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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

कविता के बीज

आओ खोजते है ...
कविता के बीज 

ख़ुशी के अश्क 
या फिर गरीब के आँखों में खून 
आदमी से आदमी  के लड़ने का जूनून 
खोजिये 
यही कही पर मिल जायेंगे 
कविता के बीज//

धर्म बदलने की दुकान पर जाए 
कसम खाकर पलट जाने वालों के आँखों में झांके 
सिंदूर लगे पत्थर में खोजें 
मिल जायेगे 
कविता के बीज //

सास-बहु की खटपट में खोजे
देवर-भाभी के चुम्बन में खोजे 
नेताओ के चाल-चलन में खोजें 
मिल जायेंगे 
कविता के बीज //

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

सकून

तुम्हारी लवों की मुस्कुराहटों ने मुझे शायर बना दिया
ईमानदारी की ज़ख्मों ने मुझे कायर बना दिया //

इरादे नेक हो , इसलिए ताउम्र मशक्कत करता रहा
आपकी जुल्फों के साए ने , मुझे कातिल बाना दिया //

बात रुपयों की चलती है , तो सकून मिलता है
वरना आपकी हंसी में किसका पेट भरता है //

रविवार, 1 अप्रैल 2012

जब बुर्के वाली ने मुझे गोद में बैठाया

मुझे लगता है बचपन की यादें ही , किसी इंसान के लिए असल में उसका जीवंत इतिहास होता है । किसी भी इंसान का बचपन ,चाहे वह आमिर या गरीब परिवार से ताल्लुक रखता हो , पुर्णतः तनाव मुक्त और स्वछन्द होता है । आज जब को उन्मुक्त खेलते ,दोस्तों से हंसी-मजाक करते या फिर मांग को लेकर रोने का नाटक करते देखता हूँ ,तो बचपन फिर से लौटकर जीवंत होने लगता है मानो किसी ठूठ वृक्ष पर फिर नई कोंपलें उगने लगी हो ॥

आज जब 45 साल का युवा हूँ ,अपने बच्चो की या किसी भी बच्चे की बाल -सुलभ चंचलता , तोतली बोली सुनता हूँ , तो स्वं मुझे भी इन क्षणों में से गुजरे होने का बखूबी एहसास होता है ।

मैं इस मामले में खुशनसीब हूँ कि मेरा बचपन गाँव की गलियों में , कीचड़ में रोपे जाने वाले धान के खेतों में ,पीले खिले सरसों से के खेतों के बीच से सरपट दौड़ लगाते हुए और मकई के बालों पर लगे कौओं को टिन के ढोलक बजाकर उड़ाते हुए बीता है । मकई के भूरे बालों को गोंड से अपनी मुछों के पास चिपकाकर बाबूजी और माँ को डराने का खेल मेरे जेहन में इस कदर बैठ गया है कि वह निकले नहीं निकलता । चने की झाड़, मटर की फलियाँ ,बगीचों से अमरुद और आम के टिकोले तोड़ लेना , किसी दुसरे के खेत से नज़र बचाकर मूली उखाड़ लेना इत्यादि वैसी यादें है जिन्हें फिर से जीने की इच्छा होती है ।

मेरे बाबूजी कृषि सेवा में थे ,उनकी पोस्टिंग गया और नालंदा जिला के विभिन्न प्रखंडों में रही । गया जिला के गुरुआ प्रखंड ,जो आजकल नक्सल प्रभावित प्रखंडों में गिना जाता है , में मेरा जन्म हुआ । पहले बच्चो के नाम गाँव के बूढ़े बुजुर्ग तय करते थे । मेरे बड़े भाई का नाम" ललन' रखा गया था ,इसलिए मेरा नाम 'बबन ' रखा गया । मेरे छोटे भाई का नाम 'मदन ' रखा गया ।

जन्म स्थान से सम्बंधित यादें जेहन में नहीं है जब पिता जी की पोस्टिंग शेरघाटी में थी वही से मैंने होश संभाला और लगभग सभी याद हैं । पिट्टो और कबड्डी मेरा प्रिय खेल था या फिर पुराने मकानों पर ईट के टुकड़े से लकीर खीचना । मैं पहला क्लास में था , जब शेरघाटी में अंग्रेजी माध्यम का एक स्कुल 'संत कोलमबस " खुला था । मेरे पिता जी ने मेरी माँ की जिद पर उस अंग्रेजी स्कुल में मेरा दाखिला करवा दिया । इसके पहले मै एक सरकारी स्कुल में पढता था , जहाँ बैठने के घर से जुट की बोरी ले जाता था मनोहर पोथी और स्लेट पेंसिल भी हाथ में होता था ।

मेरी माँ अंग्रेजी नहीं जानती थी , मगर उसने मुझे हिंदी में स्कुल जाने से पहले लिखना पढना सीखा दिया था .अंग्रेजी स्कुल में बैठने को बेंच था और पहनने को युनिफोर्म साथ में जूता । मेरे घर से मेरा स्कुल ३ किलो मीटर दूर था । समयस्या मुझे स्कुल तक लाने और ले जाने की थी । पिता जी के अधीन ३ हलवाहा ( बैलों के द्वारा जुताई करने वाले ) थे , उनमे से एक सायकिल चलाना जानता था , उसे ही मुझे स्कुल से लाने और ले जाने की जिम्मेवारी सौपी गई ।

एक ही रास्ते से बराबर आने-जाने के कारण मै स्कुल जाने वाले रास्ते के हर चौक चौराहे और गलियों से परिचित हो चूका था । मन में यह भाव उठता था कि अगर मुझे कोई न भी लेने आये तो मैं अकेले भी घर आ सकता हूँ ।

एक दिन जब क्लास से छुट्टी हुई , मुझे लेने वाला आदमी नहीं आया था , मैं पैदल ही चलने की ठानी । कुछ दूर चलने के बाद मेरी बगल से एक रिक्सा ( तीन पहिया ) गुजरा । मैंने बल-सुलभ चंचलता के कारण , पीछे से रिक्से पर लटक गया । मैंने देखा , रिक्से पर एक बुर्के वाली औरत और दाढ़ी वाला पुरुष बैठा था । उन्होंने रिक्से को रुकवाया । एक क्षण को मुझे लगा , शायद वे मुझे पीटेंगे । डर के कारण ,मेरी हालत पंचर हो गयी थी । मगर उन्होंने मुझसे कहा - बेटा ! आओ कहाँ जाना है , मेरे साथ बैठो । और फिर मैं उस बुर्के वाली औरत की गोद में बैठ गया ।
काश मैं अब उस बुर्के वाली औरत को देख पाता... कितनी बदल गई है दुनिया ? शायद ही अब कोई दुसरे के बच्चे को गोद में बिठाकर उसे घर तक छोड़े ।

मेरे बारे में