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मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

प्रेम मुहाबरे


केश तुम्हारे काले-काले , नैन तुम्हारे बाबरे
तुम्हें देख मैं गढ़ लेता हूँ , रोज प्रेम मुहाबरे//


क्या चकोर की पिहू-पिहू , क्या कोयलिया की कुहू-कुहू
लव हिले तो फुट पड़ते हैं , हंसी के सौ-सौ फब्बारे //

रविवार, 25 नवंबर 2012

जाड़े की धूप हो तुम //




दोस्तों के ईदगाह हो तुम
मेरे ख्यालों के चारागाह हो तुम
उर्वशी की रूप हो तुम
जाड़े की धूप हो तुम //

नाजो -शोख में पली हो
माचिस की तिली हो
क्यों ओस सी चुप हो तुम
जाड़े को धूप हो तुम

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

मंद -मंद मुस्काते फूल


मंद -मंद मुस्काते  फूल
जीवन   को  महकाते फूल
गम सहने की शक्ति देते
कभी नहीं भरमाते फूल //

प्रभु  चरणों  का है यह दास  
कर  अर्पण हम  लागते आस  
है तितली की प्यारी यह 
वन-उपवन महकाते फूल //
मंद -मंद मुस्काते  फूल 

लग गेसुओं में यह 
पौरुष की बीन बजा देता 
सजती  है फूलों से  नारी  
कामदेव को ललचाते फूल //
मंद -मंद मुस्काते  फूल 

शनिवार, 3 नवंबर 2012

तुम केवल ,मेरे मनमीत


हर पत्ते पर नाम लिखूंगा
हर  पंखुड़ी    पर गीत
कोई नहीं और है दूजा
तुम केवल ,मेरे मनमीत //

हर तितली संदेशा भेजे
हवा  तुम्हारी यादों में गाये
ओ मेरी सजनी , जल्दी आ तू
अब समय रहा है रीत //
कोई नहीं और है दूजा
तुम केवल ,मेरे मनमीत //

झरने  की जल सी तू पावन
हो जहां तुम ,वही है सावन
मर चूका मेरे दिल का रावण
 सुन-सुन तेरे आँचल का संगीत
कोई नहीं और है दूजा
तुम केवल ,मेरे मनमीत /

(चित्र मेरी श्रीमती जी नीलू पाण्डेय जी का है )


रविवार, 28 अक्तूबर 2012

एक साधै .. सब सधे


वे ..
अपने गाँव के बारे लिखते थे
पड़ोस के बारे में लिखते थे
एक पार्टी के बारे लिखते थे
क्या खूब लिखते थे
जम कर लिखते थे
जो लिखते थे
गहराई में जाकर लिखते थे//


फिर .. सब राज्य के बारे में लिखने लगे
पुरे देश के बारे में लिखने लगे
इतिहास/ भूगोल / समाजशास्त्र
कला/खेल/साहित्य पर
कृषि /वित्त /बेरोजगारी  पर लिखने लगे
खूब लिखने लगे
अब उनको पढना
समुद्र के नीचे , मोतियों खोजने जैसा नहीं
बल्कि
पानी के सतह पर चलने जैसा है

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

यादों की नदी


मेरे दिल में
तेरी यादों की नदी बहती  है
और
मेरे कानों  में
तेरी यादों की चिड़ियाँ चहचहांती  है

इस नदी का पी लेता हूँ
दो घूंट पानी
छा जाता है नशा
शराब की तरह मुझमें
और तब
मैं अपने को
तुम्हारी यादों से बने
वृक्षों के बीच पाता हूँ //




रविवार, 7 अक्तूबर 2012

चिड़ियाँ

आओ मेरे घर की छत पर 
... तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ ..
वादा करता हूँ ..
तुम्हें पिजरे में कैद नहीं करूंगा//


आओ ! सुनो 
मैंने अपने छत पर 
नहीं लगवाया है मोबाइल टावर 
खतरनाक किरणें निकलती हैं उससे //

मैं छत पर रोज डालूँगा
एक कटोरी पानी 
और थोड़े से अनाज ..
सिर्फ..और सिर्फ तुम्हारे  लिए//

.. बात ऐसी है ..
अगर तुम नहीं बचोगी ..
तो मेरे बच्चे तुम्हें कैसी देखेंगे //

आओगी न ! 
मेरी प्यारी चिड़ियाँ

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

आप चाय पीयेंगे क्या


 मेरे मित्र
मुझे पहले चाय  पर बुलाते थे

कुछ दिनों बाद ..
उनके यहां जाकर
पी लेता  था चाय

अब .. जब उनके यहाँ
जाता हूँ ..
वे पूछते है ...
चाय  पीयेंगे क्या

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

गुलदस्ता


तुम्हें फूल कहना
गलती थी मेरी ...
आपके होठ
टूलिप के लाल फूल जैसे
आपके कपोल
श्वेत कमल
आपकी बिंदी
टेसू के फूल

आपका उर..


डहलिया के फूलों सा उन्नत

हे ! प्रिय ! तुम फूल नहीं
फूलों से भरा
एक गुलदस्ता हो ...

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

नेताओ की घड़ी


एक पत्रकार नरक में गया ...
उसने वहाँ कुछ घड़ियाँ देखी
कुछ घडी तेज चल रही थी
कुछ धीरे धीरे
एक घडी तो बिलकुल बंद थी
उसने पूछा ..
ऐसा क्यों हो रहा है ..
... नर्क के .. कर्मचारी ने बताया
जो जितना झूठ पृथिवी पर बोला
उसकी घडी उतनी तेज चल रही है
जो घडी नहीं चल रही है
वह विवेकानंद की घडी है ..

पत्रकार ने ..पूछा ..
नेताओं की घडी किधर है ..
कर्मचारी ने कहा ..
वह तो आफिस में लगी है ..
वो क्यों ..
क्योकि वह बहुत तेज घुमती है ...
हमलोग उसे पंखे की तरह
इस्तेमाल कर रहे हैं
( (टाइम्स ऑफ़ इंडिया से साभार )

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

नो होर्न प्लीज !


मंदिरों में शोर है
मस्जिदों में शोर है
अन्ना के आन्दोलन में शोर है
संसद से सडक तक
शोर ही शोर है //

आइये ! उखाड़  फेकते  हैं
उस साइन बोर्ड को
जिसमे एक महिला
होठों पर अंगुली रख
इशारा करती  है -  शांत रहने का //
उखाड़  फेकिये
अस्पतालों/ स्कूलों के पास  लगे
"नो होर्न प्लीज़" का बोर्ड //

आइये! इश्वर को खोजने
हम
शांति से शोर की ओर चलें
सत्य से असत्य की ओर चले //

बुधवार, 12 सितंबर 2012

म तिमी लाइ माया गरछू

नेपाल की लडकियां  बड़ी मस्त होती हैं साब ! कहते हुए उस लड़की ने बड़े प्यार से वीयर भरा ग्लास मेरी और बढ़ाया . किसी लड़की के हाथों वीयर पीने का यह मेरा पहला अनुभव था . वीयर को और अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए मेरे सामने टेल हुए मछलियों के कुछ टुकड़े  भी थे . उस लड़की से कुछ और बाते कर पाटा उससे पहले ही वह उठ कर चली गयी शायद और ग्रहाक आ गए थे.
मैं गंडक बराज के नेपाल वाले छोर पर शाम को घुमने आया था . इस छोर पर १५-२० दुकाने है जो सब अस्थाई रूप से बनी हैं . किसी का छत तिन की है तो किसी के पुआल  और खपड़े के .

सब दुकानों के आगे नेपाली महिलायें ही आपका स्वागत मुस्कुराकर  करती है और अगर आप ज़रा भी पीने से वास्ता रखेते हैं , तो बिना इन दुकानों में घुसे बिना नहीं रह सकते
बराज पर पुल होने के कारण नेपाली लोगों का भारतीय क्षत्र में और भारतीय लोगो का नेपाल में लगातार आना-जाना बना रहता है . पुल के प्रवेश द्वार पर सीमा-सुरक्षा बल के जवान तैनात हैं जो आपके द्वारा ले जाई जा रही समानों की जांच करते है
थोड़ी देर बाद वह लड़की पुनः  लौटी  वीयर से खली हुए ग्लास में फिर से वीयर  भर दी . "तुम्हारा नाम क्या है".. मेरे पूछते ही वह मुस्कुराते हुए बोली - विष्णु .  
उम्र करीब २८ वर्ष, की होगी गठा शारीर और उन्नत उरोज ,हलके रंग की लिपस्टिक भी लगाईं थी उसने अपने अधरों पर .  कसी समीज-सलवार में वह पुरे यौवन में दिख रही थी . शायद उसने यह श्रींगार ग्राहकों को लुभाने के मकसद से की होगी // मुझे लगा प्रकृति नेपाल पर मेहरबान है एक  ओर जहां नेपाल में प्राकृतिक दृश्यों की भरमार है ,वही दूसरी और मानव को बनाने वाला इश्वर ने भी नेपाली लड़कियों में जीभरकर सुन्दरता का लेप चढ़ा दिया है

.मुश्किल से उसकी वीयर  की दूकान 25 x 15 फिट  माप की होगी . एक छोटे से कमरे में वह रहती थी . एक फ्रिद्गे था जिसमे वीयर और कोल्ड ड्रिंक की बोतलें ठंढी हो रही थी . एक कोने में गैस और चूल्हा, जिस पर मछलियों को फ्राय कर ग्राहकों को परोषा जाता था
"सूर्य अस्त-नेपाल मस्त " गलत नहीं कहते थे मेरे ऑफिस के लोग . लगता है यहाँ सब लोग अपनी अपनी हैसीयत के मुताबिक़ जरुर पीते हैं

ये मछलियाँ कहाँ से लाती हो - पूछने पर विष्णु ने बताया कि ये सभी मछलियाँ गंडक नदी की है , जो सुबह=सुबह बराज पर भरी मात्र में मिलती हैं . कुछ भारतीय लोग यहाँ से मछलियाँ खरीद कर काठमांडू ले जाते है जहां यह दुगुने या तिगुने   भाव में बिकती हैं /

जाति  पूछने पर विष्णु अपने को उपाध्याय ब्रह्मिण बताती   है मेरे यह कहने पर कि मेरा नाम विनोद पाण्डेय है और भी ब्राह्मण हूँ , वह अपने बारे में बताने लगी . वह पांच बहनें है . उसके पिताजी अब वृद्ध हो चुके हैं ,मगर अपनी जवानी में वे नेपाली कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे . थोड़ी सी खेती-बारी से उनका घर चलता था . मुझे आश्चर्य हुआ कि विष्णु कि सभी बहनें दूकान खोलकर वीयर परोसती  हैं

विष्णु  की मुस्कुराहट से या उसकी अदा से , मैं उसके प्रति आकर्षित हो चला था . कम से कम सप्ताह में एक बार उसके हाथों से वीयर पी लेने में बड़ा सकून महसूस होता था .

एक दिन मैंने विष्णु की दूकान पर एक और बहुत ही खुबसुरत और यौवन से लबरेज कमसिन लड़की को वीयर परोसते देखा . न चाहते हुए भी मैं उसके दूकान में घुस गया और विष्णु से पूछा - यह नै लड़की कौन है ?

मेरी छोटीबहन   है .."माया" कल ही कुवैत से लौटी है , आइये ना , बातें कीजिये मैं विष्णु के निजी कमरे में बैठकर माया से गप्प करने लगा .
माया .. मानों उसके शरीर का मांस दूध से बना था और होटों पर हलकी लाली यह आभास करा रही थी मानों दूध से भरे बर्तन के बीच एक लाल गुलाब रख दिया गया हो .//

माया ने बताया कि वह आठवी तक पढ़ी है मगर अंग्रेजी  नही जानती. ' मैं तुम्हें प्यार करता हूँ ' का नेपाली में अनुवाद क्या होगा - मैंने पूछा
'म तिमी लाइ माया गरछू " कह वह मुस्कुराने लगी
माया के पति ड्राईवर हैं और तीन वर्षों से अर्ब में हैं . यदा-कदा कुछ पैसा भेज देते हैं , माया यहाँ नितांत अकेली थी और  विष्णु के पास ही रहती थी





   

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

खिली प्यार की एक कली


खिली प्यार की एक कली
जब तुम आई दिल की गली //

मक्खन सी फिसलन तेरी बाँहों में
खिला कचनार तेरी अधरों में
उर से है, अब मकरंद टपकता
जवा हुई  अब उर की फली //
खिली प्यार की एक कली
जब तुम आई दिल की गली

चाँद भी धोखा खा जाएगा
सावन भी ठगा रह जाएगा
जो  देखे तेरा प्रचोदित यौवन
तुम्हें खोजता वह गली-गली //
 खिली प्यार की एक कली
जब तुम आई दिल की गली//

A blossoming bud of love
I heart you lane / /

Slippery butter in your arms
Bauhinia feeding of your lips
Ur, now dripping nectar
Now, ur Jwa pod / /
A blossoming bud of love
I heart you Alley

The moon will be betrayed
Sawan also will be duped
See that thy youth Prchodit
Finding you the street - street / /
  A blossoming bud of love
I heart you lane / /

रविवार, 5 अगस्त 2012

मुझे रश्क है ..

मुझे रश्क है ..
आपकी आँखों से
जिसने चुम्बकित कर
मुझे आलिगन  को मजबूर किया //

मुझे रश्क है
हरी दूबों पर टिकी
सुबह की उन ओसों से
जो आपके परों को धो देती है //

और सुनिए ...
मुझे रश्क है
इन हवाओं से भी
जो आपकी जुल्फों से आलंगित हैं

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

मुस्कुराहटों की किताब

आपके  गुलाबी  लवों  में बड़ा  दम है
हंसती कलियाँ भी,इनके आगे कम हैं //

 आपकी सुरीली अंखियों की क्या बात है
इनके आगे ,मयखाने की क्या औकात है //

आपकी मुस्कुराहटों पर लिख रहा हूँ किताब
परेशान हूँ   मैं  , पन्ने लग रहे हैं बे-हिसाब //

आपके उर के फ़राख की चर्चा है महफिल में
थक जाते है मांगते-मांगते नाशाद दिल वाले //

(उर के फ़राख = हृदय की विशालता
नाशाद = बदनसीब )

सोमवार, 18 जून 2012

ओ मेघ ! तू बरस

ओ मेघ ! तू  बरस
घनघोर बरस
तू उनके लिए  बरस
जिनके कुएं
सरकारी पन्नों पर बने हैं //

ओ मेघ ! तू बरस
घनघोर बरस
फाड़  दे
जनता के कान पर जमे
भाषणों और अश्वाश्नों की काई को //

ओ मेघ ! तू बरस
घनघोर बरस
इतना बरस
टूट जाए तटबंध नदियों की
खोल दे पोल
इन्जिनीर और ठ्केदार के मिलीभगत की //

रविवार, 10 जून 2012

गरजो बादल , बरसो बादल

गरजो बादल , बरसो बादल
सूख गई आँगन की तुलसी
और सूख गई माँ की  आंचल
गरजो बादल , बरसो बादल //

सूख गए है खेत और नदियाँ
सूख गई तरुवर की कलियाँ
सूख गई अधरों की लाली 
सूख गई आँखों का काजल  
गरजो बादल , बरसो बादल //

सूख गया कुयाँ का  पानी
रूठ गई झरनों की वाणी
रूठ गए हैं सारे बुल-बुल
रूठ गई गोरी का पायल
गरजो बादल , बरसो बादल //


सोमवार, 4 जून 2012

आक्सीजन

मुझे नहीं पता था 
पेड़ लगाने का मतलब
पर जब .....
चिड़ियाँ ने पेड़ पर घोसले बनाये
अंडे फूटे
और जब मैंने सुना
अण्डों से निकली बच्चों की चपर-चपर
तब लगा
पेड़ सिर्फ आक्सीजन ही नहीं देते /

बुधवार, 23 मई 2012

आग उगल रही आकाश

( बाल कविता लिखना भी आसन नहीं  होता, मैंने एक प्रयास किया है ) 

तप  रही है  सारी  धरती  
आग उगल रही आकाश //

 क्या पीयेगें ,   वन के प्राणी 
कहाँ टिकेगें , सारे  नभचर 
सिकुड़ गयी है पेट सभी की 
सूख गयी है अब सारी  घास //

सूख  गए सब ताल- तल्लैया 
और मर गयी मछली   रानी 
दादा-दादी हैं सब लथ -पथ
अब मैं जाऊ किसके  पास //

मंगलवार, 15 मई 2012

पहचान

एक औरत है 
जिसके 
हाथों की अकडन 
घुटनों का दर्द 
और चहरे की झुरिय्याँ 
 बढ़ जाती है , साल-दर-साल 
समतल जमीन पर 
उसके चलने का ढंग 
मानो पहाड़ चढ़ती महिला 
एक लाठी के संग //

पहचाना आपने 
वह मेरी माँ है //

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

कविता के बीज

आओ खोजते है ...
कविता के बीज 

ख़ुशी के अश्क 
या फिर गरीब के आँखों में खून 
आदमी से आदमी  के लड़ने का जूनून 
खोजिये 
यही कही पर मिल जायेंगे 
कविता के बीज//

धर्म बदलने की दुकान पर जाए 
कसम खाकर पलट जाने वालों के आँखों में झांके 
सिंदूर लगे पत्थर में खोजें 
मिल जायेगे 
कविता के बीज //

सास-बहु की खटपट में खोजे
देवर-भाभी के चुम्बन में खोजे 
नेताओ के चाल-चलन में खोजें 
मिल जायेंगे 
कविता के बीज //

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

सकून

तुम्हारी लवों की मुस्कुराहटों ने मुझे शायर बना दिया
ईमानदारी की ज़ख्मों ने मुझे कायर बना दिया //

इरादे नेक हो , इसलिए ताउम्र मशक्कत करता रहा
आपकी जुल्फों के साए ने , मुझे कातिल बाना दिया //

बात रुपयों की चलती है , तो सकून मिलता है
वरना आपकी हंसी में किसका पेट भरता है //

रविवार, 1 अप्रैल 2012

जब बुर्के वाली ने मुझे गोद में बैठाया

मुझे लगता है बचपन की यादें ही , किसी इंसान के लिए असल में उसका जीवंत इतिहास होता है । किसी भी इंसान का बचपन ,चाहे वह आमिर या गरीब परिवार से ताल्लुक रखता हो , पुर्णतः तनाव मुक्त और स्वछन्द होता है । आज जब को उन्मुक्त खेलते ,दोस्तों से हंसी-मजाक करते या फिर मांग को लेकर रोने का नाटक करते देखता हूँ ,तो बचपन फिर से लौटकर जीवंत होने लगता है मानो किसी ठूठ वृक्ष पर फिर नई कोंपलें उगने लगी हो ॥

आज जब 45 साल का युवा हूँ ,अपने बच्चो की या किसी भी बच्चे की बाल -सुलभ चंचलता , तोतली बोली सुनता हूँ , तो स्वं मुझे भी इन क्षणों में से गुजरे होने का बखूबी एहसास होता है ।

मैं इस मामले में खुशनसीब हूँ कि मेरा बचपन गाँव की गलियों में , कीचड़ में रोपे जाने वाले धान के खेतों में ,पीले खिले सरसों से के खेतों के बीच से सरपट दौड़ लगाते हुए और मकई के बालों पर लगे कौओं को टिन के ढोलक बजाकर उड़ाते हुए बीता है । मकई के भूरे बालों को गोंड से अपनी मुछों के पास चिपकाकर बाबूजी और माँ को डराने का खेल मेरे जेहन में इस कदर बैठ गया है कि वह निकले नहीं निकलता । चने की झाड़, मटर की फलियाँ ,बगीचों से अमरुद और आम के टिकोले तोड़ लेना , किसी दुसरे के खेत से नज़र बचाकर मूली उखाड़ लेना इत्यादि वैसी यादें है जिन्हें फिर से जीने की इच्छा होती है ।

मेरे बाबूजी कृषि सेवा में थे ,उनकी पोस्टिंग गया और नालंदा जिला के विभिन्न प्रखंडों में रही । गया जिला के गुरुआ प्रखंड ,जो आजकल नक्सल प्रभावित प्रखंडों में गिना जाता है , में मेरा जन्म हुआ । पहले बच्चो के नाम गाँव के बूढ़े बुजुर्ग तय करते थे । मेरे बड़े भाई का नाम" ललन' रखा गया था ,इसलिए मेरा नाम 'बबन ' रखा गया । मेरे छोटे भाई का नाम 'मदन ' रखा गया ।

जन्म स्थान से सम्बंधित यादें जेहन में नहीं है जब पिता जी की पोस्टिंग शेरघाटी में थी वही से मैंने होश संभाला और लगभग सभी याद हैं । पिट्टो और कबड्डी मेरा प्रिय खेल था या फिर पुराने मकानों पर ईट के टुकड़े से लकीर खीचना । मैं पहला क्लास में था , जब शेरघाटी में अंग्रेजी माध्यम का एक स्कुल 'संत कोलमबस " खुला था । मेरे पिता जी ने मेरी माँ की जिद पर उस अंग्रेजी स्कुल में मेरा दाखिला करवा दिया । इसके पहले मै एक सरकारी स्कुल में पढता था , जहाँ बैठने के घर से जुट की बोरी ले जाता था मनोहर पोथी और स्लेट पेंसिल भी हाथ में होता था ।

मेरी माँ अंग्रेजी नहीं जानती थी , मगर उसने मुझे हिंदी में स्कुल जाने से पहले लिखना पढना सीखा दिया था .अंग्रेजी स्कुल में बैठने को बेंच था और पहनने को युनिफोर्म साथ में जूता । मेरे घर से मेरा स्कुल ३ किलो मीटर दूर था । समयस्या मुझे स्कुल तक लाने और ले जाने की थी । पिता जी के अधीन ३ हलवाहा ( बैलों के द्वारा जुताई करने वाले ) थे , उनमे से एक सायकिल चलाना जानता था , उसे ही मुझे स्कुल से लाने और ले जाने की जिम्मेवारी सौपी गई ।

एक ही रास्ते से बराबर आने-जाने के कारण मै स्कुल जाने वाले रास्ते के हर चौक चौराहे और गलियों से परिचित हो चूका था । मन में यह भाव उठता था कि अगर मुझे कोई न भी लेने आये तो मैं अकेले भी घर आ सकता हूँ ।

एक दिन जब क्लास से छुट्टी हुई , मुझे लेने वाला आदमी नहीं आया था , मैं पैदल ही चलने की ठानी । कुछ दूर चलने के बाद मेरी बगल से एक रिक्सा ( तीन पहिया ) गुजरा । मैंने बल-सुलभ चंचलता के कारण , पीछे से रिक्से पर लटक गया । मैंने देखा , रिक्से पर एक बुर्के वाली औरत और दाढ़ी वाला पुरुष बैठा था । उन्होंने रिक्से को रुकवाया । एक क्षण को मुझे लगा , शायद वे मुझे पीटेंगे । डर के कारण ,मेरी हालत पंचर हो गयी थी । मगर उन्होंने मुझसे कहा - बेटा ! आओ कहाँ जाना है , मेरे साथ बैठो । और फिर मैं उस बुर्के वाली औरत की गोद में बैठ गया ।
काश मैं अब उस बुर्के वाली औरत को देख पाता... कितनी बदल गई है दुनिया ? शायद ही अब कोई दुसरे के बच्चे को गोद में बिठाकर उसे घर तक छोड़े ।

मंगलवार, 27 मार्च 2012

संतोषम परम सुखम


देख तुम्हारी भरी जवानी , मैं क्यों बहकूँ
हो फूल भवरे की तुम , फिर मैं क्यों चहकूं //

खुश हूँ अपने घर में ,माता-पिता के संग
देख तुम्हारी महल अटारी , मैं क्यों तरसूं //

मेहनत की सूखी रोटी , लगती है मीठी
देख तुम्हारा हलवा-पुआ , मैं क्यों तडपूं //

हर आंसू में तुम बसते हो , ऐसा मैंने पाया
मंदिर में तुम्हें खोजने , फिर मैं क्यों भटकूँ //

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

हर दिल टुटा नज़र आता है //



हर भूखे को चाँद भी रोटी नज़र आता है
जिधर देखो , हर दिल टुटा नज़र आता है //

कुछ इस कदर हिल गया है,विश्वास का पेड़
अब तो हर दोस्त भी ,दुश्मन नज़र आता है //

बहुत बढ़ गया है प्रदूषण , हमारे पर्याबरण में
अब तो हर पेड़ भी , सुखा नज़र आता है //

चीनी खाते है हमसब, मगर मुह में मिठास नहीं है
हर आवाज़ में अब क्यों , कडवाहट नज़र आता है //

रविवार, 18 मार्च 2012

कुछ तो बोलो गोरी


उर का संगम पाकर
मस्त हुई तेरी ओढ़नियाँ
मेरा आलिंगन पाकर
बज उती तेरी पैजनियाँ //

तेरी आँखों में लगकर
मस्त हुआ ये काजल
उड़ता गेसू देख तुम्हारा
मस्त हुआ ये बादल //

तेरे माथे में सजकर
मस्त हुआ ये कुमकुम
कुछ तो बोलो गोरी
क्यों बैठी हो गुम-शुम //

तेरे कानों को चूमकर
मस्त हुई ये बाली
अपना लो प्रीतम मुझको
कर दुगां तेरी रखवाली //

गुरुवार, 15 मार्च 2012

फेस बुक


नहीं चिल्लाता बच्चों पर अब , रहता हूँ मैं अब चुप
भूख नहीं लगती है मुझको ,ना ही पीता मैं अब सूप
नहीं संभालता मैं किचेन , ना ही बनता मैं अब कुक
जब से लाया हूँ ,बीबी की सौतन नई नवेली फेस-बुक //



सारा ध्यान स्टेटस पर अब , कितने कमेंट्स हैं आये
कौन फ्रेंड्स हैं स्नेह बनाए , कौन फ्रेंड्स अलसाए
महिला मित्रों की चैत्तिंग से , बदल जाता मेरा रंग-रूप
सुबह -शाम मत मिलना मुझसे ,कहता मित्रों से दो टूक//

मंगलवार, 13 मार्च 2012

जी करता है ....


जी करता है ....
तेरी यादों से खेलूं
जी करता है ....
तेरे सपनों में जी लूं //

जी करता है ...
तेरा यौवन छू लूं
जी करता है ....
तेरे नयनों को पी लूं //

जी करता है ...
तेरी साँसों में बसकर
फूलों को महका दूँ
जी करता है ...
तेरे उर में घुसकर
अंग-अंग दहका दूँ //

जी करता है ...
तुमको फिर से पा लूं
जी करता है ...
तुमसे मिलकर जी भर रो लूं //

शुक्रवार, 9 मार्च 2012

रावण सिंह

मेरे पड़ोस में रहते हैं -रावण सिंह
वे रामायण के रावण जैसे नहीं दिखते//

वे इन्कम-टैक्स भरते है
वे होल्डिंग टैक्स भरते हैं
वे वेल्थ -टैक्स भरते है
उनकी मूछें नहीं है
न ही खुटीदार दाढ़ी
नेता /पुलिस से उनकी छनती है
लोग दबी ज़वान से कहते है
उनके यहाँ हर किस्म की वाईन मिलती है //

वे मिलनसार हैं
फिर भी , पता नहीं क्यों
आम लोग उनसे डरते हैं//

अरे! एक बात तो भूल ही गया
वे सीता-हरण नहीं करते
बल्कि ,रोज नई -नई सीता
खुद ही चलकर
आती है उनके घर //

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

मैथेमेटिक्स


मैं इंजीनियर हूँ मेरे दोस्त!
मेरा मैथेमेटिक्स भी ठीक है
मगर मैंने जिंदगी का गणित नहीं सीखा //


कास्ट फैक्टर
मैनेज सिस्टम
नोटों के चुम्बकीय गुण
नहीं पढ़ा मैंने ...
मैंने नहीं सीखा
झूट-फेरब और
चापलूसी का समीकरण हल करना
बस यही मार खा गया दोस्त//

बचपन में सुनी थी एक कहानी
एक नदी दस फिट गहरी थी
गणितज्ञ ने गहराई का औसत निकला
औसत चार फिट aaya ...
नदी पार करने लगा
वह नदी में डूब गया //
तो दोस्तों !
जिंदगी जीने का गणित सीखो //

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

पर्दाफाश


कुहू-कुहू सुन झूमे मन
जब बसंत है आता
लोभ का चादर जब मैं ओढू
मेरा विवेक मर जाता //

आंच आता जब मेरे स्वार्थ पर
मैं तिल का ताड़ बनाता
बात -बात पर मित्रों का मैं
निन्दा -रस पान कराता //

रुपयों -पैसों की खातिर मैं
छल की तलवार चलाता
हार प्रतीत होने पर
तुरंत ही शीश नवाता //

माँ -पिता भी गुरु तुल्य है
इस बात को मैंने झुठलाया
आत्मा-शांति करने उनका
'गया ' में पिंड -दान करवाता //

जब भी आगंतुक आता
मीठी बातों की छौक लगाता
इज्जत ढकने को खातिर
मैं झूठ का लेप लगाता //

जब देखू कोई नार सुंदरी
मैं मंद-मंद मुस्काता
शादी का प्रलोभन दे मैं
नित नए-नए रास रचाता //

मेरी बातों में न दम है
न किये गए पापों का गम है
अपने कुकृत्यों को धोने
मैं गंगा रोज नहाता //

मुह में राम ,हाथ में छुरी
यह निति अब मैं अपनाता
नेता और पुलिस देखकर
अब नहीं कभी घबराता //

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

बसंत के बहाने


खिलखिलाने ,गुदगुदाने का मौसम बसंत है
जीवन में खुशियाँ लाने का, मौका अनंत है //


न्याय की कुर्सी पर बैठकर , ईमान मत बदलो
झूठ,फरेब ,धोखा करने का मौका अनंत है //

राम अमर हो गए, जिन्होनें चख लिया जूठा बेर
दोस्तों ,गरीबों को गले लगाने का मौका अनंत है //

खूब फूलते-फलते है दोस्तों , पापी इस देश में
क्योकि पापों को धोने को ,यहाँ नदियाँ अनंत हैं //

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

रावण आपके बगल में है /


पहले सिर्फ लंका में एक ही रावण था । आइये देखते है .... आज के रावण के विभिन्न रूप
१ दोस्त ही रावण निकला ,अपने दोस्त की ही कुछ रुपयों के लिए हत्या कर दी
२ युवती का प्रेमी ही रावण निकला , यौन शोषण कर प्रताड़ित किया , फिर हत्या कर दी
३ कुछ रावण A T M के पास घूमते है , मौका देखते ही आपके रूपये साफ़ कर लेते है
४ कुछ रावण कानून में छेद खोजते है , पकडे जाने पर उसी छेद से निकल भागते हैं
५ कुछ रावण गलत काजजात पर बैंक से लोन लेते है , लेकर रफ्फु चक्कर हो जाते है
६ कुछ रावण दुसरे की जगह बैठकर परीक्षा देते है
७ कुछ रावण परीक्षा का पेपर लिक करवाते है
८ कुछ रावण नकली दवा बनाते है
९ कुछ रावण नकली नोट छाप कर अपने देश की अर्थव्यवस्था से खेलते है ।
१० कुछ रावण , रुपयों के लिए ,देश की गुप्त सूचनाएं लिक करते है /
ओह , न जाने कितने रावण मेरे अगल-बगल है ... अब मैं कुछ को पहचानने लगा हूँ /
आप भी पहचानना शुरू करे /

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

आओ कचड़े को हटायें


हम जैसे-जैसे विकसित हो रहे है प्रति व्यक्ति कचड़े की मात्र बढती जा रही है । एक अनुमान के मुताबिक़ अगर प्रति व्यक्ति एक दिन ५०० ग्राम कचड़ा पैदा करता है ... तो भारत में प्रति दिन लगभग 600,000 टन कचड़ा पैदा पैदा हो रहा है । जहाँ तक कचड़ा प्रबंधन की बात है , हम उसमें सफल नहीं हो पा रहे हैं । biodegradableकचड़े से बायो गैस बनाने की योजना टायं -टायं फिस्स हो रही है । फलतः शहरों में कचडों का पहाड़ बनता जा रहा है ।
अब शहरों में ही नहीं , गाँव में भी कचड़े का जमाव कोई नहीं बात नहीं .प्लास्टिक के थैले ने तो नाक में दम कर रखा है । और प्लास्टिक के थैले में सब्जी के छिलके को बाँध कर हम नाले में फेक दे रहे है । नाले तुरंत ही भर जा रहे है और नाले का पानी सड़क पर बसने लगता है । पर्यावरण जनित कचड़े से जहाँ एक हवा प्रदूषित हो रही है , वही दूसरी ओर भूमि की उर्वरा शती में हर्र्ष भी हो रहा है और हम अपने भोजन के साथ जहरीले रसायनों को निगल रहे है ।
नदियों को गन्दा करने का मतलब है ... पुरे कृषि को प्रदूषित करना क्योकि अगर हम नदियों में कचड़ा डालते है ... तो न केवल मछलियाँ ही प्रभावित नहीं होती , बल्कि सिंचाई के माध्यम में हामारी फसलों में जहरीले
रसायन प्रवेश कर जाते हैं ।
अब सवाल है हम क्या करे...
एक आम आदमी कचड़े को कम करने में मद्दद कर सकता है ...
१ सब्जियों के छिलके को प्लास्टिक के थैले में बाँध कर नाले में न डालें
२ बिस्कुट या अन्य खाद्य सामग्रियों के प्लास्टिक कवर को साप्ताहिक रूप से जमा से जला डाले
३ जहाँ छोटे फैक्ट्री है , वे कंक्रीट का एक चैंबर बना ले और कचड़ा उसी में डाले साथ ही इसvermi कम्पोस्ट में बदल डालें
४ vermi कम्पोस्ट बनाने के लिए आजकल स्प्रे बैक्टीरिया मिलता है /

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

बसंत कब घबराता है /


हाथों में फूलों को लेकर
जब तुम मुस्काती हो
तब सावन मुस्काता है //

नयनों में काजल भरकर
जब पलकें गिराती हो
तब भादों शरमता है //

गोरी बाहें जब हवा में झूलें
और दुपट्टा मुझ को छू ले
तब बसंत घबराता है //

रविवार, 29 जनवरी 2012

जवान किसे कहते हैं ?


एक अंतर मुझे समझ में नहीं आ रहा था
वह था ...
बच्चे और जवान में क्या फर्क है ?
जवान ... मतलब
चौड़ी छाती /मुछे /शादी शुदा
बच्चा ...
बिना मुछ का /स्कुल जाने वाला /
मेरी माने तो ...
बच्चा ..मतलब
आगे क्या होगा ... नहीं सोचने वाला
मेरे यह करने से
उसे तकलीफ होगी
मेरे वह करने से
यह होगा .....
जब यह सोच आदमी में आ जाए ...
वह जवान हो जाता है /

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

आओ न, बातें करते हैं


नरम बातें
तो कभी गर्म बातें
हसीन बातें
तो कभी गमगीन बातें
कभी बे-सिर पैर की बातें कर
झगडा मोल लेते हैं लोग //

चुप क्यों बैठे हो यार !
अब झगडा किसी से भी हुआ हो ....
पत्नी से /प्रेमिका से /बॉस से ही
आओ बातें करते हैं
क्योकि .....
बातों से ही बात बनती हैं

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

अपनापन


तुमको मचलते हुए क्या देखा
मैंने एक इन्द्रधनुषी तितली देख ली //

तुमको हस्ते हुए क्या सुना
मैंने बर्फ के ढके पत्तों से
गुजरते हवा का संगीत सुन लिया //

तुम्हारे अधरों को क्या चूमा
मधु से भरे दो छत्ते मिल गए //

तुम्हारे कपोलों पर
पसीने की कुछ बूंदें थी
मुझे लगा .....
कमल के पत्तों पर
ओस की कुछ बूंदें फिसलने से रह गई //

मेरे बारे में