निशि ... यही नाम था उस लड़की का.जिसने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था बचपन के उन बेबाक अल्हड और अलमस्त क्षणों में . हमलोग एक साथ गाँव के छोटे से स्कुल में पढ़ते थे . मुझे याद है उन दिनों मैं क्लास आठ का छात्र था..
जैसा की लोग कहते है ... प्यार पहली ही नज़र में हो जाता है ... यह मुझ पर पूरी तरह लागू था ...
निशि पतली छरहरी और गोरी थी. उनके पिता जी एक पशु -चिकित्सक थे और मेरे पिता जी कृषि -फार्म में मैनेजर.
कृषि फार्म में खेतों की जुताई के लिए बहुत सारे बैल थे ..मेरे पिता जी बैलों की खूब देख-भाल करते थे. वे सप्ताह में एक बार बैलों के जीभ पर नमक रगड़ते थे,.. मैंने निशि के पापा को पहली बार तब देखा था .जब पिता जी ने उन्हें बैलों के बीमार होने पर बुलाया था .
दुसरे दिन जब मैं स्कुल गया ... तो मैंने निशि से कहा .."आज मैंने तुम्हारे पापा को देखा" वो चहक कर बोली ."कैसे " और फिर मैंने उसे पूरी कहानी स्कुल की छुट्टी के बाद बता दी.
पहले जब टीचर क्लास आते तो वे कामन रूम से लड़कियों को बुला लिया करते और लडकियां क्लास ख़त्म होने के बाद उनके साथ कामन रूम वापस लौट जाती .. इस कारण हम लोग की बात आपस में बहुत ही कम होती .गाँव के स्कुल में पीने के पानी के लिए चापाकल नहीं था ,सभी बच्चे कुएं पर जाकर पानी पीते थे ... मुझे निशि से गप करने का सबसे अच्छी जगह वह कुआँ ही था जहां गप करने के लिए पानी पीने के बहाने हम दोनों वहाँ पहुँच जाते थे ..
निशि के घर से मेरे घर की दूरी लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर के बीच होगी. उसके पापा और मेरे पिताजी एक अच्छे दोस्त हो चुके थे. निशि के घर पर मैं पहली बार अपने माँ-पिताजी के साथ छत के खरना के दिन प्रसाद खाने के लिया गया था . निशि की माँ छठ व्रत करती थी.
पहली बार निशि के हाथों का स्पर्श तब हुआ जब.. वह छठ का प्रसाद लेकर मेरे हाथों में दी.
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मैं अपने क्लास में हमेशा अव्वल आता था सभी लड़के यदा-कदा मेरी कापी मांग कर नोट्स नकल करते थे .. अब एक दिन निशि ने मेरी विज्ञान की कापी मांगी . निशि मुझे चाहने लगी है , इसकी स्पस्ट झलक मैंने उसकी आँखों में देखी//
ऐसे लोग जो भी बोलें... प्यार करने वाले एक दुसरे के आँखों की भाषा पढ़ लेते है.
निशि से बातों का सिलसिला जारी रहे ,इसिलए एक दिन मैंने उससे इंग्लिश की कापी मांगी.उसके कॉपी से मुझे कोई मतलब तो था नहीं ,बस यूँ ही बात-चीत चलता रहे,इसी उदेश्य से मैंने यह किया था
घर लाकर उसकी कापी को उल्टा-पुल्टा ..अंतिम पृष्ठ पर " तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे " जो किसी फिल्म प्रोफ़ेसर का एक गाना है ,लिखा हुआ था .. यह गाना उनदिनों रेडिओ पर खूब बजता था. मैंने तुरंत उस गाना को पूरा उसकी कापी में लिख दिया और दुसरे दिन उसकी कापी उसे लौटा दी //
अब बात निशि के चौकने की थी.. दूसरे दिन उस्सने पूछा ..आपने यह गाना पूरा क्यों लिख दिया
"आपको शायद पसंद है.. ऐसा मुझे लगा "
मैं बुक स्टाल से कभी-कभी 'मायापुरी " नाम से फिल्म पत्रिका खरीद लेता था सो मैंने निशि को भी पढने के लिए दिया.
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समय तेजी से भाग रहा था और जब मन प्रेम में बंधा हो तो समय गुजर जाने का तनिक भी आभास नहीं होता. मैं .क्लास आठ से क्लास दशमी तक पहुँच गया था . हम लोग युवा हो रहे थे
उन दिनों स्कुल का कोई यूनिफार्म नहीं था. जो जैसा चाहे कपडा पहन कर स्कुल आता. एक दिन निशि फ्रोक की जगह "समीज सलवार " पहनकर स्कुल आई . मिलते ही चहक कर पूछी ..कैसी लगती हूँ ?
पता नहीं मुझे अचानक क्या सुझा ..मैंने कह दिया ..मुस्लिम लड़की की तरह लगती हो "
उसके चेहरे से निराश के भाव झलक रहे थे
पुनः दूसरे दिन से वह फ्रॉक पहन कर ही आने लगी
कुछ दिनों बाद पूछा .. समीज सलवार अब क्यों पहन कर नहीं आती
आपको पसंद नहीं. इसलिए अब नहीं पहनती ..और न पहनुगी//
(मेरी कहानी"निशि" का एक अंश )