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गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
रेत और रिश्ते
घंटों लगे थे
रेत का भी घर बनाने में
हवा का एक झोंका आया
टूट गया रेत का घर //
एक बिजली सी कौंधी
मेरे दिल में
रिश्ते बनाने में भी लगते है सालों
मगर टूट जाते है
शीशे की तरह
मात्र कुछ मीठे बोल न बोलने से //
रिश्ते और रेत का अर्थ
मैं समझ गया हूँ ..//
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
नया साल कब आयेगा
मेरे लिए नया साल आयेगा ..जब ...
१-माँ बाप से मिलने उनके बच्चे घर आजाये
२-ठंढ से बचने को हर देह पर वस्त्र हो
३-तलाक़शुदा महिलाए फिर मुस्कुरा उठे
४-डर भय समाप्त हो जाए //
अब कविता पढ़े ..और बताये कौन सा बिम्ब अच्छा लगा //
**************************************************************************************
नया साल आयेगा
मेरे लिए जब ...
-- छोटे से घोसले में रह रहे
चिडियों के जोड़े के बच्चे
वापस मिलने लौट आयेगे //
-- ठुठे वृक्षों की शाखाओं को
ठंढ से बचाने
नई कपोले उन पर लड़ जायेगे //
--वे फुल फिर मुस्कुरा उठेगे
उन भौरों के आने से
जो उन्हें छोड़ कर चले गए थे //
--मेरे घर के छत पर रखे
चावल के दाने चुगने
फिर से आने लगेगी चिड़ियाँ //
१-माँ बाप से मिलने उनके बच्चे घर आजाये
२-ठंढ से बचने को हर देह पर वस्त्र हो
३-तलाक़शुदा महिलाए फिर मुस्कुरा उठे
४-डर भय समाप्त हो जाए //
अब कविता पढ़े ..और बताये कौन सा बिम्ब अच्छा लगा //
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नया साल आयेगा
मेरे लिए जब ...
-- छोटे से घोसले में रह रहे
चिडियों के जोड़े के बच्चे
वापस मिलने लौट आयेगे //
-- ठुठे वृक्षों की शाखाओं को
ठंढ से बचाने
नई कपोले उन पर लड़ जायेगे //
--वे फुल फिर मुस्कुरा उठेगे
उन भौरों के आने से
जो उन्हें छोड़ कर चले गए थे //
--मेरे घर के छत पर रखे
चावल के दाने चुगने
फिर से आने लगेगी चिड़ियाँ //
मंहगाई काबू में है
सोमवार, 27 दिसंबर 2010
मिटटी ,बांस और हम
नया साल आया है
रविवार, 26 दिसंबर 2010
किताबें
शनिवार, 25 दिसंबर 2010
फर्क
रौशनी के पीछे
भागने का काम है
पतंगों का //
मैं इंसान हूँ , मेरे दोस्त
मुझे चकाचौंध से क्या लेना
मैं तो बना हूँ ....
अँधेरे को उजाले में बदलने के लिए //
भागने का काम है
पतंगों का //
मैं इंसान हूँ , मेरे दोस्त
मुझे चकाचौंध से क्या लेना
मैं तो बना हूँ ....
अँधेरे को उजाले में बदलने के लिए //
शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010
आभार
मैंने अपनी पहली पोस्ट १९ मई २०१० को की थी ...
मैं ब्लॉग जगत से बिलकुल अनजान था ....
फिर एक दिन पढ़ा ....
चर्चा मंच की श्रीमती वंदना गुप्ता जी ने लिखा था /
आपकी रचना चर्चा मंच की शोभा बनी है /
उसे दिन मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई //
आज मुझे इतनी ख़ुशी हो रही है ....किमैं कह नहीं सकता /
२५० अनुशारनकर्ताकि लम्बी मण्डली हो गई है /
मैं सभी मित्रों /ब्लॉगर के प्रति नतमस्तक हूँ ...
स्नेह बनाए रखे ...../
गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
तुम बला की नार हो
हाथ मजबूत करने की कला
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
मोतियों की खोज
मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
२१ वी सदी का फलसफा
सोमवार, 20 दिसंबर 2010
नकाब
सुनो .....
दिखाबा मत करो
मैं ईमानदारी हूँ
बहुत दिनों तक
तुम्हारे घर के अंदर रही
अंकुरण तो दूर
ठीक से रह भी न पाई //
सुनो .....
मुझे के बाहर
दरवाजे पर कही टांग दो
फिर , जी भरकर
घर के अंदर
जो बुझाये - वो करो //
आखिर मेरा
नकाब कब तक पहनोगे .//
दिखाबा मत करो
मैं ईमानदारी हूँ
बहुत दिनों तक
तुम्हारे घर के अंदर रही
अंकुरण तो दूर
ठीक से रह भी न पाई //
सुनो .....
मुझे के बाहर
दरवाजे पर कही टांग दो
फिर , जी भरकर
घर के अंदर
जो बुझाये - वो करो //
आखिर मेरा
नकाब कब तक पहनोगे .//
मल्टिपल चोइस क्वेश्चन Multiple Choice Question
शुध्ध वातावरण के लिए क्या चाहिए
एक विकल्प चुने
शुध्ध हवा
शुध्ध पानी
शुध्ध धरती
शुध्ध समाज //
फंस गए न आप ?
फिर पुनः एक दूसरा प्रश्न
आप क्या बनना चाहते है
एक अच्छा पिता
एक अच्छा पति /पत्नी
एक अच्छा नागरिक
एक अच्छा सेवक //
फिर फंस गए न आप ?
हा हा हा हा हा
थोडा सोचिये ....
कोई विकल्प अकेला नहीं
सारे विकल्प एक साथ चुनने होंगे //
हिसाब
रविवार, 19 दिसंबर 2010
भेड़ चाल
शनिवार, 18 दिसंबर 2010
गीत -४ महक उठेगा खटिया
आपके आ आने से
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
कल TOMORROW
क्षणिकाए
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
भारत बदल गया है
सोमवार, 13 दिसंबर 2010
२१ वी सदी का भारत
२१ वी सदी का भारत
घोटालों का एक वटवृक्ष है
दुनियाँ वालों ....
हमने ही सिखाया था आपको राम राज
अब सिखाते है आपको घोटाला राज
क्योकि मैं विश्व -गुरु हूँ //
आओ ,
इस वृक्ष का फल चखो
मेरा दावा है
बिना इस फल को चखे
वैतरणी पार करना मुश्किल है //
फल का निर्यात नहीं करेगा भारत
पर्यटन को आईये
फल भी खाइए
बीज भी साथ ले जाइए //
घोटालों का एक वटवृक्ष है
दुनियाँ वालों ....
हमने ही सिखाया था आपको राम राज
अब सिखाते है आपको घोटाला राज
क्योकि मैं विश्व -गुरु हूँ //
आओ ,
इस वृक्ष का फल चखो
मेरा दावा है
बिना इस फल को चखे
वैतरणी पार करना मुश्किल है //
फल का निर्यात नहीं करेगा भारत
पर्यटन को आईये
फल भी खाइए
बीज भी साथ ले जाइए //
मित्र वार्तालाप
//................(१)....................//
पहले तुम ईद के चाँद थे
फेसबुक ज्वाइन करने के बाद
मेरे दोस्त ... अब तुम
गूलर के फुल हो गए हो //
//...............(२)......................//
गर्ल फ्रेंड से शादी के पहले
तुम कटे -कटे से रहते थे
शादी के बाद
अब मरे -मरे से रहते हो //
//................(३)...............//
अब आपसे बाते क्या
हम आपके दीदार को भी तरसें
आँचल का प्यार मिले तो कैसे
टाईट जींस भाभी ने जो पहने //
पहले तुम ईद के चाँद थे
फेसबुक ज्वाइन करने के बाद
मेरे दोस्त ... अब तुम
गूलर के फुल हो गए हो //
//...............(२)......................//
गर्ल फ्रेंड से शादी के पहले
तुम कटे -कटे से रहते थे
शादी के बाद
अब मरे -मरे से रहते हो //
//................(३)...............//
अब आपसे बाते क्या
हम आपके दीदार को भी तरसें
आँचल का प्यार मिले तो कैसे
टाईट जींस भाभी ने जो पहने //
शनिवार, 11 दिसंबर 2010
बदरंग हुआ इन्द्रधनुष
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010
चिराग
( मित्रों , कहते है बूंद -बूंद से सागर भरता है ठीक उसी तरह थोड़ी थोड़ी दुसरे की मदद करके एक आदमी, अंत तक बहुत बड़ा दानी /परोपकारी बन सकता है । इसी भावना को दर्शाती एक छोटी सी कविता । क्या मैं सही हूँ ? )
एक चिराग हूँ
छोटा सा //
हर दूसरे को
जलाते जा रहा हूँ //
मेरी ऊर्जा घट नहीं रही
यकीन मानिए
अंत तक
मैं बन जाउंगा
एक विशाल अग्नि पुंज //
// मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //
डोक्टर हूँ ...
बीमारी को नब्ज से नहीं
रिपोर्ट से पकड़ता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //
वकील हूँ ....
दिमागी इल्म लगाता हूँ
सच को काँटा चुभाता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //
पत्रकार हूँ ....
सबसे ईमानदार हूँ
सब सच ही लिखता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //
फूल हूँ ....
बेशक गंधहीन
मगर भवरे फंसा लेता हूँ
मैं भी थोडा तिरछा देखता हूँ //
बीमारी को नब्ज से नहीं
रिपोर्ट से पकड़ता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //
वकील हूँ ....
दिमागी इल्म लगाता हूँ
सच को काँटा चुभाता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //
पत्रकार हूँ ....
सबसे ईमानदार हूँ
सब सच ही लिखता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //
फूल हूँ ....
बेशक गंधहीन
मगर भवरे फंसा लेता हूँ
मैं भी थोडा तिरछा देखता हूँ //
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
मेरे घर में आपका स्वागत है
....................(१)...................
आइये ना ! मेरे घर
मेरे घर में आपका स्वागत है
आइये ना ....
मेरे ड्राइंग रूम में
सोफे पे बैठिये ना
पूरे नौ इंच धस जायेगे आप
सरकारी मुलाजिम हूँ ना
कल ही किसी ने दिया है
कोई देने लगा गिफ्ट में
जाने -अनजाने
कुछ ....
जायज़ -नाजायज़ करा ही लिया होगा //
---------------(२)......................
अरे....
क्या खोज रही है
आपकी आँखे दीवालों पर
गणेश जी और हनुमान जी का कैलेण्डर
अरे भाई साहब !!
कितने पुराने खयालात के है आप
कबकी हटा डाली उन्हें
मकबूल फ़िदा हुसैन की
लगाईं है पेंटिंग
बेचारे हुसैन साहब को
क़तर जाना पडा
अपना देश छोड़कर
हिन्दू देवी -देवताओं की
नंगी पेंटिंग जो बना डाली थी उन्होनें
खैर .....
मुझे तो अच्छा लगा
उनकी अधनंगी औरतों की पेंटिंग
मेरे घर की दीवालों पर
ऐसी ही पेंटिंग मिलेगी //
( लम्बी कविता है ...शेष भाग कल )
--------(३)-----------
फूलों का गुलदस्ता
खोज रहे है आप ....
मैंने उन्हें हटा कर रखा है
ऐश ट्रे ....
अपने दोस्तों के सिगरेटो की राख
जमा करने के लिए //
फुल तो बाहर
गमले में ....
शायद कई दिनों से मैंने
उन पौधों में पानी भी नहीं दिया //
-------(४)।-----------
आइये न
मेरे बच्चो से मिलिए
आपके चरण न छुए
तो उनकी तरफ से मैं ही
माफ़ी मांगता हूँ //
मैंने ही
उन्हें ऐसा करने नहीं सिखाया
गुड मॉर्निंग करेंगे आपको
आपको भी अच्छा लगेगा
जाति का ब्रह्मिन हूँ
बच्चों का उपनयन संस्कार भी किया था
अच्चा खर्चा भी हुआ
मगर ....
बच्चो ने कहा
it does not suits on my personality
और उतार कर फेंक दिया //
रामायण / महाभारत /कुरान
की कहानियां नहीं सुनना चाहते
(अधूरा )
रविवार, 5 दिसंबर 2010
गुजारिश
मौन की भाषा
शनिवार, 4 दिसंबर 2010
प्रेम की चिड़िया
मेरे पास थी एक चिड़िया
उछलती थी
कूदती थी
फांदती थी
उड़ते रहती थी
कभी माँ के आँचल में
कभी पिताजी के कंधे पर
कभी भाभी की साडी से
जाती थी लिपट
कभी दोस्तों के यहाँ
कभी पड़ोसियों के यहाँ
कभी चुग लेती थी
खेतों से मटर और चना //
काम /काम /काम
काम से फुर्सत नहीं था मुझे
मैंने उसे खाना नहीं दिया
ना ही पानी
उसके पंख टूट गए
वह मर गई //
जानते है
वह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया //
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
गर्माहट
एपार्टमेंट की छत पर
मिली थी थोड़ी सी जगह
गुनगुनी धूप सकने को
तरंगित होने लगी यादे //
अब तो सपनों जैसा ही है
पिताजी की गोद में बैठकर
अलाव सेकना //
मैं नहीं दे पाया
अपने बच्चो को वैसा प्यार
जैसा मैंने पाया अपने पिता से
इन गगनचुम्बी ईमारतों में रहकर //
हम खोते जा रहे है
रिश्तों में गर्माहट देने की कला
जो हमारी विरासत थी //
मिली थी थोड़ी सी जगह
गुनगुनी धूप सकने को
तरंगित होने लगी यादे //
अब तो सपनों जैसा ही है
पिताजी की गोद में बैठकर
अलाव सेकना //
मैं नहीं दे पाया
अपने बच्चो को वैसा प्यार
जैसा मैंने पाया अपने पिता से
इन गगनचुम्बी ईमारतों में रहकर //
हम खोते जा रहे है
रिश्तों में गर्माहट देने की कला
जो हमारी विरासत थी //
हम एक आदमी को आदमी कब कहेंगे
बचपन में .....
मुर्गा बनाते थे गुरु जी
कुछ बड़ा हुआ
फिर कहने लगे
तुम गदहे हो
उल्लू के पट्ठे हो //
खेलता -कूदता -उछलता
तो माँ कहती
तुम बन्दर हो क्या //
मेरे ऑफिस में एक कर्मचारी है
बिलकुल सीधा -साधा
लोग उसे गाय कहते है
एक दूसरा कर्मचारी
बिना लिए कुछ करता नहीं
लोग उसे कुत्ता कहते है //
किसी के पक्ष में न बोलो
तो वह कहता है
तुम आदमी हो या पैजामा //
भगवान् सिंह ने कर दी हत्या
हत्यारा कहलाने लगे
अपने ही साथी से बलात्कार कर बैठा
लोग उसे अब बलात्कारी कहते है
अब आगे नहीं लिखूंगा
अब लिखने को बचा भी क्या //
एक प्रश्न का उत्तर चाहिए
मेरे दोस्त ...
हम एक आदमी को आदमी कब कहेंगे ?
मुर्गा बनाते थे गुरु जी
कुछ बड़ा हुआ
फिर कहने लगे
तुम गदहे हो
उल्लू के पट्ठे हो //
खेलता -कूदता -उछलता
तो माँ कहती
तुम बन्दर हो क्या //
मेरे ऑफिस में एक कर्मचारी है
बिलकुल सीधा -साधा
लोग उसे गाय कहते है
एक दूसरा कर्मचारी
बिना लिए कुछ करता नहीं
लोग उसे कुत्ता कहते है //
किसी के पक्ष में न बोलो
तो वह कहता है
तुम आदमी हो या पैजामा //
भगवान् सिंह ने कर दी हत्या
हत्यारा कहलाने लगे
अपने ही साथी से बलात्कार कर बैठा
लोग उसे अब बलात्कारी कहते है
अब आगे नहीं लिखूंगा
अब लिखने को बचा भी क्या //
एक प्रश्न का उत्तर चाहिए
मेरे दोस्त ...
हम एक आदमी को आदमी कब कहेंगे ?
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
स्वेटर
जब मैं बच्चा था
पिताजी लाते थे
उन के धागे //
माँ के हाथों बनी
स्वेटर में
होती थी गर्मी //
...नहीं मिलती वह गर्मी
मिल में बने स्वेटर में //
माँ ....
मैं फिर से निकाल लिया हूँ
तुम्हारे हाथो का बुना स्वेटर //
घोसला
ओ !... नभचरों
सारा आकाश है तुम्हारा
मगर ....
तुमने बनाया मात्र
एक घोसला
अपने रहने के लिए //
मैं पेशोपेश में पड़ गया हूँ
क्यों दिग्भ्रमित करते हो मुझे
मुझे संतोष नहीं एक घोसले से
आदमी हूँ एक
पर ,घोसला चाहिए अनेक //
सारा आकाश है तुम्हारा
मगर ....
तुमने बनाया मात्र
एक घोसला
अपने रहने के लिए //
मैं पेशोपेश में पड़ गया हूँ
क्यों दिग्भ्रमित करते हो मुझे
मुझे संतोष नहीं एक घोसले से
आदमी हूँ एक
पर ,घोसला चाहिए अनेक //
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