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शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013
बुधवार, 23 अक्तूबर 2013
निशि .
निशि ... यही नाम था उस लड़की का.जिसने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था बचपन के उन बेबाक अल्हड और अलमस्त क्षणों में . हमलोग एक साथ गाँव के छोटे से स्कुल में पढ़ते थे . मुझे याद है उन दिनों मैं क्लास आठ का छात्र था..
जैसा की लोग कहते है ... प्यार पहली ही नज़र में हो जाता है ... यह मुझ पर पूरी तरह लागू था ...
निशि पतली छरहरी और गोरी थी. उनके पिता जी एक पशु -चिकित्सक थे और मेरे पिता जी कृषि -फार्म में मैनेजर.
कृषि फार्म में खेतों की जुताई के लिए बहुत सारे बैल थे ..मेरे पिता जी बैलों की खूब देख-भाल करते थे. वे सप्ताह में एक बार बैलों के जीभ पर नमक रगड़ते थे,.. मैंने निशि के पापा को पहली बार तब देखा था .जब पिता जी ने उन्हें बैलों के बीमार होने पर बुलाया था .
दुसरे दिन जब मैं स्कुल गया ... तो मैंने निशि से कहा .."आज मैंने तुम्हारे पापा को देखा" वो चहक कर बोली ."कैसे " और फिर मैंने उसे पूरी कहानी स्कुल की छुट्टी के बाद बता दी.
पहले जब टीचर क्लास आते तो वे कामन रूम से लड़कियों को बुला लिया करते और लडकियां क्लास ख़त्म होने के बाद उनके साथ कामन रूम वापस लौट जाती .. इस कारण हम लोग की बात आपस में बहुत ही कम होती .गाँव के स्कुल में पीने के पानी के लिए चापाकल नहीं था ,सभी बच्चे कुएं पर जाकर पानी पीते थे ... मुझे निशि से गप करने का सबसे अच्छी जगह वह कुआँ ही था जहां गप करने के लिए पानी पीने के बहाने हम दोनों वहाँ पहुँच जाते थे ..
निशि के घर से मेरे घर की दूरी लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर के बीच होगी. उसके पापा और मेरे पिताजी एक अच्छे दोस्त हो चुके थे. निशि के घर पर मैं पहली बार अपने माँ-पिताजी के साथ छत के खरना के दिन प्रसाद खाने के लिया गया था . निशि की माँ छठ व्रत करती थी.
पहली बार निशि के हाथों का स्पर्श तब हुआ जब.. वह छठ का प्रसाद लेकर मेरे हाथों में दी.
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मैं अपने क्लास में हमेशा अव्वल आता था सभी लड़के यदा-कदा मेरी कापी मांग कर नोट्स नकल करते थे .. अब एक दिन निशि ने मेरी विज्ञान की कापी मांगी . निशि मुझे चाहने लगी है , इसकी स्पस्ट झलक मैंने उसकी आँखों में देखी//
ऐसे लोग जो भी बोलें... प्यार करने वाले एक दुसरे के आँखों की भाषा पढ़ लेते है.
निशि से बातों का सिलसिला जारी रहे ,इसिलए एक दिन मैंने उससे इंग्लिश की कापी मांगी.उसके कॉपी से मुझे कोई मतलब तो था नहीं ,बस यूँ ही बात-चीत चलता रहे,इसी उदेश्य से मैंने यह किया था
घर लाकर उसकी कापी को उल्टा-पुल्टा ..अंतिम पृष्ठ पर " तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे " जो किसी फिल्म प्रोफ़ेसर का एक गाना है ,लिखा हुआ था .. यह गाना उनदिनों रेडिओ पर खूब बजता था. मैंने तुरंत उस गाना को पूरा उसकी कापी में लिख दिया और दुसरे दिन उसकी कापी उसे लौटा दी //
(मेरी कहानी"निशि" का एक अंश )
जैसा की लोग कहते है ... प्यार पहली ही नज़र में हो जाता है ... यह मुझ पर पूरी तरह लागू था ...
निशि पतली छरहरी और गोरी थी. उनके पिता जी एक पशु -चिकित्सक थे और मेरे पिता जी कृषि -फार्म में मैनेजर.
कृषि फार्म में खेतों की जुताई के लिए बहुत सारे बैल थे ..मेरे पिता जी बैलों की खूब देख-भाल करते थे. वे सप्ताह में एक बार बैलों के जीभ पर नमक रगड़ते थे,.. मैंने निशि के पापा को पहली बार तब देखा था .जब पिता जी ने उन्हें बैलों के बीमार होने पर बुलाया था .
दुसरे दिन जब मैं स्कुल गया ... तो मैंने निशि से कहा .."आज मैंने तुम्हारे पापा को देखा" वो चहक कर बोली ."कैसे " और फिर मैंने उसे पूरी कहानी स्कुल की छुट्टी के बाद बता दी.
पहले जब टीचर क्लास आते तो वे कामन रूम से लड़कियों को बुला लिया करते और लडकियां क्लास ख़त्म होने के बाद उनके साथ कामन रूम वापस लौट जाती .. इस कारण हम लोग की बात आपस में बहुत ही कम होती .गाँव के स्कुल में पीने के पानी के लिए चापाकल नहीं था ,सभी बच्चे कुएं पर जाकर पानी पीते थे ... मुझे निशि से गप करने का सबसे अच्छी जगह वह कुआँ ही था जहां गप करने के लिए पानी पीने के बहाने हम दोनों वहाँ पहुँच जाते थे ..
निशि के घर से मेरे घर की दूरी लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर के बीच होगी. उसके पापा और मेरे पिताजी एक अच्छे दोस्त हो चुके थे. निशि के घर पर मैं पहली बार अपने माँ-पिताजी के साथ छत के खरना के दिन प्रसाद खाने के लिया गया था . निशि की माँ छठ व्रत करती थी.
पहली बार निशि के हाथों का स्पर्श तब हुआ जब.. वह छठ का प्रसाद लेकर मेरे हाथों में दी.
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मैं अपने क्लास में हमेशा अव्वल आता था सभी लड़के यदा-कदा मेरी कापी मांग कर नोट्स नकल करते थे .. अब एक दिन निशि ने मेरी विज्ञान की कापी मांगी . निशि मुझे चाहने लगी है , इसकी स्पस्ट झलक मैंने उसकी आँखों में देखी//
ऐसे लोग जो भी बोलें... प्यार करने वाले एक दुसरे के आँखों की भाषा पढ़ लेते है.
निशि से बातों का सिलसिला जारी रहे ,इसिलए एक दिन मैंने उससे इंग्लिश की कापी मांगी.उसके कॉपी से मुझे कोई मतलब तो था नहीं ,बस यूँ ही बात-चीत चलता रहे,इसी उदेश्य से मैंने यह किया था
घर लाकर उसकी कापी को उल्टा-पुल्टा ..अंतिम पृष्ठ पर " तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे " जो किसी फिल्म प्रोफ़ेसर का एक गाना है ,लिखा हुआ था .. यह गाना उनदिनों रेडिओ पर खूब बजता था. मैंने तुरंत उस गाना को पूरा उसकी कापी में लिख दिया और दुसरे दिन उसकी कापी उसे लौटा दी //
अब बात निशि के चौकने की थी.. दूसरे दिन उस्सने पूछा ..आपने यह गाना पूरा क्यों लिख दिया
"आपको शायद पसंद है.. ऐसा मुझे लगा "
मैं बुक स्टाल से कभी-कभी 'मायापुरी " नाम से फिल्म पत्रिका खरीद लेता था सो मैंने निशि को भी पढने के लिए दिया.
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समय तेजी से भाग रहा था और जब मन प्रेम में बंधा हो तो समय गुजर जाने का तनिक भी आभास नहीं होता. मैं .क्लास आठ से क्लास दशमी तक पहुँच गया था . हम लोग युवा हो रहे थे
उन दिनों स्कुल का कोई यूनिफार्म नहीं था. जो जैसा चाहे कपडा पहन कर स्कुल आता. एक दिन निशि फ्रोक की जगह "समीज सलवार " पहनकर स्कुल आई . मिलते ही चहक कर पूछी ..कैसी लगती हूँ ?
पता नहीं मुझे अचानक क्या सुझा ..मैंने कह दिया ..मुस्लिम लड़की की तरह लगती हो "
उसके चेहरे से निराश के भाव झलक रहे थे
पुनः दूसरे दिन से वह फ्रॉक पहन कर ही आने लगी
कुछ दिनों बाद पूछा .. समीज सलवार अब क्यों पहन कर नहीं आती
आपको पसंद नहीं. इसलिए अब नहीं पहनती ..और न पहनुगी//
"आपको शायद पसंद है.. ऐसा मुझे लगा "
मैं बुक स्टाल से कभी-कभी 'मायापुरी " नाम से फिल्म पत्रिका खरीद लेता था सो मैंने निशि को भी पढने के लिए दिया.
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समय तेजी से भाग रहा था और जब मन प्रेम में बंधा हो तो समय गुजर जाने का तनिक भी आभास नहीं होता. मैं .क्लास आठ से क्लास दशमी तक पहुँच गया था . हम लोग युवा हो रहे थे
उन दिनों स्कुल का कोई यूनिफार्म नहीं था. जो जैसा चाहे कपडा पहन कर स्कुल आता. एक दिन निशि फ्रोक की जगह "समीज सलवार " पहनकर स्कुल आई . मिलते ही चहक कर पूछी ..कैसी लगती हूँ ?
पता नहीं मुझे अचानक क्या सुझा ..मैंने कह दिया ..मुस्लिम लड़की की तरह लगती हो "
उसके चेहरे से निराश के भाव झलक रहे थे
पुनः दूसरे दिन से वह फ्रॉक पहन कर ही आने लगी
कुछ दिनों बाद पूछा .. समीज सलवार अब क्यों पहन कर नहीं आती
आपको पसंद नहीं. इसलिए अब नहीं पहनती ..और न पहनुगी//
शनिवार, 19 अक्तूबर 2013
कोजागरा
कोजागरा ... नाम सुनने में तो बड़ा ही अटपटा लगता है ,परन्तु बिहार के मिथिलांचल में यह एक महत्वपूर्ण पर्व है. यह पर्व शरद पूर्णिमा के दिन चांदनी रात में मनाया जाता है. इस पर्व में नव विवाहित वर -वधू चांदनी रात में गोबर से लीपे, अल्पना से सजे आँगन में जग्न्न्मता लक्ष्मी और इंद्र व् कुबेर की विधिवत पूजा की जाती है . अभ्यागतों का स्वागत पान-मखान से किया जाता है.कोजागरा का विशेष आकर्षण है .. वर -वधू की अक्ष-क्रीडा
नव विवाहित जोड़ों के आनंद के लिए दोनों को जुआ खेलाया जाता है और चूँकि वधू अपनी ससुराल में नई होती हैं, जहां वरपक्ष की स्त्रियाँ और युवतियां अधिक होती है मीठी बेईमानी कर वर को जीता दिया हैं. लक्ष्मी पूजन के उपरान्त नव-विवाहित जोड़े पुरे टोले लोगों को पान मखान बाटते हैं . कोजागरा के भर (उपहार) के रूप में वधू के मायके से बोरों में भरकर ताल मखाना आता है
मखाना बहुत हल्का होता हैं तीन-चार किलो में ही एक बोरा भर जाता है. तालमखाना मिथिलांचल के पोखरों में ही होता होते हैं और कही नहीं. इनके पत्ते कमल के पत्तों की गोल-गोल मगर कांटेदार होतें हैं . उनकी जड़ में रुद्राक्ष की तरह गोल-गोल दानों के गुच्छे होते हैं ,जिन्हें आग में तपाकर उसपर लाठी बरसाई जाती है ,जिससे उन दानों के भीतर से मखाना निकल जाता है .
यह प्रक्रिया बहुत ही श्रम-साध्य है जिसे मल्लाह लोग ही पूरा कर पाते है. जिस दिन वे हार मान लेंगे उसी दिन ताल-मखाने पूरी दुनिया में दुर्लभ हो जायेंगे . दुर्भाग्यवश इस प्रक्रिया का यंत्रीकरण नहीं किया जा सका है //
( डा बुध्हिनाथ मिश्र के संस्मरण से साभार )
नव विवाहित जोड़ों के आनंद के लिए दोनों को जुआ खेलाया जाता है और चूँकि वधू अपनी ससुराल में नई होती हैं, जहां वरपक्ष की स्त्रियाँ और युवतियां अधिक होती है मीठी बेईमानी कर वर को जीता दिया हैं. लक्ष्मी पूजन के उपरान्त नव-विवाहित जोड़े पुरे टोले लोगों को पान मखान बाटते हैं . कोजागरा के भर (उपहार) के रूप में वधू के मायके से बोरों में भरकर ताल मखाना आता है
मखाना बहुत हल्का होता हैं तीन-चार किलो में ही एक बोरा भर जाता है. तालमखाना मिथिलांचल के पोखरों में ही होता होते हैं और कही नहीं. इनके पत्ते कमल के पत्तों की गोल-गोल मगर कांटेदार होतें हैं . उनकी जड़ में रुद्राक्ष की तरह गोल-गोल दानों के गुच्छे होते हैं ,जिन्हें आग में तपाकर उसपर लाठी बरसाई जाती है ,जिससे उन दानों के भीतर से मखाना निकल जाता है .
यह प्रक्रिया बहुत ही श्रम-साध्य है जिसे मल्लाह लोग ही पूरा कर पाते है. जिस दिन वे हार मान लेंगे उसी दिन ताल-मखाने पूरी दुनिया में दुर्लभ हो जायेंगे . दुर्भाग्यवश इस प्रक्रिया का यंत्रीकरण नहीं किया जा सका है //
( डा बुध्हिनाथ मिश्र के संस्मरण से साभार )
शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013
ऋणात्मक ऊर्जा
तुममें इतनी ताकत नहीं कि
हवाओं को पटक सको
बादलों को रोक सको
फूलों से खुशबू छीन सको
और तो और
मुगियों को कटने से रोक सको //
मगर तुममें बहुत ऊर्जा है
संवेदनशील से संवेदनहीन बन जाने के लिए
क्षण में विचारों को पलट देने के लिए
माँ- बहनों को नंगा करने के लिए
जरा सोचो ..
तुम्हारी ऊर्जा का वहाब किधर जा रहा है
हवाओं को पटक सको
बादलों को रोक सको
फूलों से खुशबू छीन सको
और तो और
मुगियों को कटने से रोक सको //
मगर तुममें बहुत ऊर्जा है
संवेदनशील से संवेदनहीन बन जाने के लिए
क्षण में विचारों को पलट देने के लिए
माँ- बहनों को नंगा करने के लिए
जरा सोचो ..
तुम्हारी ऊर्जा का वहाब किधर जा रहा है
गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013
"स्कालर"
"स्कालर" मैंने इसका अर्थ शब्दकोष में खोजने की चेष्टा नहीं की .. अख़बारों में छपे खबर के अनुसार स्कालर उसे कहते है जो किसी परीक्षा में पैसे लेकर दुसरे के बदले बैठ कर उसे पास करवा देते है .//
बिहार के अखबारों में आजकल इन दिनों ऐसी मामलों के समाचार छापते रहते है //
ऐसे मामलों की जानकारी करीब १०-१२ वर्ष पूर्व तब हुई जब नालंदा जिले के रणजीत डॉन ने सैकड़ों की संख्या में इंजिनीयर डोक्टर और बैंक पी ओ इस विधि से बना चुके थे //
वे पकडे तब गए तब वे इस तरकीब को भारतीय प्रबंधन संस्थान की परीक्षा में इसे अपना रहे थे.
इस विधि में पद के अनुरूप पैसा लिया जाता है जैसे मेडिकल में एड्मिसन के लिए २० लाख ,पी ओ के लिए १० लाख इतायादी //
ये लोग कोम्पुटर से फोटो की मिक्सिंग ऐसा करते है कि अंतर पहचानना मुश्किल होता है .
पकडे जाने पर भी सजा का कोई विशेष प्रावधान नहीं है ...
जो परीक्षक बड़े गौर से हस्त लेखन मिलाते है ..वो ही ऐसी लोगो को पकड़ पाते है ..मुझे एक बार मैट्रिक परीक्षा में ड्यूटी मिली थी ... मैं तो नहीं पकड़ पाया... मगर एक स्कुल के शिक्षक ने ही इसे पकड़ा
ऐसे मामले दिन -ब- दिन बढ़ते जा रहे है... यह ज़रूरी है कि इस सम्बन्ध में कुछ कडा कानून बने..
बिहार के अखबारों में आजकल इन दिनों ऐसी मामलों के समाचार छापते रहते है //
ऐसे मामलों की जानकारी करीब १०-१२ वर्ष पूर्व तब हुई जब नालंदा जिले के रणजीत डॉन ने सैकड़ों की संख्या में इंजिनीयर डोक्टर और बैंक पी ओ इस विधि से बना चुके थे //
वे पकडे तब गए तब वे इस तरकीब को भारतीय प्रबंधन संस्थान की परीक्षा में इसे अपना रहे थे.
इस विधि में पद के अनुरूप पैसा लिया जाता है जैसे मेडिकल में एड्मिसन के लिए २० लाख ,पी ओ के लिए १० लाख इतायादी //
ये लोग कोम्पुटर से फोटो की मिक्सिंग ऐसा करते है कि अंतर पहचानना मुश्किल होता है .
पकडे जाने पर भी सजा का कोई विशेष प्रावधान नहीं है ...
जो परीक्षक बड़े गौर से हस्त लेखन मिलाते है ..वो ही ऐसी लोगो को पकड़ पाते है ..मुझे एक बार मैट्रिक परीक्षा में ड्यूटी मिली थी ... मैं तो नहीं पकड़ पाया... मगर एक स्कुल के शिक्षक ने ही इसे पकड़ा
ऐसे मामले दिन -ब- दिन बढ़ते जा रहे है... यह ज़रूरी है कि इस सम्बन्ध में कुछ कडा कानून बने..
बुधवार, 9 अक्तूबर 2013
ए सी रेस्तरां
मेरी तो उतनी औकात नहीं कि
ए सी रेस्तरां में खाना खाता फिरू ... मगर कभी कोई ए सी रेस्तरां में खाना खिलाने या पार्टी देने ले जाता है ,तो मना भी नहीं करता.
मेनू देखकर जो डिश सस्ता प्रतीत होता है .. उसका बिल आने पर महंगा लगता है ..क्योकि उस पर १२% सेवाकर जोड़ दिया जाता है .
केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क विभाग ने सोमबार को देर शाम एक सर्कुलर जारी कर यह स्पस्ट कर दिया है कि एम आर पी पर बिकने वाले सामग्रियों ( ( कोल्ड ड्रिंक , मिनरल वाटर बटर ईत्यादी )पर सेवा शुल्क नहीं लगेगा .
वैसी स्थिति में जहां दो प्रकार के रेस्तरां है ,उसमे सिर्फ वातानुलूलित स्थान का इस्तेमाल करने पर ही सेवाकर डेय होगा ..
चलिय कुछ राहत तो मिली //
ए सी रेस्तरां में खाना खाता फिरू ... मगर कभी कोई ए सी रेस्तरां में खाना खिलाने या पार्टी देने ले जाता है ,तो मना भी नहीं करता.
मेनू देखकर जो डिश सस्ता प्रतीत होता है .. उसका बिल आने पर महंगा लगता है ..क्योकि उस पर १२% सेवाकर जोड़ दिया जाता है .
केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क विभाग ने सोमबार को देर शाम एक सर्कुलर जारी कर यह स्पस्ट कर दिया है कि एम आर पी पर बिकने वाले सामग्रियों ( ( कोल्ड ड्रिंक , मिनरल वाटर बटर ईत्यादी )पर सेवा शुल्क नहीं लगेगा .
वैसी स्थिति में जहां दो प्रकार के रेस्तरां है ,उसमे सिर्फ वातानुलूलित स्थान का इस्तेमाल करने पर ही सेवाकर डेय होगा ..
चलिय कुछ राहत तो मिली //
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