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गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

प्रेम-याचना


जयेष्ट की गर्मी
और आग के दहकते शोलों को
महसूस किया है मैंने //

अब मैं ...
तुम्हारे दहकते सुर्ख अधरों
निस्वच्छ श्वासों
उन्नत,सुकोमल,मस्त उरोजों
और तुम्हारे तपतपाते तन की गर्मी में
झुलसना चाहता हूँ //

मुझे पता है ....
ऐसा करने से मेरे संताप
छू-मंतर हो जायेंगें
क्या ऐसा होगा प्रिय !!

मेरे बारे में