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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

झूठा प्रेम

कृष्ण बनने की चाहत में
अपना सब कुछ लुटा दिया
चरित्र .ईमानदारी और परमार्थ
सब झूठे प्रेम में गला दिया ॥

अब पर कटा पक्षी हू
या ठूंठ हो गया एक वृक्ष
अब तो थोड़ी सी हवा के लिए
हवा ने भी रुला दिया ॥

गुरुर ब्रह्मा ,गुरुर बिष्णु
गुरुर देवोः महेश्वरः
धन्य हैं वो गुरु ,जिन्होनें
ह्रदय में प्रेम पुष्प खिला दिया ॥

कला सतह ताप का शोषक होता है

बहुत कम मित्रों को मालुम है कि मैं एक बढ़िया शिक्षक भी हु ..
विज्ञान और गणित मेरे प्रिय विषय रहे है
एक बार मैं एक छात्र को भौतिक विज्ञान में ताप (temperature ) पढ़ा रहा था
मैंने बताया ..." काला सतह ताप का शोषक होता है ...उदहारण के लिए
तवा के बारे में बता रहा थी ...कि काला क्यों होता है "
...इतना बोलना ही था कि ..छात्र ने कहा समझ गया सर ...काली भैस ..और काले हाथी को ज्यादा गर्मी क्यों लगती है "".....
मेरी जीव-विज्ञान कमजोर है ...क्या यह उदहारण ...सही है ...
उत्तर कि प्रतीक्षा है ....यह चुटकुला भी हो सकता है ...

सोमवार, 30 अगस्त 2010

बेटी --२ कविताये

(१)
मुनिया ....
रोज सुबह उठती है
बर्तन मांजती है
मात्र दस साल की मुनिया
बना लेती है रोटी
और पिस लेती है चटनी
प्याज .हरी मिर्च और अदरख की ॥

स्कुल से भाग आती है ,मुनिया
खेतों पर काम रहे
अपने बापू को पहुचाने
कपडे में बांधकर
चार रोटियाँ ,चटनी और प्याज ॥

माँ ने उसे दी है
बकरी का बच्चा
उसके लिए भी लाती है ,हरी दूब
माँ ने उससे कहा है
इसे बेचकर बनबा दूंगा एक जेवर
तुम्हारी शादी में ॥

माँ के कहने पर
बंदरों सी उछलती
चढ़ जाती है ,मुनिया
अपने घर के छत पर
रुई के फाहे जैसे चलती है
कही टूट न जाए खपड़ा छत का
तोड़ लाई है हरे -हरे नेनुआं
रात के खाने के लिए ॥

जानते है ....
मुनिया एक बिहारी मजदूर की बेटी है ॥

(२)
दस साल की मेरी बेटी
आज काटेगी केक
जन्म- दिन है उसका
बाटेगी ताफ्फियाँ पूरे मोहल्ले में ॥

रोटी और सब्जी बनाना तो दूर
खा कर बर्तन रख देती है सिंक में
माँ के भरोसे ॥

नहीं लाती बाज़ार से कुछ भी
अभी उम्र ही क्या है ?

रविवार, 29 अगस्त 2010

अपने गाँव नहीं जायेंगे आप

मैं गाँव जा रहा हू ...
शायद आप हँसे ॥

सिखाना चाहता हू
किसानों को
बेकार पड़े गोबर
और पेड़ की सूखी पत्तियों से
जैविक खाद बनाना ॥

भू -गर्भ जल की कमी से
चिंतित है अपना देश
अभियान चलाना चाहता हू
रेन -वाटर -हार्वेस्टिंग का
ताकि किसान
भैसों /गायों को धोने में
बागवानी में
इस्तेमाल करे वर्षा जल ॥

गाँव के तालाब
जो शौच स्थल बन गया है
उसकी जल -कुम्भी निकालकर
सबको सिखाना चाहता हू
सहकारी मछली पालन
ताकि मेरे प्रदेश को न मगानी पड़े
आंध्र -प्रदेश से मछलियाँ ॥

सिखाना है मुझे
कैसे वो देख पायेगे
इन्टरनेट पर अपने उत्पादों के भाव
ताकि स्थानीय व्यापारी न करे शोषण ॥

और ......
माँ से भी पूछ लूँगा
कैसे चलता था मैं
इन मिट्टियों में घुटनों के बल
और अपने बचपन की शरारतें
सुनकर
जी लूँगा एक बार फिर से अपना बचपन ॥

शनिवार, 28 अगस्त 2010

हड़ताल एक यज्ञ है

मित्रों ......
हड़ताल एक यज्ञ है
कर्मचारियों द्वारा लगाया गया नारा
घी और हुमाद
हडताली नेताओं के भाषण
वेदों के मंत्रोच्चार
उठने वाला धुयाँ
वार्ता के लिए बुलाया जाना
और मांगों को मनवा लेना
अभिस्ट की प्राप्ति ॥

चिल्ला रहा था
कर्मचारियों का नेता
इसलिए दोस्तों
जोर-जोर से नारे लगाओ ॥

जब लाल कोठी के निक्क्मो का वेतन
तिगुना हो सकता है ....
हमलोगों का क्यों नहीं ॥

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

युवा मन की ख्वाहिसे

लाखों पैदा हो रहे युवाओं में से
मैं भी एक युवा हू ॥

गन्ने के रस से नहा कर
और चासनी की क्रीम लगाकर
रोज सुबह -सुबह
बाहर निकलती है मेरी ख्वाबें॥
जब मैं अपने सारे सर्टिफिकेट
एक बैग में डाल कर
निकल पड़ता हू ...
साक्षात्कार के लिए ॥

खूब उडती है मेरी ख्वाबें
मानो कल ही खरीद लूँगा
पार्क स्ट्रीट में अपना एक बंगला
मारुती सुजुकी का डीजायर
सोनी बाओ का लैप -टॉप
ब्लैक -बेर्री का मोबाइल
और फिर चखने लगूगा
येलो चिली रेसतरां में बैठकर
चिकेन टिक्का ॥

मगर .....
शाम होते -होते थक जाती है मेरी ख्वाबें
करेला सी कडवी हो जाती है मेरी ख्वाबें ॥

कल फिर सुबह ...
मेरी माँ और बहन
माथे पर तिलक लगाकर कर
और व्रत कर
मेरे ख्वाबों को फिर से उड़ाएगी ॥

मैं औरत हू

सच बोलिएगा
पत्नी की बार -बार की फरमाईशों से
मन उबता है या नहीं ॥

आज तीज है
कल हरतालिका
फिर दशहरा
फिर धनतेरस
-----------
कुछ न कुछ खरीदेगी ही मैडम ॥

एक दिन बोल दिया
सहसा मुहँ से निकल पड़ा
क्या करोगी लेकर
सेल्फ साड़ियों से भरी है
जेवर लॉकर में पड़ी है ॥

बोली .....
मैं औरत हू
नहीं मांगती मैं कुछ
मेरे अन्दर की औरत मांगती है
मेरी मांग न हो
तो समझो
मेरे अन्दर का औरत मर चूका है ॥

बादलों के बीच बैठा मैं

हिमालय .....
शायद स्वर्ग का द्वार
कहना गलत न हो ॥

मैं टाइगर हिल की चोटी पर था
बादलों के बीच बैठने की
पहली अनुभूति थी मेरी
मानो ...बचपन लौट आया था
बादलों को पकड़ने की कोशिस
करता रहा मुठियों में
एक अबोध बालक की तरह ॥
बादलों और हवा की अठखेलियाँ
कैसे कहूँ /कैसे लिखू ॥
१०० मीटर नीचे नहीं देख पा रहा था
अपने मित्र को .....
आवाज बेशक आ रही थी उसकी ॥

आज जाना
कुहासे से क्यों होती है
हवाई -दुर्घटनाएं॥

पहाड़ की उच्चतम शिखर से
स्वर्ग सी लग रही थी "पोखरा "॥
सूर्योदय होने को था
हिमाच्छादित शिखरों का
बदल रहा था रंग ...क्षण -क्षण ॥
श्वेत धवल से गुलाबी
गुलाबी से रक्तिम
रक्तिम से सुनहला ...
कैसे बताऊ
बदलते रंगों का अलौकिक संसार ॥

ओ ...नेपाल के दोस्तों !!
बचा कर रखना
प्रकृति के इस अनुपम खजाने को ॥

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

पत्नी के नाम एक पति का ख़त

तुम सुन्दर हो
शिक्षित हो
हसीन हो
मोहल्ले में आप सब सबकी प्रिय है ॥
तुम मंदिरों में भी जाती हो
तीज करती हो
नवरात्र करती हो ॥

मगर एक काम गलत कर देती हो
घर की बूढी महिला से
रूखेपन का व्यवहार कर
आपकी सास भले होगी वह
लेकिन , मेरी तो माँ है ॥
तुम भी तो दौड़कर चली जाती हो
अपने मायके
जब सुनती हो
माँ गिर पड़ी फिसलकर बाथ-रूम में ॥

ऐसा कुछ ना करो
कि माँ रो दे अन्दर से ॥
जब मैंने जन्म लिया था
बिजली नहीं थी
जिसे तुम बुढ़िया कहती हो
उनकी हाथों ने
रात भर स्वम हाथ -पंखा कर सुलाया है मुझे ॥

मेरी मानो ....
सिर्फ एक दिन लिए
मन ही मन
बुढ़िया बनकर चिंतन करो ॥

कोई मुझे हँसायेगा क्या

मित्रों .....
मैं कई दिनों से नहीं हंसा हू ...
हँसना चाहता हू
पूरे शरीर की ताजगी के लिए
लाफ्टर क्लब ज्वाइन किया
कोई फायदा नहीं हुआ ॥

कोई क्यों हंसेगा ......
सांसदों के वेतन तीन गुना हो जाने पर
रास्ट्र्मंडल खेलों की बदहाली पर
महिला आरक्षण बिल पास न होने पर
अभिनेत्रियो के बिकनी क्विन बनने पर
बाप -बेटे के साथ पीने पर
ट्रेन के आमने -सामने टक्कर हो जाने पर
कसाब /अफजल को अभी तक फांसी न होने पर
पाकिस्तान को बाढ़ मदद के ५० लाख डालर देने पर ॥

मेरे दोस्तों
कोई समाचार है आपके पास
जिसे सुनकर ....
मैं दिल खोलकर हँस सकू ॥

भींगे बदन ने तो तन -मन जला डाला

काले बादल
और तेरी काली जुल्फों में
सिर्फ एक ही अंतर है
काले बादल सिर्फ बरसात में बरसते है
काली जुल्फें आपकी मर्ज़ी पर ॥

बन्दूक से चली गोली
और आपकी आंखों से चली गोली में
सिर्फ एक ही अंतर है
बन्दूक की गोली एक को मारती है
आपके आंखों की गोली लाखों को ॥


कहते है
पानी आग को बुझा देती है
मगर ये क्या
आपके भींगे बदन ने तो
मेरा तन मन ही जला डाला ॥

बुधवार, 25 अगस्त 2010

डेटोल की खुशबु

आव़ाज सुनकर
पहचानना आसान होता है
मगर सूंघकर किसी स्थान का पता लगाना
शायद मुश्किल हो ॥

मगर डेटोल की खुशबु
अस्पताल होने का पक्का प्रमाण होगा ॥

मैं गया ....
गाँव के स्वास्थ्य -उपकेन्द्र
पट्टी बंधवाने अपने चोट पर ॥

अन्दर घुसा
बेड पर दो -तीन कुत्ते सोये थे
मानो ईलाज कराने आये हो
एक कमरे में
गाय ने अभी -अभी बछड़ा जना था
डेटोल की खुशबु तो नहीं मिली
गोबर की संडास भले मिली ॥
मुझे लगा ....
पशु अस्पताल तो नहीं आ गया मैं ॥

लेकिन नहीं
गाँव के ही मानव अस्पताल में था मैं
पता चला
नर्से और कम्पौन्दर
पल्स -पोलिओ अभियान में व्यस्त है ॥
और इधर .....
मानव अस्पताल
तब्दील हो गया है ,पशु अस्पताल में ॥

सोमवार, 23 अगस्त 2010

चट विवाह -चट तलाक

मित्रो ...
न कोई लग्न
न कोई मुहर्त
न कोई ब्रह्माण
न कन्या
संविधान प्रदत इस शादी की इस रस्म को
मेरा शत शत नमन ॥

चुनावों के वक़्त खूब होती है
ऐसी शादियाँ ॥

एक मंच होता है /मंडप के नाम पर
पार्टी के नेता होते है / बाराती के नाम पर
पिछली पार्टी को गालियाँ दी जाती है
मंत्रोच्चार के नाम पर ॥
फिर नए पार्टी के नेता
दुल्हे को जय -माल पहनते है ॥
शादी की रस्म समाप्त ॥

आज जो दूल्हा बने
कल फिर तलाक़ ले सकते है
मैंने पूछा एक दिन .....
बोले ...हिन्दू हू
अग्नि के समक्ष थोड़े ही शादी की ॥

कोर्ट क्या करेगा
इन्कैम-टैक्स वाले भी क्या करेगे ॥

वे कहते है
विचारो का मेल ये शादियाँ
मैं कहता हू
टिकेट का खेल है ये शादियाँ ॥

मुझे गर्व है ...
अपने नेताओं पर
नवयुवकों को एक नई राह दिखने का ॥

वासनात्मक प्रेम

जब वे जवान थे
वासना कुलांचे भरती थी
एक बदमास हिरन की तरह ॥

उनकी छुअन तो दूर
सिर्फ .....
यादों का झोंका
ला देता था उनमें
नई ताकत /नई उर्जा
पूरा शरीर तरंगित हो जाता था ॥

वासना की नदी पर तैरना
उनका शगल था ॥

आज वे बूढ़े है
कहते है ....
गर्म साँसे
स्पंदित नहीं करती उन्हें
यादें ....तो बस
सूखे फूल की पंखुडियो की तरह
जमींदोज़ हो रही है
एक -एक कर ॥
आलिंगन से भी
रोम-रोम पुलकित नहीं होता ॥

नहीं हो पाता
उनका मन और मष्तिस्क
उर्जा से लबरेज
अपनी प्रिय के हाथो बनी
एक कप चाय पीने के बाद भी ॥

अपने प्रिय के टूटे दांतों की हँसी
बेसुरा संगीत लगता है उन्हें ॥

मेरे प्रिय ....
क्या उनका प्रेम वासनात्मक है /था ॥

हम लोगो के साथ ऐसा तो नहीं
भले ही झुरियां उम्र की कहानी कहती हो
मगर .....
प्रेम का पौधा
जो हमलोगों ने लगाया था
शुभ -विवाह के दिन
आज भी लगता है
जैसे कल ही रोपा हो ॥

रविवार, 22 अगस्त 2010

अनाज कारखानों में नहीं बनते

हमें आजादी मिली....
सब कुछ करने की
सोचने की
लिखने की
बोलने की
और जनसंख्या बढ़ाने की ॥

हमने खूब मकानें बनाई
हमने खूब सडकें बनाई
हमने खूब पुले बनाई
हमने खूब कारखाने खोले ॥

आजादी मिली थी
सबको रोटी खाने की
खेतों में फसलें लहलहाने की ....
मगर....आज भी
३६०० कैलोरी से भरी थाली नहीं मिलती ॥

मेरे दोस्तों ...
अनाज कारखानों में नहीं बनते
बल्कि ,कारखाने अनाज से चलते है ॥

जरुरत है ...मेरे दोस्तों
दूसरी हरित क्रांति की
नेहरु जी ने कहा था
बाँध और नहरें मंदिर है
इंजिनियर उसके पुजारी ॥

अब समय आ गया है , दोस्तों
दूसरी हरित क्रांति की
किसानों /मजदूरों के सम्मान की
टुकड़े -टुकड़े खेतों को
जोड़ने की मुहीम चले
मिटटी जांच की मुहीम चले
कृषि -यंत्रों की मुहीम चले
हर खेत को पानी देने की मुहीम चले
हर हाथ को काम देने की मुहीम चले
भारत की मिटटी सोना फिर से उगलेगी ॥

आईये ...मेरे दोस्तों
अपने क्रांतिकारी पूर्वजों से कह दें
आपकी दी आजादी
अक्षुण रखी है मैंने ॥

हसिनाये घर को आसमान बना देती है


लेती है वो अंगडाई , तो बिजली चमक जाती है
उड़ाती हैं दुप्पट्टा ,तो हवा भी सहम जाती है ॥

साँसे लेती हैं वो , तो दौड़ कर खुशबु पास आ जाती है
पायल की झनक सुन ,बुलबुल भी चुप हो जाती है ॥

उनकी निगाहें देखने को , हरियाली भी तरस जाती है
जुल्फ झटक दे अगर वो ,बादल भी बरस जाती है ॥

सुना है , हसिनाये नौज़वानो को गुलाम बना लेती है
तिल को ताड़ कर , घर को आसमान बना देती है ॥

क्या चिड़िया के बच्चे घर लौटेगे

मुझे नहीं पता
चिड़िये के उस जोड़े को
कितना समय लगा होगा
अपना घोसला बनाने में ॥

फिर उसने अंडा दिया
उसे बचाया ....
वर्षा /धुप /शीत और दुश्मनों से ॥

रोज बच्चों को छोड़कर
उसकी माँ .....सुबह में
निकल जाती घोसले से
अन्न की तलाश में ॥

शाम को उसे
बड़ा सकून मिलता
जब वह बच्चों के चोंच में डालती
अन्न के दाने ॥

समय गुजरता गया
माँ के बाहर निकले , बच्चे
देश -दुनिया देखा ...
उन्हें अपना घोसला छोटा नज़र आया
फिर कुछ बाद ....
वे बच्चे लौटकर घर न आये ॥

चिड़ियों का जोड़ा
अब वृद्ध हो चूका है
उसे अब भी इंतज़ार है
अपने लाडलों के आने का ॥

क्या उसके बच्चे
अपने माँ -बाप को देखने लौटेगे ॥

शनिवार, 21 अगस्त 2010

हम सब मिलकर राखी बांधे

बहनों ने बाँधी राखी
भाईयों की कलाईयों पर
अपनी रक्षा का वचन लिया
भाई के मुंह में मिठाई डाली
ख़त्म हो गया रक्षा -बंधन ॥

मगर ...बात यही ख़त्म नहीं होती
आईये दोस्तों .....
इस बार कुछ नया करे ॥

मैं बांधना चाहता हू राखी
उन शिकारियों की कलाईयों पर
उनके बंदूकों पर भी
उनसे वचन लेना चाहता हू
नहीं चलायेगे गोली
जंगल के राजा बाघ पर
गैंडे पर /हिरनों पर /हाथियों पर
उनकी ......
खाल/सिंग /अस्थियों के लिए ॥

मैं बांधना चाहता हू राखी
इंसान के सबसे अच्छे मित्र
वृक्षों को .....
ताकि वे हमें देते रहे
शुद्ध प्राण वायु -आक्सीजन ॥

मैं बांधना चाहता हू राखी
मजदूरों /किसानों की कलाईयों पर भी
उनसे भी वचन लेना चाहता हू
देते रहेगे सैदव ...अन्न के दाने
पेट भरने के लिए ॥

आशा है ...
आप भी मेरा साथ देगे ॥

मैं नीव हू ..मेरे दोस्त

मैं नीव हू ...मेरे दोस्त
सबसे निचला हिस्सा
सबका भार सहता हू
स्थिर रहता हू ...
क्योकि मैं जानता हू
अगर मैं अशांत हुआ
गडमड हो जाएगा
पूरा सामाजिक ढांचा //

मेरे दोस्त ...
मुझे इतना मजबूत बनाओ
मुझे इतना सम्मान दो
ताकि ....
आप और आपके बच्चे
निर्विघन खेल सके
मेरे घर के छत पर
सदियों तक //

बासुरी का मन बदलने लगा है ...


धुप ने मन बनाया था , आपको झुलसाने का
हवा ने मन बनाया था ,आपको फुसलाने का
तूफ़ान ने मन बनाया था , आप को दहलाने का
काले बादलों ने मन बनाया था , आपकी काजल चुराने का
फूलों ने मन बनाया था , आपकी खुशबू छीन लेने का
कमल ने मन बनाया था ,आपकी कोमलता हर लेने का
मोतियों ने मन बनाया था , दांतों की चमक क्षीण करने का
और बासुरी ने मन बनाया था , आपकी सुर -सप्तम चुरा लेने का
मगर ......
मैंने आपको अपना कर
सबके नापाक मंसूबों पर
पानी फेर दिया ॥

रावण बार -बार जिन्दा क्यों होता है

राम और रावण
दोनों बसते है ...
मेरे /आपके हृदय में ॥
दोनों में चलता रहता है ...
एक युध्ध ...अहर्निश ॥
कभी राम सबल होता है
तो कभी रावण ॥

सुबह उठता हू ...
नित्य क्रिया कर
भगवान् की मूर्ति के सामने
आरती गाता हू
धुप जलाता हू ....
तब मेरा राम सबल रहता है
भिखारी को दान देना अच्चा लगता है
वृद्ध माता -पिता पूजनीय लगते है
सबसे प्रेम से बातें करता हू ....

जैसे -जैसे दिन बीतता है ...
झूठ /धोखा /बेईमानी का
फल चखता हू ....
तब मेरे अन्दर का राम ...
हारने लगता है ...मेरे दोस्त
रावण सबल होने लगता है ॥

हम जलाते है ...
रावण को हर दशहरे में
फिर क्यों नहीं मरता
मेरे अन्दर का रावण ॥

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

कागज बिलकुल निरीह है ...

कोरा कागज
स्वच्छ , श्वेत, निर्मल ,पावन
मगर ....
मूक और निरीह ॥

गुदवा लेता है अपने ऊपर
.....प्रेमगीत
.....यश -गाथा
....
स्वागत गान
....
विरह -गान
.....
भाषण और नारे
....क्रांतिवीरो की कहानिया
.....समकालीन साहित्य ॥

गवाह बन जाता है ...
शादी के पवित्र बंधन का
अभिसप्त तलाक का
नियुक्ति पत्र का
त्याग -पत्र का
संपत्ति के बटवारे का
और हाकिम के स्पस्टीकरण का भी ॥


मैं जानता हू ....
मूक और निरीह कागज .....
कुछ नहीं कर सकता ...
इसलिए दोस्तों ...आइये
उनलोगों की कलम तोड़ दे .....
जो लिखना चाहते है
अपने कुत्सित विचार
गन्दा साहित्य ...
और अपहरण के बाद का फिरौती पत्र
जो बोना चाहते है ....
घोटालों के बीज
इन कागजों पर ॥

उनलोगों की कुंची तोड़ दे
जो उकेरना चाहते है
गंदे चित्र ॥

टुकड़ेसंग्राहलयो में बंद कागज़ के

वो ताड़ के पत्ते
वो भोज -पत्र
वो कपडे और कागज के टुकड़े
कितने खुशनसीब है ...
जिन्होंने अपने ऊपर
गुदवाया भारत का इतिहास ॥

वो साहिल के पंखों की कलम
वो दावात
और वो स्याही
आप कितने धन्य है ....
कितने ही क्रांतिवीरों ने
स्पर्श किया आपको ॥

छूना चाहता हू , मैं भी आपको
ताकि .....
क्रांतिवीरों का थोडा सा ओज
उनके क्रांतिकारी विचार
स्थानांतरित हो सके हममे
आप सहेज कर रखे गए है
शीशे के अन्दर संग्राहलयो में ॥

डर के पीछे का रहस्य

आवाज़ टकराकर लौटती है
पहाड़ो से /दीवालों से
प्रतिध्वनि कहते है उसे ॥

किये गए कार्यों की
अनुगूँज भी लौटती है
टकराकर अंतरात्मा से
अंतर सिर्फ यही है
यह शांत होता है
इसमें आवाज़ नहीं होता ॥

अच्छे कार्यों की अनुगूँज देती है
प्रफुल्लित मन /प्रसन्नचित मन
और लाती है चेहरे पर
तेज /ओज और दिव्य-शक्ति ॥

बुरे कार्यों की अनुगूँज पैदा करती है
एक डर .....
हत्या का /बेईज्ज़ती का /कानून का
एक खौफ ......
कभी न ख़त्म होने वाला ॥

आईये ....
अच्छे कार्यों को आलिंगित कर
अपने भीतर पैदा करे
एक भीतरी शक्ति
यह हमें बनाएगा
स्वस्थ और चिरायु ॥

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

देख लेता हू आपको खबावो में

छन-छन कर आती है धूप, जैसे सुराखों से
देख लेता हू आपको कभी भी , अपने खवाबों से ॥

रोग भागती नहीं , खा -खा कर नकली दवाओं से
उम्मीद डूब जाती है ,बिना लक्ष्य के पतवारों से ॥

काले घनेरे बादल देख कर डर जाता हू
खवाबो को ही आगोश में कर लेता हू ॥

आज के बाद से , अंधेरों का मुहं दूंगा सिल
लगे रहे काम में ,तो मिल ही जाएगा मंजिल ॥

नदी किनारे खेलते बच्चे

मैं खड़ा था ....
गंगा नदी के किनारे
देख रहा था गंगा नदी और
तट पर खेलते बच्चे ॥

वह गंगा में कूदता
फिर निकालता
अपना कमाल दिखाता
फिर हाथ पसार कर कुछ मांगता ॥

उसे निकृष्ट समझाना
भूल थी मेरी ....
अचानक एक नाव डूबी
वह तुरंत कूदा
पांच लोगों को किनारा लगाया
मैं आवाक रह गया ॥

गोताखोर आये थे
जान बचाने नहीं
शवों को निकालने ॥

ओ ..सिर्फ चड्डी पहने बालक
मुझे तुम गर्व है
और तुम्हारी माँ पर भी
जिसने आपको जन्म दिया ॥

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

यादों का चश्मा पहनकर देखो दोस्त !

दोस्तों .......
आज सुबह मैंने
यादो का चश्मा पहना

सब कुछ साफ़ -साफ़ दिखता है
मेरा यू ही बैठ कर
दिन भर ताश खेलना
मेरे अपने ठगी के कारनामे
बेबजह किसी की गलतियाँ निकालना ॥

साफ़ दिखता है
बाबूजी की पिटाई
और फिर .....
इंसान बन जाने की पूरी घटना ॥
बहन की राखी की डोर से लेकर
उसकी पति -पिटाई
फिर तलाक -शुदा होने की पूरी घटना ॥

साफ़ -साफ़ दिखता है ...
सैनिको के शव
नौकरशाहों का भ्रस्टाचार
रात रंगीन करने में लुटाया गया धन ॥
दुर्घटना में घायल लोगो को
देखकर भी अस्पताल न पहुचाना॥

साफ़ -साफ़ दिखता है
पुलिस वालो का
ठेले वालों की समाने उठा लेना
रेलों पर गठरियो के बदले वसूली करना ॥

साफ़ -साफ़ दिखता है ...मेरे दोस्त
बूढी माँ का
एक कोने में चुपचाप बैठकर
बहु की दो रोटियों का इंतज़ार
उसके बेटों के बीच हो गए
दिलों के बटवारे को देखना ॥

साफ़-साफ़ दिखता है ...
दोस्तों की धोखेवाजी
नेताओं का विश्वासघात
और अपने वोट का दुरूपयोग ॥

एक निवेदन है दोस्तों ...
हम रोज पहनें
यादों के चश्मे
शायद हमें ...अपनी कुछ गलतियां नज़र आयें
और , एक कदम बढ़ा सकें
उनके सुधार के लिए ॥

मेरे दोस्त ! ....
यादों के चश्मे में , आप
गले मिलते और हाथ मिलाते
कब दिखोगे ॥

हर बबाल अच्चा लगता है

दोस्तों !मुझे खबरची नहीं, खबर अच्छी लगती है
मुझे प्यार नहीं , प्यार की डगर अच्छी लगती है ॥

मुझे बाग़ नहीं , जंगलात अच्चा लगता है
चोर जब बंद हो , हवालात अच्चा लगता है ॥


मुझे नकलची नहीं , नक्ल अच्चा लगता है
हर देशवासी का ,शक्ल अच्चा लगता है ॥

मुझे नाव नहीं , उसका पतवार अच्छा लगता है
मुझे म्यान नहीं , उसका तलवार अच्चा लगता है ॥

मुझे हर किसान -मजदूर का , सवाल अच्चा लगता है
अन्याय पर होने वाला , हर बबाल अच्चा लगता है ॥

लेने -देने का हर , रस्मों -रिवाज़ अच्चा लगता है
पर कटे पंछी को दिया गया , परवाज़ अच्चा लगता है ॥

बुधवार, 11 अगस्त 2010

फूलों ने खुशबू उधार ली है आपसे


बेनतीजा रहा मस्तानी पुरवाई का , आपकी बदन को चूमना
सारे फूल आपके बदन की खुशबू , पहले से ही उधार ले चूके थे ॥

काले बादल कुछ इस तरह चूमी , बर्फीली चोटियों को
जुल्फें झटक कर ढक ली आपने जैसे , अपनी उरोजों को ॥

अकाल

अकाल ....
एक दिन में नहीं
कह कर आता है ...धीरे -धीरे ॥

बादल रुठ जाते है
जमीन दरारें दिखाती है
कमल कुम्भला जाते है
चिड़ियों को नहीं मिलता अन्न
बगुले को नहीं मिलते कीटें
धान के खेतों में ॥


सरकार कहती है
कोई नहीं रहेगा भूखा
विदेशों से मंगा लिया जाएगा
चावल -गेहू -दाल ॥

क्या सरकार मिटा देगी
रामू काका के चेहरे पर उगी झुरीयां
जो मुनिया की शादी
टल जाने से हो गई है गहरी ॥

क्या सरकार देख पा रही है
सूखने के कगार पर पहुचे तालाबों में
मछलियों की तड़प ॥

क्या सरकार जंगल/जंगलातों के
नदी - तालाबों में पानी भर सकेगी
ताकि प्यास बुझा सके
कौवे /मोर और चिल्काव

सच में दोस्तों !!!
अकाल में सिर्फ अन्न उत्पादन ही नहीं रुकता
रुक जाती पूरी सृष्टी
टूट जाती है
मानवीय रिश्ते और संवेदना ॥

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

आरक्षण का तावा

बहुत दुखित था वह
" मेरी जाती के लोग ही
मेरी रोटी छिनते है "...
मैं स्तब्ध था ....यह सुनकर
क्योकि
बोलनेवाला एक सवर्ण नहीं
बल्कि हरिजन था ॥

वह चिल्ला रहा था
एक मंच के नीचे से
जहा से भाषण होना था
हरिजन एकता के सम्बन्ध में ॥

६२ साल हो जाये आरक्षन के
नहीं मिली नौकरी
मुझे /मेरे पिताजी जी /मेरे दादा जी को
बड़ा ही कारुणिक दृश्य था
वह बडबडा रहा था
आरक्षण के नाम पर
आई ० ऐ ० एस /आई ० पी ० एस /नेताओं के बेटे
लाभ पर लाभ लिए जा रहे है
ये कैसा आरक्षण ...
उसका गला रुन्धने लगा था ॥


सच है उसकी आवाज
समाज की हर घटना ...
प्रभावित करती है हर आदमी को
कोई विरोध का स्वर निकालता है
कोई चुप रहता है
वह आगे क्या करेगा
मैं नहीं जानता
शायद , बदला लेना चाहता है
अपनी जाती के लोगों से ही ॥


नेता जी....
कुछ ऐसा कीजिये...
आरक्षण के तवे पर
सब अपनी रोटी सेक सकें ॥

६३ साल का जवान सांप

मेरे घर के उत्तर- पश्चिम कोने पर
रहता है एक सांप
हमारे घर जितना पुराना ही
६३ साल का ॥

तीन बार हमें डंस चूका है
१९६५, १९७२, और कारगिल में
यद्दिपी कि तीनों बार
वह भाग खड़ा हुआ
मगर विष -वृक्ष बो गया है ॥

उसने कश्मीर में अपने
छोटे -छोटे बच्चो को जन्म दिया है
फुफकारते है उसके बच्चे कश्मीर में ॥
कश्मीर के लोगो का जीना
उसने तबाह किया हुआ है ॥


अब मेरे पुरे घर में ....
उसके विषैले बच्चे फ़ैल रहे है ॥

अमरीका और चीन
उसे दूध पिलाते है
हमें तो टूक कहना होगा
अमरीका और चीन से
कि हमें ......
दुश्मनों को दूध पिलाने वालों से
कोई वास्ता नहीं ॥

सोमवार, 9 अगस्त 2010

जब तुम छत पर आती हो


तुम
जब छत पर आती हो
छुपा लेता है
चाँद अपने को , बादलों की ओट में ॥

जब तुम मुस्कुराती हो
कलियाँ फूल बन जाती है
मौन निमंत्र्ण देती है
मुझे तोड़ो ....और
लगा लो अपने गजरे में ॥


जब तुम हँसती हो
रंग -बिरंगी मनभावन तितलियाँ
तुम्हारे कपोलों को चूमने दौड़ती है
सच में
तुम्हारे कपोल पराग -कनों से बने है ॥


और सुनो ....
तुम बगीचे जाओ
पैदल और नंगे पैर ही
क्योकि ...
हरी -दूबों की फुनगियों पर बैठे ओस -कण
तुम्हारे चरण धोना चाहती है ॥

रविवार, 8 अगस्त 2010

फियादीन को पहचानो, मेरे दोस्त !!

उनके घर पर पत्थर मारने का बहाना ढूढ़ता हू
लड़ने -लड़ाने का सब जगह ठिकाना ढूढ़ता हू



आजादी के भ्रम का रंगीन गुब्बारा उड़ना चाहता हू
युवाओं को देश -प्रेम के मार्ग से भटकना चाहता हू ॥


मैं एक नशा हू , नशा ही सबको पिलाना चाहता हू
कश्मीर- भारत का गुलाम , यह भ्रम फैलाना चाहता हू ॥


इस्लाम के उलट सबको सिखाता हू , मस्जिदों में
इस्लाम खतरे में है ,कह -कह कर सबको भड़काना चाहता हू ॥


पहचानो इस अजनबी को , नकली रुपयों पर मत बिको
यही बात बबन , आप सब को बताना चाहता है ॥









डल झील का बदरंग होता पानी

ओ ..मेरे कश्मीर के युवा दोस्तों
मेरे बच्चो की शादी हुई है ....
वे बिताना चाहते है
अपनी दुल्हन के साथ
डल झील पर तैरती शिकारे में
दो हसीन राते ॥

वे वादियों में देखना चाहते है
सेवों से लदे डाल
कचनार के फूलों से लदी डालियां
अखरोट से लदे वृक्ष
डल झील ....
जो सुनहला हो जाता है जब
पड़ती है उसपर
पहाड़ो से छिटककर कर आने वाली किरनें ॥

नई -नवेली दुल्हन डरती है
नहीं खोना चाहती अपना सुहाग
और अपना जीवन
जिसे सहेजा गया है बड़े जतन से
न जाने कितने रोग -अवरोधी इंजेक्सन
का दर्द सहा है ...

जाकर क्या देखेगे वे लोग
फिरन के अन्दर रखे रायफल और ग्रेनेड
आगजनी का दमघोटू धुया
हर चौक -चौराहों पर
तैनात बखतरबन्द गाडियां
पता नहीं चलता दोस्त
कौन फियादीन है कौन देशभक्त


दोस्त .....
ये आज़ादी एक भ्रम है
यह पड़ोसियों का माया जाल है
भारत जैसा देश और नहीं कही
मेरे कश्मीर के दोस्त ...
आईये ...
कश्मीर को हम फिर से स्वर्ग बनाए ॥

तुम धड़कते रहना मेरे दिल

यह कविता मेरे मित्र मधुसुदन भाई के द्वारा वाल पर लिखे गए दो पंग्तियो पर आधारित है ....

अगर ....मेरे सारे दोस्त
मुझसे कटिस हो जाए
कोई बात नहीं ॥
मेरे पैर जवाव दे जाए
व्हील -चेयर है ना ॥
मेरे आँख मुझे धोखा दे दें
ब्रेल -लिपि में पढ़ लूँगा ...


मगर...
मेरे दिल की धड़कन
तुम धोखा मत देना
तुम धड़कते रहना
यू ही सदा
तुम पहुचाते रहना
शरीर के नसों में शुद्ध खून
जो करते है ...
उर्जा से लबरेज
मन और मस्तिष्क को ॥

शनिवार, 7 अगस्त 2010

मन को बांधना आसन नहीं

शब्दों की तरह
चाहता हू बांधना मन को भी
मगर मन ...
कौंधती है बिजली की तरह
बढती है लहरों की तरह
मन बाहर दौड़ने लगता है
ध्यान के दौरान
गंदे विचार कुलबुलाते रहते है ॥


बड़े ही द्वन्द में जीता है मन
आत्मा -परमात्मा के चक्कर में
गृहस्थ -वैराग्य के रास्तों पर
अपने -पराये की दहलीज पर
ठिठक जाता है मन ॥

खोये प्रेमी /खोया धन
पाने के लिए तपड़ता है मन ॥
सोचा था ...
बुढ़ापे के साथ
तन और मन ठंढा हो जाएगा ॥
मगर मन ....
अब भी लम्बी छलांगे लगाता है ॥

क्या मन की चंचलता को रोकना
संयम को पा लेना है ?
ईस्वर के करीब पहुचना है ?

तेरा प्यार

तेरा प्यार
एक गोलगप्पा
उसमे डाली मैंने
तेरे इश्क की इमली
तेरे अदा की दही
तेरे चुहलबाजी की मिर्ची
और
तन्हाई में की गई
गरमा गरम बातों की नमक
और ....
बहुत मज़ा आया ....
आगे अब नहीं चखुगा ॥

उल्टा ख़त


ख़त आया था
चाची जी का / चाचा के नाम ॥
पढ़ नहीं पा रहे थे ख़त
पता नहीं ...
कौन सी भाषा में लिखी थी ॥

पुनः चाचा जी ने ख़त लिखा
" श्री मति जी
दिलों की रानी
आपका ख़त किस भाषा में है
कैसे पढू
कैसे बताऊ हाले -मुह्हबत "

फिर चाची जी का ख़त आया
" मेरे बुध्धू श्रीमान
प्रेम -पत्र है ..कोई मजाक नहीं
दर्पण के ठीक सामने रखिये
उल्टा लिखी हू
दर्पण में सीधा दिखेगा
डर लगता है
कही सास -ससुर पढ़ न लें
हमलोगों की प्यार भरी बाते
और ....
मजाक न उडाये देवर "॥

ऐसे होते थे
पहले के प्रेम पत्र ॥
चाची जी ...
मुझे आप पर गर्व है ...
एक हिन्दुस्तानी बहु होने का
कितना समय लगा था
यह पहला प्रेम पत्र लिखने में चाची जी

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

हेल्लो जिंदगी ...गले लगा लो .

दोस्तों ...
जिंदगी एक गाडी है ...
मित्रता /स्नेह /प्यार /सम्बन्ध
इसके चक्के ॥
यह अपनी गति से
सदैव चलायमान रहती है ॥


दोस्तों ...
इस गाडी को तेज दौड़ाने
के चक्कर में
मैंने डाल दी इसमें
बेईमानी / धोखा और फरेब
का पेट्रोल ॥


चक्का फट गया है , दोस्तों
मैं और मेरी गाडी
मेरे बनाए जाल में ही
फंस गयी है ॥


दोस्तों ....
बुजुर्गों के अनुभव बताते है
करनी है अगर तेज
गाडी की रफ़्तार
तो ...दबाना होगा
ईमानदारी और क्रतव्य -निष्ठा का
ऐसीलेटर॥
आईये ना ...
कोशिस करते है
शायद ...जिंदगी हमें गले लगा ले ॥

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

कारगिल युध्ध के एक सैनिक का अंतिम क्षण

लेह से कारगिल तक का राजमार्ग
फिजाओं में घुला था बारूदी महक
हो भी क्यों ना
यह युध्ध तीर -कमानों से नहीं
बोफोर्स्र तोपों का था ॥

अँधेरी रातों में
घावों से रिस रहा था मवाद
शरीर निढाल था
और पैर मानो
लोहे का बना था ....
मिलों तक थकान नहीं था
मगर कान जगे थे
और जब कान जागता हो
तो नींद कैसे आएगी ॥


धुल के गुब्बार
आखों में धुल नहीं झोक पाए
वह नेस्नाबुद करना चाहता था
चाँद -तारे उगे हरे झंडे
और फतह करना
चाहता था जंग ॥
कल सुबह उसे ...
टाईगर हिल पर
तिरंगा जो फहराना था



मेरे सैनिक दोस्त
आप रात में ही शहीद हो गए थे
मगर...आपके साथियों ने
कल सुबह
टाई गर हिल पर तिरंगा लहरा दिया था ॥


दोस्त , मुझे आज पता चला
सैनिक एक आदमी नहीं
एक जज्बा का नाम है ॥
और ऐसे जज्बे वाले हर भारतीय को
मेरा शत -शत नमन ॥

मेरे बारे में