" 21वीं सदी का इंद्रधनुष "
(बिना अनुमति के रचना न लें ) विविध रंग की कविताएं
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मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
प्रेम मुहाबरे
केश तुम्हारे काले-काले , नैन तुम्हारे बाबरे
तुम्हें देख मैं गढ़ लेता हूँ , रोज प्रेम मुहाबरे//
क्या चकोर की पिहू-पिहू , क्या कोयलिया की कुहू-कुहू
लव हिले तो फुट पड़ते हैं , हंसी के सौ-सौ फब्बारे //
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babanpandey
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