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गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

कील


कारीगर ने
कील का सही उपयोग किया
लकड़ी के टुकड़ों को जोड़ कर
एक टेबल बना दिया //

कील ने भी
नहीं बिगड़ने दी उसका स्वरुप
दर्द सहकर भी //

दूसरी तरफ
एक नासमझ ने
कील को फेक दिया सड़कों पर
इस बार कील ने
स्वम दर्द नहीं सहा
बल्कि ...
कितनो को घायल कर गया //

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनाओं में विविधता है,अच्छी प्रस्तुती के लिए बधाई....

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  2. kil ke gun dasha par bhi koi soch sake, ye aapki sarwottam soch ki uchchtam kavita hai, kofi alag hai aapki kavita,sundar likha hai aapne.

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  3. wah ek alag hi parstuti....
    kaabile taarif sir ji..
    jai hind jai bharat

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  4. बबन जी आपकी इस रचना को आज मैंने म्हारा हरयाणा ब्लॉग पर पोस्ट किया है

    @ संजय भास्कर

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