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गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

प्रेम-याचना


जयेष्ट की गर्मी
और आग के दहकते शोलों को
महसूस किया है मैंने //

अब मैं ...
तुम्हारे दहकते सुर्ख अधरों
निस्वच्छ श्वासों
उन्नत,सुकोमल,मस्त उरोजों
और तुम्हारे तपतपाते तन की गर्मी में
झुलसना चाहता हूँ //

मुझे पता है ....
ऐसा करने से मेरे संताप
छू-मंतर हो जायेंगें
क्या ऐसा होगा प्रिय !!

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

तुमसे है दुनियाँ


खुशियों की बौछार तुम्हीं हो
उदासी की तलवार तुम्हीं हो
तुम्हीं हो मेरी गंगा -यमुना
हर मौसम का प्यार तुम्ही हो //

तुम प्रकृति के दिलकश नजारे
तुम नभ के हो चाँद-सितारे
तुम्हीं हो मेरी फूल और खुशबू
मुदित मन का आधार तुम्हीं हो //

शनिवार, 26 नवंबर 2011

मुझे काली बीबी नहीं चाहिए


पंडित ने कहा
आप पर शनि की साढ़े सती है
काले घोड़े की नाल की अंगूठी पहने
वास्तु दोष है
काला कुत्ता घर में रखे
काली गाय को रोटी खिलाएं //

साधक ने कहा
मुझे तंत्र-मन्त्र करना है
काली बिल्ली चाहिए //

"माँ काली " भी तो काली ही हैं
और शंकर जी और कृष्ण जी भी
पर मैं ....
काली बीबी क्यों लाऊ //

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

आप बताएं मेरी जाति


मेरी सुबह की शुरुआत
टॉयलेट सफाई से शुरू होती है
मैं डोम बन जाता हूँ
दाढ़ी बनाते समय
मैं नाई बन जाता हूँ //

नहाने से पहले
अपने कपडे धोता हूँ
मैं धोबी बन जाता हूँ //

अपने गाँव में खेती करता हूँ
मैं भूमिहार बन जाता हूँ
अन्याय के विरुद्ध लड़ता हूँ
मैं क्षत्रिय बन जाता हूँ //
जब अपनी थाली धोता हूँ
शुद्र बन जाता हूँ //

मेरे पिता जी ने मुझसे कहा था
तुम ब्रह्माण हो
अब आप ही बताएं
मेरी जाति क्या है ?

शनिवार, 12 नवंबर 2011

मच्छड़


कटीले मच्छड़ , नशीले मच्छड़
क्यों नहीं मरते ये आजकल
चाहे कितना मरो थप्पड़ //

चलते फिरते या बैठे-बैठे
भाषण का ये डंक मारते
अन्धकार की बात निराली
उजाले से भी ,ये नहीं डरते
इनके जैसा न कोई गप्क्कड़
मोटे मच्छड़, पतले मच्छड़//

नहीं डरता इन्हें रसायन
मिल जाते ये हर वातायन
हाथ हिलाते बढ़ते जाते
और सुनते अपना गायन
इनके जैसा न कोई भुलक्कड़ //
गोरे मच्छड़, काले मच्छड़....

रविवार, 30 अक्तूबर 2011

एक बार मुस्कुरा दो !!


मुझे पता है ...
बालू,बजरी और ईटों का
अलग से कोई बजूद नहीं होता
जब तक उसमे सीमेंट न मिली हों/

मेरे भाई /दोस्त /रिश्तेदार
सब ईट/बालू/बजरी की तरह है
अलग -अलग
मुझे सीमेंट की ज़रूरत है प्रिय
इन्हें जोड़ने के लिए //

आकर
एक बार मुस्कुरा दो
मुझे यकीन है
तुम्हारी मुस्कराहट
सबके लिए सीमेंट बनेगी //

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

आवारा गुब्बारे


धूल भरी आंधी ने
मेरे आँगन में ....
ढेर सारे रंगीन आवारा गुब्बारे
ले आये //

ये गुब्बारे
किसी मंत्री के हाथों की शोभा नहीं थे
खेल आयोजन के गवाह नहीं थे
ये कचरे की ढेर से उड़े थे //

ये गुब्बारे नालियों में घुस जायेंगे
उनका प्रवाह रोक देंगें
नहीं समझें आप...
ये पालीथिन के कैरी बैग है .//

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

तिरिया चरितर


( तिरिया चरित्र का शाब्दिक अर्थ होता है - स्त्रियों द्वारा पुरुषों को मुर्ख बनाने का खेल )

नाक से लेकर मांग तक
सिंदूर लगाकर
बहुत जँच रही थी
बडकी भौजी
पुराणों में वर्णित
देवी की तरह //

जैसे ही सब आगंतुक
जो आये थे
भाग लेने
सूर्य -उपासना के पर्व में
चले जायेंगें
बाघ-बकरी का खेल
शुरू हो जाएगा
सास-बहू में //

बहू बरसाने लगेगी बातों के डंडे
अपनी सास पर /
और सास राह देखेगी
अपने बेटे के आने का //

बेटा आ गया ...
बहू का सास के प्रति सेवा देख
गदगद हो गया /
माँ के शिकायत को
बेटा को नज़रंदाज़ करना पडा //
बेटा !
चला गया कुछ दिनों बाद
और फिर से शुरू हो गया
खेल तिरिया चरितर का //

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

दोष किसका है


नावों के डूबने में ,क्या दोष है पतवारों का
चमन को लुटने में , क्या दोष है खारों का //

बढ़ाते हैं , हम और आप इस दुनिया को
महगाई बढ़ने में ,क्या दोष है बाज़ारों का /

बेवज़ह तान तेदे हैं बंदूकें एक दुसरे पर
क़त्ल हो जाए तो,क्या दोष हैं तलवारों का //

तुम शिकायत लेकर कहाँ जाओगे ,बबन !
जब नल ही दूटा हो, क्या दोष है फब्बारों का //

शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

नज्म


झुकना नहीं सीखा था ,इसलिए टूट गया हूँ
लूटना नहीं सीखा था, इसलिए लुट गया हूँ //

अविश्वास की डोर से,मैं रिश्ते नहीं बाँध पाया
अपनों ने छोड़ा मुझे,मैं परायों को भी नहीं छोड़ पाया //

सबका खून एक है,मगर क्यों कोई ईमान बेच देता है
अपने चूल्हे की आग बुझा ,दुसरे पर रोटी सेक लेता है //



स्वस्थ बीज अगर बोयेगा किसान ,फल ज़रूर निकल जाएगा
इत्मीनान से बैठकर सोचो बबन ,कोई हल ज़रूर निकल जाएगा //

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

कील


कारीगर ने
कील का सही उपयोग किया
लकड़ी के टुकड़ों को जोड़ कर
एक टेबल बना दिया //

कील ने भी
नहीं बिगड़ने दी उसका स्वरुप
दर्द सहकर भी //

दूसरी तरफ
एक नासमझ ने
कील को फेक दिया सड़कों पर
इस बार कील ने
स्वम दर्द नहीं सहा
बल्कि ...
कितनो को घायल कर गया //

शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

मखमली आलिंगन


मिश्री सी घुल जाती कानों में
जब बजते हैं तेरे कंगन
फिसल जाता है मेरा यौवन
जब हो तेरा मखमली आलिंगन //

सांसों की गर्माहट से पिघले हम-तुम
एक दूजे में हम लिपटे हैं गुम-सुम
देख अदा तेरी,कामदेव भी खूब तड़पता
जब लेती तुम, मेरे अधरों पर चुम्बन //

उड़े दुपटा या फिर फिसले उर से आँचल
शर्म नहीं,जब कह दे कोई प्रेमी पागल
कभी हाथ फिसलते तेरे कटी पर
स्पर्श तेर उरों का, कर देता तन में कम्पन //

कभी सहलाता तेरे कानो की बाली
कभी तेरी गेसुओं की मेखला प्यारी
जल जाता ऊर्जा का दीपक रोम-रोम में
पाकर तेर प्यार की गठरी का अवलंबन //

बुधवार, 28 सितंबर 2011

इश्क का पता


इश्क को पता जानने
मैं एक दिन घर से निकला
बीयर -बार में पहुंचा
जाम टकराते हुए मस्त जोड़े थे
मैं दावा तो नहीं कर सकता
वे कुबारे थे या शादीशुदा
शायद यहाँ इश्क मौजूद था //

शाम में झाडियों में देखा
इश्क ...
एक दूसरे के गोद में बैठा था
मनो लोहे और चुम्बक का मिलन हो //

इश्क को मैंने
खंडहरों में / कालेजों में
नाचते -गाते और गुनगुनाते देखा //

अंत में ...
एक शादी-शुदा के घर में
इश्क को खोजने पहुंचा
घर के दरवाजे पर ही
एक बुढ़िया मिल गयी
माँ थी
उनकी आँखों में लिखा था
बेटा ! गलत जगह आ गए
ये इश्क का घर नहीं
यह अविश्वास का घर है
मैं वापस लौट गया
क्योकि माँ कभी झूट नहीं बोलती //

मैं समझ गया दोस्त
इश्क नहीं बंधना चाहता
अग्नि के फेरों में
निकाह के काबुल नाम में
और चर्च की प्रार्थना में //

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

तेरे अधरों की फुलवारी


तेरी देहयिस्टी है छड़ चुम्बक
तुमसे बचूंगा, मैं अब कब तक
नज़र नयन का पकडे रहना
आलिंगन में ज़कड़े रहना
बाते करना प्यारी-प्यारी
भवरा बन मैं पीते रहूंगा
तेरे अधरों की फुलबारी //

नशा यौवन का मुझमे भी है
चाहत की आंधी तुममे भी है
उर की चुम्बन की रंगरेली करना
मेरी जुल्फों से अटखेली करना
सहलाना मेरे कानो की मोती
बुझा देना कमरे की ज्योति
रति क्रीडा की करना तैयारी //
भवरा बन मैं पीते रहूंगा
तेरे अधरों की फुलबारी

शनिवार, 10 सितंबर 2011

बीते पल के आँगन में


(बीते दिनों की याद प्रतेक के जेहन में किसी न किसी रूप में छिपी रहती हैं । जिस प्रकार फूल की पंखुड़ियां सूख जाती हैं, मगर खुशबू नहीं सूखती उसी प्रकार यादें भी ....)

बीते पल के आँगन में
है रौशनी ज़र्रा-ज़र्रा
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //

मन बचपन हो जाता क्षण में
ऊर्जा सी जग जाती तन में
प्रवाह विद्युत् का रोक न पाता
कैसे भूलूं प्यार तुम्हारा गहरा //
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //


तेरे अधरों का कमल चुराने
तुम्हें यौवन का स्वाद चखाने
पहुंचा मैं रिमझिम सावन में
बच-बच के,तोड़ पुलिसिया पहरा //
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

ईश्वर व्यापारी नहीं है ///


आदमी ने बनाया
बहुत सारे निर्जीव यन्त्रं
फिर खोल दी दूकान
उनके कल-पुर्जों की //

ईश्वर ने बनाया
अनेकों जीव
मगर नहीं खोली दूकान
फेफड़ा ,गुर्दा और लीवर बेचने की //

यदि ईश्वर व्यापारी होता
खूब चलती उनकी दूकान
अगर ! वह टूरिस्ट आपरेटर होता
जीते जी स्वर्ग दिखाने का
फंडा हीट कर जाता //

अगर अफ़सोस !
ईश्वर व्यापारी नहीं है //

रविवार, 4 सितंबर 2011

मेरा मन क्यों न बहके


जब खेतों में सरसों महके
जब अमराई में कोयल चहके
जब घुघट से आँचल सरके
बोलो सजनी !
मेरा मन तब क्यों न बहके //

जब छाये पूरब में लाली
जब गाए खरतों में हरियाली
झूमे उर और कमर जब लचके
बोलो सजनी !
मेरा मन तब क्यों न बहके //

जब सुमन-पवन का हो आलिंगन
तब यौवन-ढलान पर फिसले मन
छूकर मुझे, जब तेरा स्वर अटके
बोलो सजनी !
मेरा मन तब क्यों न बहके //
]

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

मैं कांग्रेस हूँ


मेरा जन्म ...
अंग्रेजों के गोद में हुआ था
बस ...वही से सीख गया ...अंग्रेजियत //

सबसे पहले मैंने सीखा ...
फुट डालो राज करो की राजनीति
मेरे बनाये हर रास्ते में
एक तरफ खाई होती है //

मैं बखूबी जानता हूँ
गला दवाने की तरकीब
सरपट दौड़ने वाले घोड़े को
कीलें चुभाना
और ...
हासिये पे धकेलना
तो मेरी फिदरत है
हर कानून में
छेद छोड़ जाता हूँ
क्योकि .... मैं कांग्रेस हूँ //

बुधवार, 17 अगस्त 2011

मनुहार


ओ हवा ...
थोडा सा बह लो
मेरी महबूबा के लिए
उसके पसीने सुखा दो //

ओ फूल ...
थोडा सा महक जाओ
ओ दिनकर ...
थोड़ा सा छिप जाओ बादलों में
ओ पक्षियों ...
थोड़ा सा चहचहां लो ...
मेरी महबूबा के लिए

मेरी गैरहाजरी में
मेरी महबूबा को खुश रखने का
मनुहार करता हूँ ॥//



शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

सही समय...


जब ...सही समय पर चलती है रेलगाड़ी
बड़ा सकून मिलता है ....यात्रियों को

जब ... सही समय पर लौट आते है बच्चे
बड़ा सकून मिलता है ....माता-पिता को

जब सही समय पर होती है वर्षा
बड़ा सकून मिलता है ... किसानों को

आइये ...
हम सब अपने- अपने काम
सही समय पर करें ....
पुरे समाज को सकून मिलेगा //

रविवार, 7 अगस्त 2011

दिल पे मत ले यार


( आई आई टी नई दिल्ली के एक छात्र दिनेश अहलावत के रैंगिंग के कारण आत्महत्या करने के बाद )


उन्होंने
तुम्हारी चड्ढी क्या खुलबाई
तुम्हारे नितम्बों पर मुहर क्या लगाई
रोने लगे तुम ...
दिल पे मत ले यार //

हम सब नंगे आये हैं
नंगे हैं
और नंगे जायेगे //

अरे यार ...
लड़कियों को देखो
मर्दों से ज्यादा बोल्ड हैं
शौक से कहती हैं ....
बाड़ी हैं तो दिखाउंगी ही //

तुम क्या सोचते हो
रंगीन कपडे और टाई लगाकर
एक आदमी
अपने नंगई को ढक सकता है क्या ?

शनिवार, 2 जुलाई 2011

मैं क्या करूँ

राह में हैं कटीले कंकड़ ,तो क्या चलना बंद कर दूँ
ख़बरें छपी है फरेब की ,तो क्या पढना बंद कर दूँ ....//

मैं झूठ का तड़का नहीं लगाता, सच की दाल में
उन्हें बुरा लगता है ,तो क्या लिखना बंद कर दूँ ...//

सारी दुनिया पीछे पड़ी है,सच का गला दबाने में
नहीं मरता सच , तो क्या मैं उसे नज़रबंद कर दूँ ॥//

तुफानो से टकराने में भला किश्ती,कब डरा करती है
पडोसी सुनते हैं मेरी बात ,तो क्या मैं खिड़की बंद कर दूँ ...//

गुरुवार, 30 जून 2011

फूल तो नादान है


हवा जब गुस्सा होती है
सीटी बजाती है
बादल जब गुस्सा होती है
बिजली चमकाती है
नदी जब गुस्साती है
बाढ़ लाती है //


हवा, बादल और नदियों ने
सीख लिया है दुनियादारी
फूल तो नादान हैं
उन्होंने सिर्फ मुस्कुराना सीखा है //

बुधवार, 29 जून 2011

सब्जी वाली हसीना


मूली से उजली देह तुम्हारी
होट हैं मानो, जैसे चुकंदर
काली मिर्च से काले केश
मुस्काती तुम अंदर ही अंदर //
बोली तेरी लाल मिरचाई
तेरा आलू सा मुस्काना
फूलगोभी सी हंसी तुम्हारी
सांसे तेरी हरी पुदीना //

मंगलवार, 28 जून 2011

माँ की परिभाषा


पिता को परिभाषित करना कुछ हद तक आसान है ,परन्तु माँ को किसी परिभाषा में बंधना उतना ही कठिन है ,जितना समुद्र के पानी को किसी वर्तन में ज़मा करना ....


माँ ....
तुम हो ,वात्सल्य का एक खिलौना
तेरे सामने हम हो जाते बौना //


माँ ...
तुम हो ,प्यार की मीठी बांसुरी
नहीं डराती अब ,शक्ति आसुरी //

माँ ....
तुम हो ,स्नेह की एक गरम अंगीठी
मुझे बता बचपन की बातें , मीठी //

माँ....
तुम हो नदी ,सिंचती जीवन की बगिया
जी लूंगा ,बना के तेरी यादों का तकिया //

रविवार, 26 जून 2011

जब भींगी तेरी ओढ़नी


बादल देख झूमा उपवन
झूम रहे मोर -मोरनी
और ज़वां लगने लगी तुम
जब भींगी तेरी ओढ़नी //

भर गए सारे ताल-तलैया
मेढकी गाने लगी रागिनी
आने लगी महक यौवन की
जब नभ में छाई चांदनी //

काले का भ्रम फैलाती
काली लम्बी तेरी मेखला
तेरी अँखियाँ जिधर कौंधती
बरस पड़ती उधर दामिनी //

गुरुवार, 23 जून 2011

कलम अब तलवार नहीं है


हर जगह आग है, शोला है, कही प्यार नहीं है
सकून दे सके आपको,ऐसी कोई वयार नहीं है //

कितना संभल कर चलेंगे आप,अब गुल में
हर पेड़ अब खार है,कोई कचनार नहीं है //


हंसी मिलती है,अब सिर्फ तिजारत की बातों में
रिश्तों का महल बनाने, अब कोई तैयार नहीं है //

अश्क पोछना होगा अब आपको,अपने ही रुमाल से
पोछ दे आपका अश्क,अब ऐसा कोई फनकार नहीं है //

माँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
शायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //

जी भर लूटो ,खाओ , इस हिन्दुस्तान मेरे दोस्त !!
मेरी कलम,अब कलम है ,कोई तलवार नहीं है //

बुधवार, 22 जून 2011

बीज का आत्मकथ्य


पिताजी ! मैं एक
छोटा सा ही सही
वृक्ष बन गया हूँ
उस बीज से
जिसे आपने रोपा था
मेरी माँ के कोख में //

बन सकता था मैं
एक विशाल वृक्ष
कसैले पानी पी-पीकर
मगर ! पिताजी
मेरे सारथी तो आप थे //

यकीन मानिए
मुझमे कसैले फल नहीं
आपने आम रोपा था न
मैं बबूल कैसे होता
मैं उऋण नहीं हो सकता //

मंगलवार, 14 जून 2011

एक बेटी की कसक

माँ....
लोग तुम्हें बुढ़िया कहते हैं
अब, जब निकलने लगे हैं
मुझमें यौवन के पंख
तब आईने में देखकर
आश्वस्त हो जाती हूँ
कि.....
लाखों में एक होगी
मेरी माँ//
गन्दी ज़वान पर
लोग ताला क्यों नहीं लागते //

रविवार, 5 जून 2011

क्षणिकाएँ

नाव डूबी, यमुना में
दिल मेरा डूबा
तेरे अंगना में //

मोर ,मोरनी को ले भगा
देखकर मौका तगड़ा
दोनों बालिग़ थे
अब किस बात का झगडा //

इस देश को लुटा
देश के रखवालों ने
मुझको लुटा, मेरे सालों ने //

शनिवार, 28 मई 2011

अब तो इन्द्रधनुष भी फीके


तेरी लम्बी -लम्बी चोटी में
हर कोई उलझना चाहे
तेरी सांसो की खुशबू में
हर कोई तरसना चाहे
संग-संग तेरे बोल-बैठ कर
हर कोई महकना सीखे
तेरे गालों की डिम्पल के आगे
अब तो इन्द्रधनुष भी फीके //


नाक नुकीली ,नयन हैं तीखे
अधरें तेरी कमल सरीखे
तुम्हें देख, तितली शरमाई
और भौरों ने ली अंगडाई
है दूब पर बैठी जब तुम
ले रही थी ,पवन के झोंकें
संग-संग रह कर तेरे
सूख गए अब दिल के फोके //
तेरे गालों की डिम्पल के आगे
अब तो इन्द्रधनुष भी फीके //

वाह ! काजल वाह!

बिहार के मधुबनी जिला के हरलाखी प्रखंड के एक कुमारी कन्या के मुखिया पद पर चुने जाने की घटना से बदलाब की हवा और मजबूत हुई है । मेरे विचार से समाजशास्त्र में स्नातक काज़ल कुमारी का ध्यान सबसे पहले आँगन बाड़ी केन्द्रों को सुचारू रूप से चलाने में होना चाहिए । प्रखंड के पदाधिकारियो, प्रमुख, और मुखिया की शेअरदारी को ख़त्म करने की पहल उनके द्वारा की जानी चाहिए ताकि बच्चों आयर गर्भवती महिलायों को योजना का वास्तविक लाभ मिल सके

गुरुवार, 19 मई 2011

आगोश


मैं ही नहीं ,आप भी शोक में हैं
मुसीबतें खुदरा में नहीं ,थोक में हैं //

हम भी गरीब हैं ,आप भी मुस्लिफी में है
पैसा तो ,नेता बने हर जोंक में हैं //

सड़कें बन रही ,विकास के नाम पर
इसलिए हर किसान अब जोश में हैं //

सूखे रसबेरी में अब रस भर ही जायेगी
क्योकि वह अब आपके आगोश में है //

गुरुवार, 5 मई 2011

कावं-कावं हो गई जिंदगी


कभी जीवन है धूप
कभी पीपल की छावं
कभी जीवन है झरना
कभी कौवे की कावं-कावं //

कभी निराशा की गली में
थकता है तन-मन
कभी आशा की रोड पर
थकते नहीं हैं पावं //

भागता फिर रहा मैं
रुपयों के पीछे
लगाता हूँ रोज़ अब
खुशियों के दावं //

न फूलों में महक है
न रिश्तों में गंध
पछताता हूँ आज मैं
छोड़कर अपने गावं //

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी


हम- तुम मिलते थे
दूसरों की नज़रों से बचते -बचाते
कभी झाड़ियों में
कभी खंडहरों के एकांत में
सबकी नज़रों में खटकते थे
फिर एक दिन ...
घर से भाग गए थे
बिना सोचे-समझे
अपनी दुनियाँ बसाने //

नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी
देती थी तेरी हर अदा
कितना अच्छा लगता था
दो समतल दर्पण के बीच
तुम्हारा फोटो रख
अनंत प्रतिबिम्ब देखना
मानो ...
तुम ज़र्रे-ज़र्रे में समाहित हो //

कहने को
हम अब भी
एक-दूजे पे मरते है
एक-दुसरे के साँसों में बसते हैं
एक-दूजे के बिना आहें भरते है
मगर ....
दिल के खिलौने को
हम रोज तोड़ते हैं
क्योकि हम प्यार करते है //

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

धूल

अभी कल की ही बात है
थोडा सा रद्दी कपडा
मैंने भिगोया पानी में
पोछ ( साफ़ ) डाले
सारे धूल
जो जमे थे
मेरे घर के
खिडकियों के शीशे पर //
आज धूप भी खिलकर आई थी
कमरे के अंदर //

काश !!!
कितना अच्छा होता
एक भींगे कपडे से
मैं उस धूल को पोछ पाता
जो मैंने
जिंदगी के रेस में
साथ चलने वालों के
चेहरों पर फेकें हैं//

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

अनोखा प्यार


नहीं गन्दा करना चाहता
क़ुतुब मीनार की दीवारें
तुम्हारा नाम लिखकर //

हर सुबह ....
हरी दूब की फुनगियों पर टिके
हर शबनम पर
तेरा नाम लिखता हूँ
यह जानते हुए भी कि
कुछ पल मिट जायेगी ये शबनम
सूरज की तपिश से //

फिर भी ...
रोज लिखता रहूंगा तेरा नाम
क्योकि ...
मुझे फैलानी है
तेरे नाम की खुशबू
पुरे जहाँ में //

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

थकना मना है

नहीं थकती है हवा
नहीं थकती लहरें
नहीं थकती खुशबू
नहीं थकते हैं हम
जब बात चलती है
बोनस और ओवर टाईकी //

अगर थकता तन ...तो
न मिलते मजदूर, न बुनी जाती डोरी
न निकलते चोर, न होती चोरी
न होती बात -बात पर सीनाजोरी //

दोस्तों ! आदमी का
तन नहीं, मन थकता है
मगर.....
जिनके पास है
हौसला और लगन की
एक जोड़ी पंख
उनका मन कहता है
थकना मना है //

सोमवार, 28 मार्च 2011

नेता का भाषण

पल -पल बसंत
पल- पल सावन
नेता का भाषण //

अगरबत्ती का धुआं
आश्वाशानो का कुआं
जनता को अर्पण
और कब समझेगा मियाँ जुम्मन
नेता का भाषण //

रहिये दूर-दूर
ये खट्टे अंगूर
हवा वोट की जब चलती
लग जाता इनका आसान
नेता का भाषण//

जितना बजाओगे ताली
उतना ही होगा
हाथ तुम्हारा खाली
भर जाएगा उनका घर-आँगन
नेता का भाषण //

मंगलवार, 22 मार्च 2011

तालाब के ऊपर खेती (एक अभिनव प्रयोग )

लगातार हो रहे विकास कार्यों यथा सड़कों ,फैक्ट्रियों, स्कुल , कालेजों के बनने से कृषि भूमि के क्षेत्रफल में लगातार ह्रास हो रहा है । कृषि भूमि के बढ़ोतरी के बारे में आज किसी का ध्यान नहीं है । मेरा यह प्रयोग कृषि भूमि के विकास में योगदान देगा ।
विकास कार्यों का सबसे बुरा असर भूमिगत जल स्तर पर पड़ता है । वर्षा का जल धीरे धीरे फ़िल्टर हो कर ज़मीं के नीचे जाता है । वर्षा का जल जितनी देर तक ज़मीं पर टिका रहेगा, फ़िल्टरेशन की मात्र उतनी ही ज्यादा होगी । उदहारण स्वरुप बिहार दरभंगा ,मधुबनी ,चंपारण जिलों में अत्यधिक मात्र में तालाब होने के कारण वहाँ के भूमिगत जलस्तर में कोई खास गिरावट नहीं हुआ है , परन्तु नालंदा ,अरवल ,जहानाबाद ,औरंगाबाद शेखपुरा ,बांका इत्यादि जिलों में भूमिगत जलस्तर की स्थिति बहुत ही दयनीय है ।
विकास कार्यों के होने से , ज़मीन पर फ़िल्टरेशन क्षेत्रफल घट रहा है ।

कृषि भूमि में बढ़ोतरी कैसे :

तालाब खुले होने से अत्यधिक मात्रा में वास्पीकरण होता है और तालाब फरबरी मार्च के महीने में सूखजाता है । तालाब को एक निश्चित आकर देकर अगर हम ऊपर से कंक्रीट की छत ढाल दे और छत के ऊपर तीन चार फिट मिटटी डाल दे, तो इसके निम्न फायदे हो सकते है ....
१। कृषि भूमि के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी
२ वर्षा जल का भारी मात्रा में संचयन और बाढ़ में कमी

३ जल का वास्पीकरण बहुत ही कम होगा ,जिसके कारण बहुत दिनों तक पानी उपलब्ध रहेगा ।
४भारी मात्रा में फिल्टरेशन होने के कारण भूमिगत जलस्तर काफी ऊपर आ जाएगा
५ तालाब के ऊपर कंक्रीट छत पर डाली गई मिटटी एवं अगल बगल के खेतों में कृषि कार्य के लिए भारी मात्रा में सिंचाई जल उपलब्ध होगा ।

गुरुवार, 17 मार्च 2011

फिर जी भर कर खेलो होली //

लाज, शर्म और हया की
आज उठा दो डोली
फिर जी भर कर खेलो होली //

खाकर पुआ और दहीबाड़ा
निकली बच्चों की टोली
लिए रंग-बिरंगी पिचकारी
और गुलाल की पोटली //
लाज, शर्म और हया की
आज उठा दो डोली
फिर जी भर कर खेलो होली //

जीजा के घर आई साली
देवर, भाभी संग करे ठिठोली
सरहज के पीछे भागे नंदोई
लिए रंग से भारी हथेली //
लाज, शर्म और हया की
आज उठा दो डोली
फिर जी भर कर खेलो होली //

शनिवार, 5 मार्च 2011

कुछ नया सोचो

सोचो! सोचो !
कुछ नया सोचो, मेरे दोस्त !
हर कोई नया सोच रहा है ॥

अब समय
किसी को लतिया कर
गिराने का नहीं
नई सोच से आगे बढने का है ॥

क्यों मिटाना
किसी रेखा को छोटा करने के लिए
जब तुम समर्थ हो
वर्तमान रेखा के बगल में
एक लम्बी रेखा खीचने में ॥

अगर ओढ़नी है
सफलता की चादर
अगर पहुंचना है
फर्श से अर्श तक
तो बड़े करीने से बुनने होंगे
मेहनत के धागे ॥

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

नोक -झोक


नोक -झोंक है क्या
बहुत माथा-पच्ची की
आप भी उदहारण से ही समझे //

अगर पत्नी ने कहा--
मेरा जेवर पुराना हो गया है
इस बदलकर थोड़ा भारी
जेवर ले दो//


अगर आपका उत्तर है
चलो अभी चलो
सुनार की दूकान
तो ये हुई प्यार की बातें
अगर आपने गलती से कह दी
"क्या करोगी गहने लेकर
तो आपने नोक -झोंक की शुरुआत कर दी //

यानी
सकारात्मक जवाब -- प्यार
ऋणात्मक जवाब - नोक -झोंक //

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

बसंत क्या आया .....


बसंत क्या आया ...
बागों में फूल खिले
भौरों ने कर ली उनसे दोस्ती
जी भरकर मधु बनाने लगे //

बसंत क्या आया ...
बागों में मंजर लदे
कोयल ने कर ली उनसे दोस्ती
जी भर कर कूकने लगी //

बसंत आया है प्रिय!
हम क्यों बैठे है चुपचाप
आओ हम भी कर ले दोस्ती
और कर ले जी भरकर प्यार //

रैंगिंग -7

मेरी रैंगिंग ले रहे सीनिअर ने मेरे दो मित्रों से पूछा -देखो जी, तुम्हारे मित्र को H P का पांच फुल फॉर्म नहीं आ रहा है इसकी मदद करो /मेरे मित्र ने एक इजाफा किया Hard Paper बोलकर /
आज रात में सोच लेना /कल यह प्रश्न दुहराया जाएगा - यह कहते हुए सीनिअर ने हमलोगों को छोड़ दिया ।
साथ ही साथ यह भी कहा -अभीतक तुमलोगों ने मुझसे मेरा नाम नहीं पूछा , तो सुनो मेरा नाम 'अजय नायक 'है /सच में ....वह हमलोगों को नायक कम ,खलनायक ज्यादा लग रहा था / मगर खलनायक को भी दिल होता है ,उन्होनें हमलोगों को चाय और नास्ते का पैसा नही देने दिया /

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

रैगिंग-6

सुबह हो चुकी थी /क्लास का समय दस बजे से था /नहाना धोना तो हास्टल में उपलब्ध था परन्तु अभी तक नास्ता की व्यवस्था नहीं हुई थी /नास्ते के लिए मई अपने दो मित्रों अनिल पाण्डेय और राजेश रत्नाकर के साथ चाय की दूकान पर पहुंचा /
आइये -आइये --कहकर दुकान पर खड़े सीनिअर ने कहा । प्रत्युतर में हमलोगों ने भी प्रणाम सर कहा /एक सीनिअर ने कहा --तुम ब्रह्मिन हो तो तुम्हें पूजा भी करना आता होगा /मैंने नहीं में उत्तर दिया /"अच्छा ,भौतिक विज्ञान पढ़ते हो " उन्होनें दूसरा सवाल दागा /" जी ,मैं भौतिक विज्ञान में ८१ प्रतिशत अंक लाया हूँ " इतना बोलते ही उन्होंने H P का फुल फॉर्म बोलो /
H P--horse power
H P --hindustan petrolium
H P-- harmonic progression
इसके आगे मुझे कुछ याद नहीं आ रहा था /मेरे साथ आये दो मित्रों से उधर दो सीनिअर अलग प्रश्नोत्तर कार्यक्रम चला रहे थे //

रैगिंग -5

नज़ारा देखने वाले सीनिअर की भीड़ थी । सितम्बर के महीने में थोड़ी उमस थी । नंगे बदन ठण्ड नहीं लग रही थी । प्रायः सभी लोगो की नज़ारे नीची थी । इसके पूर्व मैंने राजगीर में पूर्ण नंग के रूप में जैन -मुनियों को अपने कार्य में मस्त देखा था /

कोई रेलगाड़ी की सीटी बजाता तो छुक छुक करता /एक चक्कर करीब दो किलोमीटर का रहा होगा .दो चक्कर लगाने के बाद शरीर से पसीना आने लगा था /फिर एक सीनिअर ने कहा -बेहुदे कहीं के शर्म नहीं आती ,जाओ कपडे पहनो /मानों प्यासी धरती को जल बूंदों के रूप में मोटी मिल गई हो /

रात के करीब ग्यारह बज चूके थे । दौड़ने के कारण शरीर चिपचिपा था । खैर पंखे की हवा मिल रही थी । आँख तुरंत लग लगी /
मैं यह मान कर चल रहा था कि रैंगिंग पढाई का ही एक हिस्सा है और अपने को वातावरण में ढालने कि कोशिस में लग गया । जैसा कि बात चीत से लग राह था सीनिअरो का यह उत्पीडन कार्यक्रम करीब एक माह तक चलेगा .

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

आओ हँस लें


बचपन भूखा
जवानी भूखी
भूखी खेत के फसलें
क्यों कहते हो
आओ हंस लें ॥

पैर भी सूखे
लव भी सूखे
और भींगी है पलकें
क्यों कहते हो
आओ हंस ले ॥

तुम्हें देखकर मन मचलता


तुम्हें देखकर मन मचलता
और मचलती मेरी कलम
बैठो पास ज़रा मुस्कुराकर
कविता लिखनी है तुम पर सनम //

आँचल तेरे छंद बनेगें
गाएगे सुर तेरे पायल
तेरे कंगन की छन-छन सुन
मेरी कविता हो गई पागल //

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

रैगिंग -4

आदरणीय सीनिअर महोदय के" एक" कहते ही हमलोगों ने ख़ुशी -ख़ुशी अपने शर्ट उतार कर कोने में डाल दिया
'दो' बोलने के साथ ही सबने अपने -अपने गंजी वनियान उतार डाला । 'तीन' बोलने के बाद सबने अपने पैंट उतार दिए । पैंट उतारने तक कोई परेशानी न थी क्योकि अमूनन इस स्थिति में लड़के लोग प्रायः रहते ही है । 'चार' जैसे ही उन्होंने बोला कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । किसी ने अपना जांघिया नहीं उतारा ।

फिर गालियों की बौछार और गालियाँ भी वैसी जैसे गाँव में anpadh देते है । अब क्या था किसे गाली और थप्पड़ खाना था । सब के सब दो से तीन मिनट के बीच नंगे हो चूके थे । इज्ज़त इसलिए बची थी कि यह फिल्म हास्टल के अन्दर के बरामदे पर फिल्माई जा रही थी जहाँ रोशनी मात्र जीरो वाट के बल्व से आ रही थी । हास्टल के बाहर बड़ा सा मैदान था और किनारे -किनारे कोलतार की सडकें । हास्टल में रहने वाले सीनिअर के अलावे इस नयूड फिल्म का और कोई चस्मदिद गबाह नहीं था ।

फिर सीनिअर द्वारा हर एक दुसरे के अपने आगेवाले मित्र के कंधों पर हाथ देने का आदेश दिया गया । फिर सबसे खड़े लड़के को रेलगाड़ी की छूक - छुक आवाज निकालते हुए हास्टल के बाहर लाया गया ।

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

ऐसा है मेरे सपनों का बिहार


मैं जल संसाधन विभाग बिहार सरकार में सहायक अभियंता हूँ । २२ वर्षों के सेवा काल में मैंने अनुभव किया कि
बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि को चौपट करने का काम बाढ़ का है । पलायन का दंश और भौतिक विकास, बाढ़ से सीधे तौर पर जुड़े है । आज लगभग ३३२८ किलो मीटर लम्बे तटबंध के बाद भी हम यह कहने की स्थिति में नहीं है कि हमें बढ़ से मुक्ति मिल गई है ।

आजादी के ६२ वर्षों के बाद और केन्द्रीय जल आयोग के गठन के बाद भी हम नेपाल जैसे छोटे देश ,जिसे हमारे देश से नमक के साथ -साथ पेट्रोल डीजल भी भेजा जाता है ,को बाँध बनाने के लिए राजी नहीं कर सके । बिहार के सौवें साल के संकल्प के रूप में हमारे मुख्यमंत्री समेत अन्य मंत्री और सरकारी पदाधिकारियों को यह संकल्प लेना होगा कि हम बिहारवासी स्वं नेपाल से रिश्ते सुधार कर बाढ़ को रोकने में कारगर होंगे । जैसे ही बाढ़ की समस्या से हमें निजाद मिलेगी ,बिहार का विकास का कृषि विकास चरम पर होगा और हम खाद्य उदपाद में मामले में हरियाना ,पंजाब ,उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को मात दे देंगे।

साथ -साथ हमें हर खेत तक पानी पहुंचाने का भी संकल्प लेना होगा । मैं अपने विचार से बिहार की शस्य श्यामला अन्न उगलने वाली धरती पर कृषि आधारित फैक्ट्री को छोड़कर अन्य क्षेत्र के फैक्ट्री लगाने के पक्ष में नहीं हूँ । अगर ऐसा होता है तो देश से ही नहीं , विदेशों से भी लोग आने वाले वर्षों में शुद्ध वायु की खोज में बिहार का पर्यटन करने आयेगे । जय बिहार जय भारत


बबन पाण्डेय
कौटिल्य नगर
पोस्ट शास्त्री नगर
पटना -23

भारतीय वकील


सत्य की मैं टांग खीचता
झूठ को ताज पहनाता हूँ
काला धन को भी मैं
उजला कर दिखलाता हूँ
औरत के आंसू न पोछू
लुट लेता हूँ उसका शील
मैं हूँ भारत का वकील //

बात -बात पर खिचू
मैं कानून का बाल
तर्कों का छुरा मै घोपू
पुछू बेतुका सवाल
उन चोटों को मैं नहीं देखता
जिसने तोड़ा आपका दिल
मैं हूँ ,भारतीय वकील //

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

रैगिंग --3

दुसरे दिन सुबह मैं दस बजे हास्टल पहुँच गया था /एक रूम में तीन लडकों के लिए जगह थी /हम तीनों जने पहुँच चुके थे /आज रात होने वाली उत्पीडन कार्य अर्थात रैंगिंग के विषय में सोच -सोच कर हम डरे हुए थे /शाम आठ बजे से मेस में खाना मिलना शुरू हो गया था /थके होने के कारण हम सभी बिस्तर पर अपना देह सीधा करना चाहते थे /

रात का खाना खाकर जैसे ही रूम में दाखिल हुए कि होस्टल के वार्ड -सर्वेंट ने बताया कि सभी लोगो को हास्टल न० १ के अंदर लान में जामा होना है /नहीं जाने पर पिटाई भी होगी / वार्ड सर्वेंट से पूछने पर वह बताया कि आप लोगो को नंगा कर दौड़ाया जाएगा /सेकेण्ड ईयर के छात्र हमलोगों की छाती पर मूंग दलने की तैय्यारी में थे / फर्स्ट इयर के सभी छात्र ..चाहे वो सिविल के हों,या मैकेनिकल के ..पांच मिनट के अंदर हास्टल न ० १ पहुँच चुके थे /

एक सीनिअर की आवाज आई - प्रथम वर्ष में आपलोगों का स्वागत है आपलोगों से परिचय का सत्र अब शुरू होने ही वाला है .आप सब एक लाइन में खड़े हो जाए /जब एक बोलू तो सब लड़के अपना शर्ट उतार देंगे ...दो बोलू तो बनियान तीन बोलू तो पैंट और चार बोलू तो अपना जाघिया निकल देंगे /

रैंगिंग -2

हालांकि ऐसा करने में मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा था परन्तु अनजान जगह मैं सूर्यास्त से पहले पहुँच जाना चाहता था ,इसलिए खीझ आ रही थी /मैं अपना परिचय मेढक की तरह उछल -उछल कर दे रहा था /कोई २० बीस मिनट हुए होंगें करीब ५० लोगों का घेरा बन चूका था /एक दबाव मेरे ऊपर बढ़ता जा रहा था ,लग रहा था मानो भीड़ को चिर कर भाग जाऊ ,परन्तु उस उम्र में और समय की नजाकत को देखते हुए ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं था /

उछल -उछल कर परिचय देने के क्रम में मैं थक चूका था और अब मैं सचमुच का रोने लगा था /भीड़ में से शायद किसी को दया आई /उसने कहा - छोडो जाने दो बेचारे को हास्टल में ही तो रहेगा /अब वह छात्र जो मेरे सीनियर थे ,मेरे भगवान् बन चूके थे /उनका यह वचन मानो मेरे लिए समुद्र की लहरों में गोता खाने के क्रम में एक लाईफ जैकेट पहन लेने जैसा था /

मैं वापस कतरास गढ़ लौट रहा रहा था /मैं जिनके यहाँ ठहरा था उनका देर से आने का कारण पूछना लाज़मी था /
वे वानिया जाती के थे,वे व्यापार से जुड़े थे /रैंगिंग क्या होती है इसके बारे में न तो उन्होनें सुना होगा और न देखा होगा ..ऐसा ख्याल मेरे मन में आया /अतः मुझ पर क्या बीती ,ईसका दुखड़ा रोने से कोई फायदा नहीं होने वाला था /कबीर की चौपाई याद आ गई
"मन की दुखड़ा मन ही रखो गोय
सुन ईटलहिये लोग सब ,बाँट न लिहें कोय "
मैं चुप ही रहा / कल होने वाले घटना क्रम के बारे में सोच-सोच कर आंखों से नींद गायब थी /

रैगिंग --1

सितम्बर १९८१ ....आज मुझे एडमिशन के लिए जाना था उस संस्थान में , जो इंजीनिअर पैदा करते है /मैट्रिक की परीक्षा दी थी, उसी समय पिताजी के कृषि कार्यालय गया में कार्य करनेवाले उनके मित्र ने मेरे हाथ की लकीरों को देखकर कहा था कि तुम टेक्नीकल लाइन में जाओगे /शायद तब मैं उनका आशय समझ नहीं पाया था /

मैं धनबाद से थोड़ी ही दूर कतरासगढ़ में एक परिचित के यहाँ रुका था /एक घंटे का रास्ता तय कर संस्थान में आया /मुझे शाम चार बजे तक लौट भी जाना था ..क्योकि जगह अनजान थी और पिता जी आदेश के अनुसार मुझे लौट भी जाना था /एडमीशन के बाद हास्टल भी ऐलोट कर दिया गया / मुझे जाने की जल्दी थी तथा दुसरे दिन पूरा सामन लेकर पुनः आना भी था /
हमारी आँखें अपरिचितों की भाषा तुरंत पढ़ लेती है /गेट से निकलते ही एक व्यक्ति ने रोका /पूछा - एडमिशन हो गया ना / मैंने स्वीकृति में अपना सर हिलाया /फिर वह व्यक्ति थोड़ी दूर ले जाकर अपना परिचय देने को कहा /मैंने सीधी भाषा में अपना नाम ,पिता का नाम ,ग्राम ,पोस्ट जिला वैसी ही बता दिया ...जैसा गावों में बच्चो को सिखाया जाता है /उस व्यक्ति ने तल्ख़ आवाज में कहा - मैं तुम्हारा सीनिअर हूँ जो कहता हूँ करते चलो ...अपना हाथ कमर पर रखो तथा उछल -उछल कर अपना परिचय अंग्रेजी में दो /(जारी )

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

प्रकृति के रिश्ते



ये पेड़ ...
जो नर्म पत्तो
और खिलखिलाते फूलों से लदी हैं
नंगेपन का एहसास झेला है
पतझड़ में //

ये माँ ....
जो बच्चो के साथ
खिलखिला रही है
प्रसव की पीड़ा झेली है //

ये किसान ...
जो आज लहलहाती फसलें
काट रहा है
कड़े धूप की जलन महसूस की है //

बड़ा ही सीधा सम्बन्ध है
सुख -दुःख के बीच //

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

लड़की उवाच


लड़की उबाच .....
प्रिय ! तुम व्यर्थ में चिंतित हो
क्या कर लेंगीं
सूर्य की पराबैगनी किरणें
मेरे गोरे वदन को
क्रीम और लोशन किसलिए है //

बहुत दिनों तक
नारी सावत्री बनी रही
कपड़ों से ढंकी रही
विटामिन डी की कमी से
हड्डियां कमजोर हो गयी //

अब नया ज़माना आया है
रोम-रोम में
वासंती वयार बहने दो
भागमभाग में थोडा सा ही सही
काम का खुमार तो जागने दो //

अब खुले वदन पर
बेख़ौफ़ पड़ती है सूर्य किरणे
मुझे मिलती है विटामिन डी
और कवियों को मिलती है
सौन्दर्य की लड़ी //

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

तकिया


तकिया ....
सिरहाने से लगी
माथे को सहारा देती
रुई से भरी
नर्म और मुलायम
छोटी सी वस्तु //
नींद नहीं आती
तकिये के बिना
जितनी अच्छी तकिया
उतनी स्वस्थ नींद //

आओ प्रिय !
तुम मुझे,अपनी बाहों का तकिया दो
मैं तुम्हे अपनी बाहों का
ताकि इस भागमभाग में
गुजार लें दो हसीन पल //

रविवार, 23 जनवरी 2011

मुझे रोना नहीं आता


दोस्तों ....
मुझे रोना नहीं आता
सीखू भी किससे
हाल के दिनों में
मैंने नहीं देखा किसी को
जार -ज़ार रोते //

किसी के यहाँ दुःख बाटने जाता हूँ
पहन लेता हूँ कला चश्मा
ताकि लोग यह न कहें
मैंने रोया ही नहीं//


पिता का नश्वर शरीर
पंचतत्व में विलीन हो चूका था
मेरे आने से पहले
आने पर रोने की कोसिस की
मगर लोगों ने चुप करा दिया //

पहले माँ की आँखें
डूब जाती थीं आंसुओ में
जब बेटी बैठती थी डोली में
बेटी ने लव -मैरिज की
माँ की आंखों में भी अब
नहीं आते आंसू //

सच है दोस्तों !
मरने -मारने की रोज आती खबरों
और हंसने के चक्कर में
हम रोना भी भूल गए //

शनिवार, 22 जनवरी 2011

सुमन अग्रवाल ...कूची की कविता




चित्रकारों की कूची ही कलम होती है और चित्र ही उनकी कविता / इन्हीं चित्रकारों में एक है सुमन अग्रवाल कोलकाता की ..इनकी चित्र..लुभावनी है ...इनके चित्र देखकर मैं लिखने को मजबूर हुआ ...खुदकिस्मती से ये मेरी कवितओं की प्रशंसक भी है

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कविता में हम शब्द बांधते
गाते है गीत अमन के
हर निर्जीव सजीव लगती है
ऐसे ही हैं, हर चित्र सुमन के //

उनकी कूची ही कविता है
हर रंग हैं, झोंके पवन के
आंखों से होकर,दिल में घुस जाते
ऐसे ही हैं ,हर चित्र सुमन के //

हर चित्र में श्रींगार है ऐसा
दीखते हो जैसे ,अंतरमन के
उकेरा है हर चित्र,बड़े लगन से
ऐसे ही हैं ,हर चित्र सुमन के //

रविवार, 16 जनवरी 2011

मन भवरा बड़ा बेईमान


जवानी की यादों की
झूला वे झूले
उनके बाल है उजले
गाल है रूखे
मन भवरा दौड़े
जिधर फूल देखे //

वे पीते है जी भर कर
उरों के दो प्याले
गंध अभी भी हैं फूलों में
भरसक वे सूखे
मन भवरा दौड़े
जिधर फूल देखे //


हाथो
से लाठी का
लेते वे सहारा
आंखों का मत पूछो
वे तो नजारों के भूखे
मन भवरा दौड़े
जिधर फूल देखे //

बातों ही बातों में
चुटकी वे लेते
होते हैं खुश देख
नाती और पोते
मगर कोयक की कुक सुन
मन उनका चीखे
मन भवरा दौड़े
जिधर फूल देखे //

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

हवा असमंजस में है





रेत कहती है ....
रुको हवा रुको
क्यों बहती हो
मुझे उड़ा कर
लोगों की आंखों में
समा देती हो
फूलों पर बैठा देती हो //

हवा कहती है ....
फूलों की खुशबू
कहती है मुझसे
उड़ो -उड़ो
मुझे दूर -दूर फैलाओ
जो डूबे है प्रेम-विरह में
उनको गले लगाओ //

दोस्तों !
हवा आज असमंजस में है

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

फूलमतिया


फूलमतिया जवान है
मगर ...
नहीं लगाती सिंदूर और बिंदी
नहीं पहनती चूड़ी और पायल
वह मसोमात जो ठहरी //

नरेगा योजना में मिटटी ढोते
देखा उसे पहलीबार
उससे कोई बात नहीं करता
उसका श्वशुर और वह
अलग -थलग है भीड़ से
अगर शहर में होती
तो उसके कई यार होते //

मैं योजना का हाकिम था
उसे और उसके स्वशुर को बुलाया
पांच सौ मिलते है
लक्ष्मीबाई पेंशन के तहत //

फूलमतिया की आंखों में जिजीविषा है
शादी के वक़्त बीमार था उसका पति
एड्स था उसे
दुसरे ही दिन स्वर्गवासी हो गया
सुहाग रात क्या होता है
नहीं जानती वह //

सोचा ...
हाकिम होने के नाते ये बात
सार्वजनिक कर दूँ
मगर ठिठक गया
गाँव में अभी भी
शौच के वक़्त
और आँगन कूदकर
मुह काला करने वालों की कमी नहीं //

सोचिये ...
हम क्या कर सकते है
क्योकि
ऐसी फूलमतिया एक नहीं ,अनेकों हैं //

बुधवार, 12 जनवरी 2011

आधुनिक सोच

दादा जी /पापा जी /माता जी
मुझे गर्व पर है आप पर
किसी घोटाले में
नाम नहीं आपका
मगर मै
आप लोगों के द्वारा बनाए
सत्य के मार्ग पर नहीं चलूँगा //

मैंने पढ़ा है पापा
अगर हाथो में हो
मख्खनदार बिस्कुट
तो नहीं भौकते
रास्ते के कुत्ते //

गुस्ताखी माफ़ पापा !
जिस सत्य के कांटे को दिखाकर
डराते थे मुझे बचपन में
बड़ा होने पर
मैंने उसे भोथरा पाया
सॉरी पापा !
मुझे आदमी नहीं
अमीर बनना है //

सोमवार, 10 जनवरी 2011

हिमालय और हम


१९ वी सदी तक
तुम गर्व से चूर थे हिमालय
बौना बनाते रहे तुम
हम मानवों को //
हिमाच्छादित शिखरों को दिखा-दिखा
मुंह चिढाते रहे //

चिर दी
हम मानवों ने
तुम्हारी छाती
२० वी सदी में
गाड आये अपना झंडा
तुम्हारे मस्तक पर //
और सुनो
ढेर सारा कचड़ा छोड़ आया हूँ
तुम्हारे गोद में
जो कह रहे है कहानी
मेरे फतह की//
आने वाली पीढ़ी
नाज़ करेगी हम पर //

कितनी ताकत है
तुम्हारे बर्फ में
ज़रा इन आधुनिक कचड़ो को
गला कर तो दिखाओ //
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प्रकृति से खिलवाड़ तो हम नहीं करना चाहते परन्तु जाने -अनजाने बहुत साड़ी गलतियां हम कर बैठे है / हिमालय फतह करने के दौरान हम ढेर सारा कचड़ा रास्ते में छोड़ते जा रहे है /
वर्ष २००८ के जुलाई -अगस्त में मैं नेपाल का प्रमुख पर्यटन केंद्र "पोखरा " गया /पोखरा के हिमालयन संग्र्लाय जो पोखरा एअरपोर्ट के सामने अवस्थित है , में जाकर आप बिना हिमालय चढ़े ,उसके सारे रंगों ,प्राकृतिक विविधताये ,हिम मानव और नेपाल की पूरी भाषा और संस्कृति से रूबरू हो सकते है /
मैं नेपाल सरकार को धन्यबाद देना चाहता हूँ जो अभियान चलाकर ईन कचड़ो को हटाने का कार्य कर रही है ,जिनमे से कुछ कचड़े इस संघ्रालय में भी रखे है

मेरे बारे में