प्रस्तुत कविता उनलोगों पर लागू होती है , जो नौकरी या अन्य कारणों से पलायन होकर महानगर या शहरों में आ बसे है ..
पीने का पानी लाती थी ....
मेरी दादी --- नदी से
मेरी माँ -----कुआ से
पत्नी लाती है ---
घर में लगे एकुआ-गार्ड से ॥
कपडे धोती थी
मेरी दादी ----तालाब के किनारे
मेरी माँ ---कुए की जगत पर
पत्नी धोती है ----
औटोमातिक वाशिंग मशीन में ॥
भोजन पकाती थी
मेरी दादी ---गोइठा से
मेरी माँ ---कोयला से
पत्नी लज़ीज़ व्यंजन बनाती है ---
माइक्रो -वेव ओवन से ॥
पहले गर्मियों में ...
दादी खुश रहती थी
माँ को पसीने निकलते थे
और अब ...
मेरो पत्नी / मेरे बच्चे
ऐ ० सी ० से बाहर निकलते है
घमौरिया साथ लाते है ॥
पहले प्रसव -पीड़ा को झेल कर
मेरी दादी ---खुश होती थी
मेरी माँ ---कष्ट सहती थी
मेरी पत्नी ---
अब सिजेरियन ही कराना चाहती है ॥
क्या --
हमलोग जितने सुख में रहते है
कष्ट सहने की क्षमता
उतनी ही कम हो जाती है .?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें