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सोमवार, 12 जुलाई 2010

जहां न रवि , वहां जाए कवि

भीड़ में अकेला लगता हू
भिखारी की मौन पीड़ा में
समुद्र की गर्जना
महसूस करता हू ॥
भूख -प्यास देख लेता हू ॥


रेगिस्तान में कमल
खिलता देखता हू
सूर्य द्वारा बनाए गए
मरीचिका मुझे धोखा नहीं देते ॥


बीजों का अंकुरण
और
अँधेरे में दीया जलता देखना
साधारण सी बात है ॥


सत्य, असत्य, ईमानदारी....
आप नहीं देख सकते
सूर्य की रोशनी में
मगर मैंने उसे देखा है कई बार ॥


क्या मेरी हरकत
कवि जैसी तो नहीं ?

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