देख तुम्हारी भरी जवानी , मैं क्यों बहकूँ
हो फूल भवरे की तुम , फिर मैं क्यों चहकूं //
खुश हूँ अपने घर में ,माता-पिता के संग
देख तुम्हारी महल अटारी , मैं क्यों तरसूं //
मेहनत की सूखी रोटी , लगती है मीठी
देख तुम्हारा हलवा-पुआ , मैं क्यों तडपूं //
हर आंसू में तुम बसते हो , ऐसा मैंने पाया
मंदिर में तुम्हें खोजने , फिर मैं क्यों भटकूँ //
achchhi likhi hai gazal
जवाब देंहटाएंअंदाजे तड़फ.....वाह , सुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंदेख तुम्हारी भरी जवानी , मैं क्यों बहकूँ....सही कहा
जवाब देंहटाएंहर आंसू में तुम बसते हो , ऐसा मैंने पाया
जवाब देंहटाएंमंदिर में तुम्हें खोजने , फिर मैं क्यों भटकूँ //
....बहुत सुंदर प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति...
वाह !!!!! बहुत सुंदर रचना,क्या बात है,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
अरे वाह.....!!
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर लिखा है..!!!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति,... plz give me your pen sir jee...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा.
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