानी में तैरना ॥
चलते -चलते
कश्मीर की वादियों में
तुम कुछ इस तरह झुकी
कचनार के फूलों से लदी
कोई डाली मुड़ी ॥
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