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सोमवार, 28 जून 2010

जिन्दगी रस -बेरी तो नहीं

पढ़िए --वीर रस
लिखिए -हास्य रस
खेलिए --काम रस
बाटिये --प्रेम रस
पान कीजिये --निंदा रस
देखिये --श्रींगार रस
सुनाइऐ --व्यंग रस
बच्चो को दीजिये --ममता रस
--वात्सल्य रस
बड़ों से लीजिये --स्नेह रस
छोटों को दीजिये --आशीर्वाद रस
नहाइऐ -- ईर्ष्या रस में
डूबिये --मित्रता के रस में ...
अरे भाई !
कही ये जिन्दगी
खट्टी -मिट्ठी रस -बेरी तो नहीं ॥

रविवार, 27 जून 2010

मुझे क्या पड़ी है


कटने दो
जंगल
उजड़ने दो
चमन
जब सरकार की चिंता
सड़ी है
तो , मुझे क्या पड़ी है ॥

कैद कर लिया है , हमने
कोयल की कू-कू
पपीहे की पिहू -पिहू
और
कबूतर की गुटर -गू
अपने टेप -रेकॉर्डर में ॥

क्योकि ...
मैं अच्छी तरह जानता हू
मेरे बच्चे
न देख सकेगें , इन्हें ॥

सुनेगें सिर्फ कहानी
और मैं ....
अपने बच्चों को
सिर्फ कहानी नहीं
आवाज भी सुनना चाहता हू ॥

गीत -३(कामदेव ललच रहा है )


क्या गीत लिखू
मेरे मीत
आँचल सरक रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥


आकुल मन
व्याकुल है
भींगे उर
भींगे बदन
मौसम बदल रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥

मौन निमंत्रण तेरे आंखों की
गर्माहट तेरे सांसों की
अंग -अंग सिहर रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥


आओ , चलें
खेलें रति -क्रिया
संगम हो जाए तन -तन का
सावन बरस रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें .भाग -5

जगह बदलने से , हर चीज का नाम बदल जाता है
उसी तरह , पल - पल अब इंसान बदल जाता है ॥

खेल -खेल में करते है चोरी ,ऊपर से सीनाजोरी
अगर दिल चाहे तो .मन -बेईमान बदल सकता है ॥

मैं आपको क्यों रोकू ,कीजिये अपना गोरख -धंधा
झूठ ,सच में तो नहीं , सच झूठ में बदल सकता है ॥

हवाओं को रोक देंगें ,तुफानो से छीन लेगे अपना हक
लकीरें खीचने वाला भी ,चाहे तो महल बना सकता है ॥

आइऐ एक कदम हम बढ़ाये , एक कदम आप
अगर हम एक रहें ,तो इंसान क्या देश बदल सकता है ॥

हल निकालने के बेढब तरीके

अपने देश
भारत में .......
जूते पहनने वाले
नंगे पैरों का दर्द सुनाते है ॥

अंगूठा छाप मंत्री
शिक्छा का अलख जागते है ॥

जिनके नौ - दस बच्चे है
परिवार नियोजन का पाठ पढ़ते है ॥

जिन्होनें जंगल साफ़ कर दिए
वही वृक्छारोपन कार्य चलाते है ॥

दिखाते है जो कानून को ठेंगा
वही नया कानून बनाते है ॥

जो पैसे लेते ,चोर से खुद
फिर कैसे चोर पकड़ ले आते है ॥

ऐ ० सी० में रहने वाले
गर्मी की कथा सुनाते है ॥

मेरी समाज में तो नहीं आया
जग की उलटी रित
शायद ,समझ में आ जाएगा
जब कर लुगा उनसे प्रीत ॥

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें भाग -4

(एक मजदूर की सोच )

ना मैं कविता जानता हु ,ना ही ग़ज़ल जानता हु

जिस झोपड़ी में रहता हु उसे महल मानता हु ॥

ना मैं राम जानता हू ,ना मैं रहीम जानता हू

माँ -बाप ने जो फरमाया ,फरमान मानता हू ॥

जिस इंसान ने इंसान को सताया , उसे हैवान मानता हू

जो इंसान की कद्र करे , मैं उसे कद्रदान मानता हू ॥

आशाओ के खंडहर में ,कब तक रहोगे दिल थामके

चल कुदाल उठा ,मैं मेहनत को अपना ईमान मानता हू ॥





शनिवार, 26 जून 2010

गीत -2

सुनाएये कोई शोक -गीत
आज मन उदास है ॥
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥

फूलों का रंग भी फीका
भौरे भी दहशतज़र्द है
सब जगह उजड़ा हुआ चमन है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है

चलो ,खोलता हू वे सभी परतें
जो पूरी न सकी तुम्हारी हसरतें
किससे कहू , किससे वयां करूं
आज खोता हुआ हर बचपन है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है

कुछ चंदे दे दो भाई
महंगाई की मार से
मरने वालों के लिए
खरीदना आज कफ़न है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है

गीत --1

गीत लिखने का दुः साहस किया हू ,आप ही लोग बताएं कैसा लगा । पति -मिलन के पहले की स्त्रियोचित कल्पना , मगर उनके लिए नहीं जिनका लव -आफेयर चल रहा है
फेस -बुक पर सभी कुवारी लडकियों को समर्पित


आज सजने की बेला है , सज लू सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहुं
गा रही है , ये लज्जा कहां से कहुं
गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन

पलकों की छावं में हू , कबसे बिठाये तुम्हें
जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे तुम्हें
नाच रहा है मन मेरा , जैसे हिरन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन

भूल गयी मैं अपना अतीत ,हो चली मैं अब तुम्हारे करीब
पुलकित है मेरा रोम -रोम ,आज जागा है मेरा नसीब
कड़कती है बिजली , जैसे हो सूर्य -किरण
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन

गोद भर देना मेरी , कहलाउगी माँ
नाचूगी, गाउगी , बाँधुगी समां
इतराएगा मन मेरा ,जैसे इठलाती पवन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन
----------------बबन पाण्डेय

आईये राजघाट चलें

मित्रों , महंगाई पर लिखने को बार -बार फ़ोन काल्स आ रहे है ..पुनः लिखा हू

आईये ...राजघाट चलें
चल कर बापू से कुछ कहें ॥

प्रिय बापू ...
कहना तो नहीं चाहता
आपकी आत्मा दुखी होगी
मगर ,मेरी आत्मा सुखी होगी ॥

भारत में
महंगाई बहुत बढ़ गयी है
सबकी संवेदना सड़ गयी है ...

एक अनुरोध है ...
राजघाट के बगल में
थोड़ी ज़मीन उपलब्ध करबा दो
ताकि ...
भूख से मरे मजदूरों को
आत्म -हत्या करने वाले किसानों को
वही दफनाया /जलाया जा सके ॥

इसलिए कि...
आने वाले विदेशी पर्यटक
आपके साथ -साथ
भूख से मरे लोगों पर भी
श्रद्धा सुमन अर्पित कर सके ॥
---------------baban pandey

शुक्रवार, 25 जून 2010

महगाई मारक यन्त्र

मेरे पास
एक महगाई यन्त्र है
यन्त्र क्या , मन्त्र है ॥

बहू-बेटियों से कहें
भारतीय संस्कृति को धयान में रखें
सोमबार /मंगलवार /रविबार को
उपवास करे
भगवन भी खुश
पति भी खुश
और होनेवाले समधी भी खुश
स्लिम बॉडी की बहू मिलेगी ॥

फिर ,
महंगाई, हमलोगों की क्या
हमलोग महगांई की कमर तोड़ देंगे ॥

कुछ दिनों तक ऐसा करेगें
हमलोग
सोमालिया देश के वासी जैसे दिखेगें
संयुक्त राष्ट्र का ध्यान टूटेगा
मुफ्त का गेहू -चावल आने लगेगा ॥

पुलिस मित्रों
आपके लिए सुनहला मौका
महगाई के मद्देनज़र
अपनी तोंद पचाकाइऐ
चोर , आप पर नहीं
आप चोर पर भारी पड़ेगें ॥

महल्ले की सैर किया
सब खुश ...
शिचक फ़ीस बढ़ा रहे है
होटल वाले समोसा का
बस वाले अपने भाडा का
दरजी ने सिलाई फ़ीस बढ़ा दी
नाई की फ़ीस भी बढ़ गयी ॥

आप क्यों नाराज है भाई ...
नाराज है
तो सिर्फ ब्रह्मण -देवता
उनकी फ़ीस कोई नहीं बढ़ाता ॥

इति श्री महगाई मन्त्र समाप्त ॥

अब गोरैया कहां जायेगी

(महानगरों की आवास समस्या पर ...)
पहले
घर के आँगन में भी
बना लेती थी
गोरैया अपना घोसला ॥

भूलकर/भटककर
पहुँच गयी एक गोरैया
महानगर में ॥

पेड़ नहीं थे वहां
कहां बनाती अपना घोसला ॥

बिजली का खम्भा ही
एकमात्र विकल्प था
तिनका -तिनका जोड़ कर
बनाया अपना घोसला ॥

फिर एक दिन
बिजली कर्मियों ने
नष्ट कर दिया उसका घोसला ....
अंडे फूट गए ॥
अब गोरैया कहां जायेगी ??
------------बबन पाण्डेय

गुरुवार, 24 जून 2010

मैं खरगोश नहीं बनना चाहता

बनते -बिगड़ते
संबंधों की आपा-धापी में
मैं खो जाता हू ॥

हड़बड़ी के चक्कर में
प्रेम खोजने के बदले
नफरत खोज लेता हू ॥

रिंग पहनाने को
शादी में बदल पाता
उससे पहले तलाक खोज लेता हू ॥

इसलिए .....
मैं अब
जिंदगी के रेस में
खरगोश नहीं ,
कछुआ बन कर ही
मंजिल तक जाना चाहता हू ॥

मैं तुम्हे पढना चाहता हु ...


तुम्हारी बातें
एक -एक शब्द जैसे ॥

श्वासों का आना -जाना
किताब के पन्ने
पलटने जैसा ॥

तुम्हारी मुस्कराहट
कविता पढने जैसी ॥

तुम्हारी हँसी
ग़ज़ल की पंग्तिया ॥

तुम्हारी उम्र का
हर गुजरा वक़्त
एक अध्याय समाप्त होने जैसा ॥

तुम्हें समझना
एक समझ न आने वाली
रहस्यमई कहानी जैसा ॥

सचमुच, तुम्हें पढना
एक किताब पढने जैसा ॥

हे ! प्रिय !!!
मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन -पर्यंत
क्योकि ....
तुम्हें पढ़ना अच्चा लगता है ॥

हसियेगा क्यों नहीं ??

(१)
शिछक ने बच्चे को नक़ल में मारा, इतना
सुनार ने चोट किया सोने पर, जितना ॥
(बच्चे को कोचिंग में पढ़ाते थे )
(२)
वो खुश हुए , मुस्कुराये , इतना
पुलिस पैसे लेने पर डाटती है , जितना ॥
(एफ ० आई ० आर से नाम हट गया था )
(३)
वो ससुराल जाने वक़्त रोई , इतना
चकोर को पानी चाहिए , जितना ॥
(जुली -मटुकनाथ जैसा लव अफेयर था )
(४)
पुलिस देखकर चोर भागे , इतना
रेस के घोड़े , जितना ॥
(नेता के पीछे दौड़ने की आदत थी )
------------बबन पाण्डेय

एक मृत लड़की की चिट्टी

मेरे पापा ने
माँ का गर्भ जांच कराया
सांप सूंघ गया उन्हें
शुक्र हो डाक्टर का
उन्होंने कहा ...
"एक ही बार माँ बन सकती है
आपकी पत्नी "
भूर्ण -हत्या से बच गयी मैं ॥

मेरी माँ ने
सिल्क साडी पहननी छोड़ दी
शौक -मौज फुर्र्र
मेरे विवाह की चिंता में
जन्म से ही ॥

पढाई के दौरान
प्यार हो गया एक लड़के से
शादी का लालच दिया उसने
माँ -पिता को खेत न बेचना पड़े
दहेज़ के लिए
यह सोच , भाग गयी उसके साथ ॥

वापस लौटी
मैं लुट चुकी थी
खूब जग -हँसाई हुई
पंखे में फन्दा डाल
मैं झूल गयी ....
मगर , माँ ने बचा लिया ॥

मेरी विवाह हुई
अपरिचित की दुनियां पहुंची
मेरा पति
रात को विछावन पर
मिट्ठी -मिट्ठी बातें करता
सुबह बदल जाता ॥
मांग क्या भरी
रूपये की रोज मांग होती
माँ -बाप को बुरा -भला कहते ॥

बेटी परायी होती है
बचपन से सुनती थी
कही भाग भी नहीं सकती ....

माँ ...
ससुरालवालों ने
मुझे ज़हर दे दिया एक दिन
मैं मर गयी
क्योकि इस बार तुम नहीं थी
मेरे पास , मेरे बचाने को ॥

माँ ...
कल अख़बार में
देख लेना मेरा नाम ॥

उनलोगों ने
पुलिस से मिल कर
हत्या को आत्म- हत्या में
बदल दिया होगा ...

माँ ....
क्या तुममे
पुलिस और नयायालय से
लड़ने की कूबत है ??
लड़ो माँ ,लड़ो
ताकि और कोई माँ
बेटी के वियोग में न तडपे ॥

बुधवार, 23 जून 2010

नदी की चाहत और हम

मित्रो, यह कोई कविता नहीं , बल्कि कविता के रूप में नदियों से होने वाले खतरे के प्रति मित्रो को आगाह करती है ..शायद आपको अच्छी लगे ...चुकी मैं इस छेत्र से जुड़ा हू ..तो लिखना मेरा फ़र्ज़ है ..

सर्पीली रूप में बहना
मेरी नियति है ॥
बाँधने की कोशिस में
उग्र हो जाती हू ॥
किनारे का बाँध तोड़
निकल जाना चाहती हू ...
फिर पूछो मत ...
कई सभ्यता /संस्कृतियों के
विनाश का कारण बन जाउगी ॥

बहना चाहती हू
जैसे , उन्मुक्त उड़ना चाहती है
पिंजरे का पंछी ॥

मेरा बहाव मार्ग
संकुचित कर रहा है मनुष्य ॥
पुलों और बांधो को
वेतरतीव बना कर ......
खामियाजा भुगत रहे है ...
पर मानते नहीं ॥
मेरा प्रबल वेग
तोड़ सकता है
टिहरी बाँध और सरदार सरोवर बाँध ॥

भूकंप ला सकती हू मैं ..
बाँध के पीछे ज़मा
अथाह जल -राशि के भार से

मत रोको
स्वतंत्र बहने दो मुझे
मुझे अपनी माँ से मिलना है ॥
----------------baban pandey

मैं सब कुछ जानता हू

मुझे हसाना तो नहीं आता
मगर, रुलाना आता है ..दोस्त !

मुझे स्तुति -गान नहीं आता
मगर ,निंदा -गान आता है ...दोस्त !

मुझे तैरना नहीं आता
मगर , डुबाना आता है ....दोस्त !

मुझे धोती पहनाना नहीं आता
मगर , नंगा करना आता है ...दोस्त !

मैं गाली नहीं सुन सकता
मगर , गाली देना आता है ...दोस्त !

मुझे लिखना नहीं आता
मगर ,गलतियां निकाल लेता हू ...दोस्त !

सच में ,
मैं जानता कुछ नहीं ...मेरे दोस्त
फिर भी , सब कुछ जानता हू ॥

सोमवार, 21 जून 2010

अथ श्री नेताय नमः

मैं नेता हू
कभी हाथ में लालटेन लिए
कभी साईकिल की सवारी करते
तो कभी ......
कमल -फूल का झंडा
लहराते मैं मिल जाउगा ॥

नेता बनाने के लिए
कड़ी पढाई से गुजरना होता है ॥
अनिवार्य विषय है ...
" जनता के वोट कैसे बटोरे"
"मंत्री पद हथियाने के तौर -तरीके "
और
"विपक्छी पार्टी को पटकनी -कब और कैसे "
अतिरिक्त विषय है ....
गठबंधन - कब ,कैसे और क्यों

मैं नत मस्तक हू
आंबेडकर साहब का
एक तो कोई उम्र सीमा तय नहीं की
दूसरा अनिवार्य योग्यता तय नहीं की ॥

जैसे विद्यार्थियों के ग्रेड होते है ....
हम नेताओ के भी ग्रेड है
ए ग्रेड -दिल्ली तक पहुँच वाले
बी ग्रेड -राज्य की राजधानी में घुमने वाले
सी ग्रेड -जिला मुख्यालय में टहलनेवाले
डी ग्रेड -प्रखंड मुखाय्लय तक की हैसियत वाले ॥

प्रोमोशंन के चांस है
आपसी लेग पुलिंग के ज़रिये ॥

बॉलीवुड में देखिये
सभी स्टार के लड़के
हीरो में चल रहे है ॥

डोक्टर अपने लड़के को
डोक्टर बनाना चाहता है
इनजीनियर भी ऐसा ही चाहते है

मुझे तकलीफ होती है
मीडीयावाले वंशवाद का नारा देते है
जब अपने लड़के को टिकट देता हू

एक राज की बात बताता हू
अपने तक सीमित रखियेगा
मैं ५ साल में
उतना कमा लेना चाहता हू
जितना ६० साल में रिटायर होने तक
एक नौकरशाह कमा लेता है ॥

मैं तो एक मोहर हू
गलती हो जाए ...
सजा नहीं होती
नौकरशाहों के कंधे पर
बन्दुक रखकर निशाना साधता हू ॥
हमलोग चोर -चोर मौसेरे भाई है ॥

मेरा प्रिय काम
शिलान्यास करना
उद्घाटन करना ....
पुल का /रोड का /मकान का
और , अपने कोटे के पैसे का
बंदरबाट करना ॥

सभा -गोष्ठी में
ज्यादा शिरकत नहीं करता
फीता काटता हू
लौट जाता हू
पढ़े -लिखे लोग
मुझे घेरना चाहते है
प्रशन पूछकर...
उत्तर न आने पर
"नो कमेन्ट "...कह
मैं भी निकल जाता हू ॥

अपने सहयोगी की बातों
और एंटी पार्टी की हर बात में
मुझे राजनीती नज़र आती है ॥

आप कविता / कहानी /हास्य
कुछ भी लिखें ...
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
वैसे भी मैं ...
कुत्ते की पूंछ हू ॥

आओ , एक स्वस्थ समाज बनाएं

सभी मर्दों को
धोती और कुरता पहना दो ...
सभी महिलायों को
घूँघट तनवा दो ....
और बच्चों के लिए
गुरुकुल खुलवा दो यार !!
समाज विघटित होने से बच जाएगा ॥

अपनी जाति में ही
विवाह का तुगलकी फरमान जारी करवा दो ...
टी ० वी ० उठाकर
कचड़े में फेकवा दो ....
इन्टरनेट के तार
कटवा दो ......
समाज विघटित होने से बच जाएगा ॥

गंगा स्नान
अनिवार्य करबा दो ...
राम चरित मानस पाठ करना
कानूनन आवश्यक करवा दो .....
सभी फैक्ट्री बंद करवा दो
जाति गत पेशे को पुनः लागू करो ...
समाज विघटित होने से बच जाएगा ॥

मगर ...मेरे दोस्त !!
नेताओ को
उनकी बहुरंगी चाल चलने दो ...
"कर्म नहीं, धर्म महान है"
का नारा गूंजने दो
अमीरी -गरीबी की खाई
को बढ़ने दो
कोई पांच क्या
पंद्रह हज़ार हत्याएं करे
उसे खुले घुमने दो ...यार
ऐसा कर
हम एक स्वस्थ समाज बना लेगें ॥

भारतीय कुत्ते

भारत
कुत्तों के भौकने की
इधर -उधर सूघने की
एक अच्छी जगह ॥

गाहे -बगाहे
समय -कुसमय
चोर देखकर भौकना
और कभी -कभी
बिना चोर देखे
तेजी से भौकना ॥

गज़ब चरित्र है इनका ...
साधारण जनता
इनकी मानसिकता नहीं समझ सकते ॥

कुत्तों की सर्वोच्च संस्था
कहती है .....
भौकने की यह प्रवृति
परिपक्वता को दर्शाता है ॥

रविवार, 20 जून 2010

बलात्कार मेरा धर्म है

बलात्कार ....
बड़ा ही गन्दा शब्द है
हम गला फाड़ कर चिल्लाते है
बलात्कार के खिलाफ ॥

हम नहीं चिल्लाते ...
जब एक मीडियाकर्मी
बलात्कार कर लेता है
समाचारों से ॥

हम नहीं चिल्लाते
जब दकियानूसी सोच वाले
बलात्कार कर लेते है
नई सोचों का ॥

हम नहीं चिल्लाते
जब आरछन के नाम पर
बलात्कार कर लेते है
मेघा शक्ति का ॥

वास्तव में
आज हर बड़ी मछली
छोटी मछली का
बलात्कार कर रही है ॥

क्या आज .....
बलात्कार हमलोगों का धर्म हो गया है ?

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें ( भाग -३)

























तुम्हें दिखाउगा आइना, क्योकि वह केवल सच बोलता है
उनके लिए कौन लडेगा , जो केवल अपना हक मांगता है ॥

क्या मेरा इधर -उधर झाकना , तुम्हें नागबार लगता है
तो खुद ही बता दो वे बातें , जो हमें ख़राब लगता है ॥

सूरज तो निकलेगा एक दिन ,बादलों की उम्र ही क्या है
सच्चाई वय़ा करेंगे वे लोग , जिन्हें आज डर लगता है ॥

वो परेशां है इसलिए क़ि उनकी झूठ पकड़ ली गई है
इधर देखें ,उधर देंखें वे कही देखें , अब शर्म लगता है ॥

वे नंगे थे शुरू से ही ,नंगापन अबतक छुपाते रहे
जहर क्या दोगे उन्हें बबन , फाँसी भी कम लगता है ॥
--------------------बबन पाण्डेय

शनिवार, 19 जून 2010

सीढिया

हर जगह
छलांग नहीं लगाया जा सकता ॥

मंजिल तक
पहुचने के लिए
सीढियों की ज़रूरत
तो पड़ती ही है ॥

इन सीढियों को
हम जितनी
मेहनत /श्रम /लगन से बनायेगें ....

ये सीढिया ...
उतनी जल्दी ही
हमें अपनी मंजिल तक
पंहुचा देगी ॥
----------बबन पाण्डेय

शुक्रवार, 18 जून 2010

माँ ! तुम यहीं कहीं हो

माँ ....
मैं तुम्हें खोज लूँगा
तुम यहीं कहीं हो
मेरे आस -पास .... ॥

आपकी अस्थियां
प्रवाहित कर दी थी मैंने
गंगा में ॥
भाप बन कर उड़ी
गंगा -जल
और फिर बरस कर
धरती में समा गई

मैं सुबह उठकर
धरती को प्रणाम करता हू
इसे चन्दन समझ
माथे पर तिलक लगाता हू ॥

ऐसा कर
आपका
प्यार और वात्सल्य
रोज पा लेता हू .. माँ ॥
-------------बबन पाण्डेय

मेरी जाति मेरी पूंजी है

"मेरी जाति के लोग
मेरी पूंजी है
हर समय
हर मदद को तत्पर रहेगे " ॥
ऐसा मेरा मानना था ...

पर जब
रिश्तों की बात चली
जाति वाले ही
मेरी सारी जमा पूंजी
हस्तांतरण को आमदा हो गए ॥

ऊपर से यह तुर्रा
"घी दाल में ही गिरेगा "
------बबन पाण्डेय

गुरुवार, 17 जून 2010

गर्म खबरों में अब दम कहां

गर्म हवा की तपिश से
उठे ववंडरों ने
उनकी आँखों में धूल झोंक दी
उनके कपडे भी उड़ा ले गयी
वे नंगा हो गए ॥

मगर .....
गर्म खबरों ने
उनको नंगा नहीं किया
क्योकि .... उन्होनें
नोटों की माला से
अपना शारीर ढक रखा था ॥

अब
गर्म खबरों में
गर्म हवा जैसी ताकत कहां ??

रिश्तों की नई परिभाषा ( आज के सन्दर्भ मे )


(१)
शादी ....
समझौते की गाडी मे
स्नेह की सीट पर बैठकर
अंतिम स्टेशन तक
पहुचने की चाह रखने वाले
दो सहयात्री ॥

(२)
गर्लफ्रेंड -बॉय फ्रेंड का प्यार .....
कसमों - वादों की सिलवट पर
लुका -छिपी की नमक के साथ
पिसी गई
मुस्कराहट की चटनी ॥

(३)
पत्नी का प्यार ........
उबड़ -खाबड़ रास्तो पर
रातों को उगने वाला
गंध -विहीन
कैक्टस के फूल
सूघने जैसा ॥

(४)
शाली (पत्नी की छोटी बहन ) का प्यार.....
रूपये की भट्टी पर
सेंकी गयी रोटी का
फूलों की शहद के साथ
खाने का मजा ॥

(५)
माँ का प्यार .....
अस्थियों के हवन मे
वात्सल्य की घी डालकर
तैयार की गई
काजल ॥

(६)
पिता का प्यार ......
स्नेह की मिटटी
लाड -प्यार की हवा
और
पसीने की जल से सिंचित
मह्क्नेवाला फूल ॥

(७)
भाभी का प्यार ......
ममता की चीनी
और
डाट-फटकार की दूध
से बनी
चाय की चुस्की ॥

(८)
बहन का प्यार .......
लाड़-प्यार
और
दुलार के धागों से बनी
एक न टूटने वाली रस्सी ॥

रविवार, 13 जून 2010

प्रजातंत्र ..हंसिकाए या फिर ..!!!

नौकर शाहों से एक सवाल
लिट्रेसी रेट बढ़ने का
प्रजातंत्र पर क्या असर पड़ रहा है ?
उनका उत्तर ....
जैसे -जैसे लिट्रेसी रेट बढ़ रहा है
वोटिंग रेट घट रहा है
साझा सरकार बन रही है
और .....
प्रजातंत्र परिपक्व हो रहा है
मिडिया वालो से भी पूछ लीजिये ॥

नेता जी से भी एक सवाल ....
आपके जीत का राज
अपने जाति की जनसंख्या बढाओ
सोच समझ कर
परिसीमन छेत्र ऐसा बनाओ
पूरी जाति के लोगो को उसमे घुसाओ ॥

जनता से एक सवाल
आप किसे वोट देंगे
"आज नहीं, वोट के दिन बतायेगे
जो करेगा सेवा , और देगा मेवा
नहीं तो , घर पर ही रह जायेगे ॥
-----------------बबन पाण्डेय

प्रजातंत्र

प्रजातंत्र
एक पका हुआ आम
नेता और अफसर
इसके गूदा
और जनता .....
चुसी हुई गुठली ॥

प्रजातंत्र
घोड़ो का एक रेस
नेता और अफसर --
रेस लगाने वाले
और जनता ....
दौड़ने वाले घोड़े ॥

प्रजातंत्र
रुई का एक तकिया
नेता और अफसर
इसके खोल
और जनता ...
पिचकने वाला रुई ॥

शनिवार, 12 जून 2010

समाचार का बनाना

(खुशवंत सिंह का लेख पढने के बाद कि सिक्खों ने पंजाब के समराला शहर में १९४७ में गिरी मस्जिद बनाई ...पर मेंडिया वालो ने इसे समाचार नहीं बनाया .)

कुत्ता ...
जब आदमी को काटे
तो समाचार नहीं बनता
पर ...आदमी
जब कुत्ता को काटे
तो समाचार बन जाता है ॥

जब ..किसी से प्यार से बोलो
तो समाचार नहीं बनता
पर जब बे -अदब से पेश आओ
तो समाचार बन जाता है ॥

शादी की बातें
समाचार नहीं बनती
पर तलाक की हवा भी
समाचार बन जाती है ॥

जब किसी से उधार मांगो
तो समाचार नहीं बनता
पर जब लौटाने की बात आती है
तो समाचार बन जाता है ॥

मंदिर को बनाओ
तो समाचार नहीं बनता
पर जब मस्जिद को गिराओ
तो समाचार बन जाता है ॥

कोई जन्म ले
तो समाचार नहीं बनता
पर जब कोई खुदकुशी करे
तो समाचार बन जाता है ॥

जब नेता , जनता को धोखा दे
तो समाचार नहीं बनता
पर जब, जनता नेता को धोखा दे
तब समाचार बन जाता है ॥

--------बबन पाण्डेय

समय पीछे से गंजा है

समय को पकड़ना
मानों ......
हाथो की हथेलियों से
बने बर्तन में
पानी को ज़मा करना ॥

समय को पकड़ना
मानो ....
समुद्र के किनारे आयी
लहरों को रोकना ॥

समय को पकड़ना
मानो ......
मुट्टी में रेत को
बाँध कर रखना ॥

समय रुकता नहीं
किसी ने सच कहा है
समय पीछे से गंजा होता है ॥
समय के आगे बाल है
चाहो तो , आगे से पकड़ सकते हो ॥
------------बबन पाण्डेय

शुक्रवार, 11 जून 2010

राजा से रंक तक का सफ़र

सौभाग्यशाली था ...
तैरना जानता था वह
आप देख सकते है ...
उस कृशकाय शरीर को
निष्ठुर सा पड़ा हुआ
भिखारी के भेष जैसा
बाढ़ राहत शिविरों में

उसे याद है ....
गाय के गोबर से
गोइठा ठोकती उसकी माँ
और गौरिये सी फुदकती
उसकी दस की बिटिया
जो शाम को लगाती थी
बापू के थके पैरो में
सरसों तेल की मालिश
इस आश में नहीं ....
कि , व्याह दी जायेगी
किसी खाते -पीते घर में ॥

बीच स्कुल से भाग आती थी
पहुचाने अपने बापू को
माथे पर रख कर
एक कटोरा ......
जिसमे माँ ने बाँधी होती थी
चार मोटी रोटियां
कुछ प्याज़ के टुकड़े
और हरी मिर्च के अंचार
बापू के दोपहर के खाने के लिए ॥

कोसी का प्रबल वेग
सब लील गया
खेतों में अब बालू है ॥

पंजाब के खेतों में
काम करने गया था उसका बेटा
लौटा था वह
अपनी माँ , बहन , दादी ,और बापू को खोजने
ट्रेनों में लदकर
मगर बापू को पहचान लिया उसने
नहीं कर सका अंतिम संस्कार ....
न जाने ...बह कर पहुचने गए वे लोग ॥

"नश्वर है दुनियां
बाढ़ के बाद जाना मैंने ..."
कहता है वह
अब निष्टुर है वह
क्योकि इस तरह का अकेला नहीं है वह ॥

उसके आंसुओ का पोखर
भाप बन कर उड़ चूका है
उसके संवेदनाओ का सागर
समाप्त हो गयी है
भभक कर पेट्रोल की तरह ॥

नहीं लुटाये पैसे उसने
बीयेर बार में
खरीदने कार में
बाज़ार में ॥
राजा से रंक बन चूका था
वह छन में ...
--------------baban pandey

सुविधाभोगी

(प्रस्तुत कविता हिंदी के विद्वान कवि प० राम दरश मिश्र द्वारा सम्पादित पत्रिका ' नवान्न ' के द्वितीय अंक में प्रकाशित है, मेरी इस कविता को उन्होनें गंभीर कविता का रूप दिया था )

न तो ---
मेरे पास
तुम्हारे पास
उसके पास
एक बोरसी है
न उपले है
न मिटटी का तेल
और न दियासलाई
ताकि आग लगाकर हुक्का भर सकें ॥
और न कोई हुक्का भरने की कोशिश में है ।

सब इंतज़ार में है
कोई आएगा ?
और हुक्का भर कर देगा ।
आज !
हर कोई
पीना चाह रहा है
जला जलाया हुक्का ॥

-------बबन पाण्डेय

गुरुवार, 10 जून 2010

हमलोग चोर है

(मित्रो , मैं लगातार मानव -मूल्यों में हो हरास के ऊपर लिखते जा रहा हू , प्रेम सम्बन्धी कविताये बनाना मेरे लिए कठिन कार्य है ...प्रस्तुत है एक और कविता ...आशा है आपका समर्थन मिलता रहेगा ॥)

चीर चुराना (चीर -हरण ) तो
हम महाभारत काल से जानते है ॥

बिजली की चोरी
मेरा शगल है ॥

इन्कम -टैक्स की चोरी
आम बात है ॥

बनिए द्वारा तौल की चोरी में
हर्ज़ क्या है ॥

परीछा में चोरी
लड़के -लडकियों का हक है ॥

रचनाये चुराना
कवि-लेखको की पुराणी आदत है ॥

भारतीय संगीतकार
पाश्चात्य संगीत चुराते है ॥

देकेदार और इंजिनीअर
सीमेंट चुराते है ॥

नौकरी और आरछन में
लाभ के लिए जाति चुराते है ॥

नेताओ के कहने पर
हम वोट चुराते है ॥

माता -पिता द्वारा
किये गए उपकारो का
हम ऋण चुराते है ॥

मित्रो से पैसे लेकर
आँखे चुराना
कोई नयी बात नहीं ॥

कहते है ...
कुछ लोग
आँखों से काजल चुरा लेते है ॥

अब तो हम -----
मित्रो के साथ बैठ
प्यार और हँसी चुराते है ॥

दांपत्य जीवन को दमतोड़ो जीवन
में बदल
दुल्हन का श्रृंगार चुराते है ॥
-------------बबन पाण्डेय

आँखे बोलती है


जिन आँखों में देखा था
प्यार का सागर
उसी में तलाक का तूफान देख
हैरान है आँखे ॥

जिन आँखों में देखा था
विस्वास का दरिया
उसी में बेरुखी देख
परेशान है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखी थी
सच की किताब
उसी में झूठ का पुलिंदा देख
बेजुवान है आँखे ॥

घर लौट आओ , मेरे दोस्त
जंगलो में अब बहुत हो चूका
माँ का बेटे के वियोग में
लहू -लुहान है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखे थे
घूँघट में चेहरा
नंगे हुस्न की तारीफ़ का
तमाशाबीन है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखी थी
अमन -चैन की बगिया
खून की नदियां देख
गमगीन है आँखे ॥

बुधवार, 9 जून 2010

झूला

कई बार झूला हुं
सावन के झूले में
कई बार झूला हू
यादों के झूले में
और तेरी बाहों के झूले में भी
कई बार झूला हू मैं ॥

पर अब ये झूले
कोई गर्मी नहीं देती

कई झूले है
झूलने को अब मेरे पास
धर्म के झूले में झुलना
मेरी नियति है
बातों और वादों के
झूले में झुलना
हमारी दिनचर्या में है ॥
हमारे नेता हमें
झुलाते है ...रोलर -कोस्टर के
झूले में ॥
त्रिया -चरित के झूले में झुलना
एक रोज नए अनुभव से गुजरना है ॥

अफजल और कसाब
फांसी के झूले में कब झुलेगे
मुझे नहीं पता ॥
पर ......
हमारे विदर्भ के कई किसान
कपास की फसल बर्वाद होने के गम में
और .....
हरयाणा के खाप पंचायतों के
तुगलकी फरमानों से आजिज
कई युवक -युवतिया
ख़ुदकुशी के झूले में
झूलने को विवश हुए ॥

ख़ुदकुशी से पहले सोचो

(गुजराती कवित्री ख्याति शाह के अनुरोध पर एवं उन्ही को समर्पित )

ओ ....ख़ुदकुशी की दहलीज पर
बैठे हुए....मेरे दोस्त
तुम्हारे ख़ुदकुशी के कारणों पर
मैं नहीं बोलूगा ॥
क्योकि नाश होना एक नियति है ॥
मगर , ख़ुदकुशी के पहले सोचो ....

एड्स पीड़ित
कैंसर पीड़ित
और प्रिज़ोरिया से पीड़ित रोगी
यह जानने के बाद
कि वे मर जायेगे
साल -दो साल के अन्दर ....
फिर भी ...उनमें
जिजीविषा है ,यार !

एक तुम हो , मेरे दोस्त .....
ख़ुदकुशी करने की सोचते हो
क्या तुमने कभी सोचा
ये ख़ुदकुशी का मेडल
अपने माँ -बाप को पहना कर
उन्हें मजबूर कर दोगे .....
समाज में अपना मुह छिपाने के लिए ॥

एक सैनिक भी मरता है
मोर्चे पर ......
शहीद कहलाता है वह
हम उसे पूजते है ...

अगर समय मिले
दिल्ली में इंडिया गेट देख लो
शहीदों के नाम खुदे मिलेगें ॥

उसकी माँ ......
समाज में मुह नहीं छिपाती
छाती ठोक कर कहती है
मेरे कोख से एक सैनिक ने जन्म लिया था .....
-------------बबन पाण्डेय

आदमी एक दो मुहां साँप है


आदमी....
कभी बाघ बन दहाड़ता है
कभी कुत्ता बन लड़ता है
कभी गिद्ध बन मांस ग्रहण करता है
तो कभी
गीदर बन भाग खड़ा होता है
कभी गिरगिट की तरह रंग बदलता है

आदमी.....
कभी धर्म के लिए स्वं मरता है
कभी दूसरों को मारता है / काटता है
कही मंदिर बनाता है
तो कही मस्जिद गिराता है

आदमी ......
कभी देश बाटता है
कभी जाती बाटता है
कभी भाषा बाटता है
तो कभी एकता का पाठ पढ़ाता है

आदमी ....
कभी कंजूस बन पैसे के लिए मरता है
कभी दानी बन पैसे लुटाता है
कभी स्नेह करता है
तो कभी नफरत की आग बरसाता है

आदमी ....
कभी नारी को पूजता है
कभी नारी को जलाता है
कभी अपने बच्चे की बलि देता है
तो कभी बीबीयो को बदलता है

आदमी .....
कभी चोर बनता है
कभी साधू बनता है
कभी देशभक्ति की चादर ओढ़ता है
तो कभी देशद्रोह की तलवार भांजता है

मैं
आदमी हो कर भी
आदमी को नहीं समझ सका ....

सच कहू ... दोस्त
आदमी एक दो मुहां साँप है

मंगलवार, 8 जून 2010

कितना बदले है हम ?

टेबल घडी की टनटनाहत से
नहीं उठता वह ।
डोन्ट ब्रेक माय हर्ट
मोबाइल के रिंग -टोन से
उसकी नींद टूटती है ....

उंघते हुए बाथ रूम की ओर
रुख किया उसने
पाश्चात्य शैली के टोइलेट पर बैठ कर
वह ब्रुश भी कर लेता है ॥

डेली सेव करना उसकी आदत में है
जबकि उसके माँ ने कहा था
मंगल और गुरुवार को सेव मत करना ....

कैसे न करे वह
कम्पनी का फरमान
ऊपर से गर्ल फ्रेंड की चाहत भी

जैसे -तैसे
ब्रेड पर लगाया क्रीम ...
गटागट किया ......
फिर एक गोली खाया
यह गोली दिनभर उसे
सरदर्द से दूर रखेगा ॥

अख़बार भी देखना
तो सिर्फ टेंडर की सूचना
फिर शुरू हो गया
मैनेज करने की तिकड़म की जद्दोजेहद .....

अरे ऑफिस क्या है ...
कभी ट्रेन तो कभी प्लेन

शाम को फ़ोन किया
सारी,...नहीं आ पाउगा
ओ के .....मैं भी नहीं आ पाऊँगी ..बाय
घर एक , मगर रास्ते अलग - अलग

चलते -चलते
लैप -टॉप पर ही चैत्तिंग
कुछ कम मोबाइल से
कम्पनी ने दिया है ....
साथ ही हितायत भी
नो स्विच ऑफ .......

शाम का खाना
किसी रेस्टोरेंट में
वियर की दो बोतल
गटक गया
शायद नींद आ सके ॥

फिर एक दिन
माँ के निधन की खबर मिली
ओल्ड -एज होम में रहती थी वह
पोता बोर्डिंग स्कूल में था
किराये की कोख का पोता
बहु ने गर्भवती होने से मना किया था .....

ऑफिस में फ़ोन किया
सर !..माँ मर गयी है
मुनिस्पैलिटी वाले को बुलाया है
डेड बॉडी उठते ही आ जाउगा
दाह-संस्कार के बिल का पेमेंट शाम को करुगा
आधे घंटे लेट होगी ॥

यह कह .....
उसने अपना मोबाइल बंद कर लिया
आधे घंटे के लिए
शायद ,...मृत -आत्मा को शांति आ जाय ॥

कितना बदले है हम ....
१०%, २० % या .........??/

अक्ल बड़ी या भैस

पुल नहीं , तो वोट नहीं
रोड नहीं ,तो वोट नहीं
सुनकर वोटरों की ये चिल्लाहट
बढ़ी नेताजी की घबराहट

उड़ चले वो
वोटरों के गाँव
पहले खेला जाती का दावँ

जब वोटर हुए
टस से मस
तब उन्होनें सवाल दागा
कितने लोगों के पास है
ट्रक्टर / ट्रक और बस
वोटर थे सब चुप
फिर बोले .....
तब रोड का क्या फायदा
ऊँची जाती वालो के पास है
ट्रक्टर , ट्रक और बस
उनके ट्रक का चक्का टूटने दो
थोडा उनको और गरीब होने दो
फिर नेता जी का जय -जय कार लगा

पुल तो मैं
कब का बनबा देता ...
मगर होगा आपको हानी
रोज पुलिस आएगी
बढ़ जायेगी परेशानी
नहीं कर पाओगे
गांजे / भांग की खेती
पुनः जय -जय कार

अब आप ही सोचिये
अक्ल बड़ी या भैस

शंकर जी धयान दीजिये

हे ! त्रिनेत्र धारी
पार्वती पति
नंदी के धारक
सापों के प्रेमी ....
और, हमेशा नशे में रहने वाले
मेरे शंकर !!!

मैं जानता हू
आपके नशे का कारण ॥
समुद्र - मंथन से
जो हलाहल निकला
उसका सेवन किया था न आपने ?
और नीलकंठ कहलाये

क्या एक बार पुनः
पृथिवी लोक आकर ....
वैमनस्य का विष नहीं पियेगे आप
यह विष
समुद्र -मंथन से नहीं
बल्कि लालच / क्रोध / इर्ष्या /द्वेष /अविश्वास का
मंथन कर निकला है हमलोगों ने ॥
इस विष से आपके कंठ
और नीले नहीं होंगे ॥

दूसरी प्रार्थना है ... प्रभु
जनसंख्या नियंत्रण के लिए कुछ करो
इस विषय पर कोई नेता नहीं बोलता
मुझे हल्का -हल्का याद है प्रभु
संजय गांधी ने .....
नियंत्रण हेतु जब्बरदस्ती नशबंदी
करवा दिया था कुछ लोगो का
बड़ा बवेला मचा था ....
अब तो कई नेताओ के ही
नौ - दस बच्चे है .....
एक बिहार के है , दुसरे आन्ध्रप्रदेश के थे ॥

मगर प्रभु ....
जनसंख्या नियंत्रण के लिए
ज़लज़ला / भूकंप /बाढ़ ...और दंगा
मत करवाइएगा ॥

एक और अनुरोध है ....
"गंगा एक्सन प्लान "..का क्या हुआ
मुझे पता नहीं ...

सुना है ... मेरी दादी कहती थी ...
आपने गंगा -मैया को
अपने जटा में लपेट लिया था ...
थोडा सा गंगा - जल में वृद्दि कर दो
बहुत फायदा होगा ....
टेहरी डैम से खूब बिजली बनेगा
उसके किनारे के मल-मूत्र साफ़ हो जायेगे
और सबसे अच्छी बात होगी ....
"सुल्तानगंज" में गंगा - जल में वृद्धि
ताकि भक्तगण "देवघर" में आपको स्नान करायेगे ॥

आप तो भ-भुत और राख लपेटते है .....
फिर भी अशुद्ध गंगा - जल से
आप भी स्नान करना नहीं चाहेगें

सोमवार, 7 जून 2010

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें (भाग -२)


उन सभी दोस्तों को समर्पित ...जिन्होंने आज ..मेरी कविताओ पर लम्बी वहश की है ...आएये दोस्तों ..कुछ मूड फ्रेश कर लीजिये ॥

(८)

फूलों से लदी डाली , जैसे झुक गयी कचनार की
किस -किस को बताऊ , अपनी ब़ाते प्यार की ॥
(९)

हवाओ ने छुआ तुम्हें ,सिहरन मुझे होने लगी
फूल गुले चमन की सूखी, दर्द मुझे होने लगी ॥
(१०)





पूरा जाम नहीं ,अधरों पर लगा
शबनम का एक कतरा काफी है , मेरी मदहोशी के लिए ।
"आ ! मुझ पर बैठ , फूलों ने तितलियों से कहा
अब नहीं उड़ाउगा तुझे ,माफ़ कर मेरी गुस्ताखी के लिए ॥
(११)

पीकर हो गया मदमस्त इतना , तेरे उर का ये प्याला
लालटेन लाने गया था , जुगनू पकड़ कर ले आया

(१२)

बड़ा वबंडर मचा दिया आपने ,जरा सा उनकी जीभ क्या फिसली
जिस कैसेट का भाषण सुना आपने , वो चीज थी ही नकली ॥

मैं सरकार हू

मैं सरकार हू...
आपने ही तो चुना है मुझे
कैसे ??

१०० आदमी में से
५० आदमी वोट देने आये
चार पार्टिया मैदान में थी
मेरी पार्टी को १३ वोट मिले
उसमे भी मेरी पार्टी के जाति के
और वोट
मेरी सहयोगी पार्टी के जाति के
मैं विजयी हुआ

सरकार बना ली मैंने
वो भी जैसी - तैसी नहीं ....
लोकप्रिय सरकार
अब जो मर्जी करुगा

ये कैसे होगा , नेताजी
भीड़ में से किसी ने टोका
आपको १०० में से १३ वोट ही आये
लोकप्रिय सरकार तो तब बनती
जब आप १०० में ५१ वोट लाते

"मैं क्या करू
आप सब पढ़े -लिखे लोग
वोट डालने आते ही नहीं "
आपलोग लिखते हो
टी वी / अखवार में ...
एक्सिट पोल दिखाते हो
प्रजातंत्र है भाई .....
लिखने से कुछ नहीं होगा
असली ताकत वोट गिराने में है ॥

नेता जी ने सफाई दी .....
अब सब चुप थे ....

मेरे विचार से नेताजी की कोई गलती नहीं
गलत है हमलोग ....
जो पढ़ कर भी
अपने अधिकारों को नहीं समझते

रविवार, 6 जून 2010

खुल कर जातिवाद करो यार !!

(जातिगत जनगणना को लेकर लिए गए फैसले के ऊपर )

अरे यार !!
कान में मत फुस्फुसाओ
खुलकर जाती पूछो ।
सरकारी लाइसेन्स ही मिल गया ..
.संसद के अन्दर
नेताओ की मुहर लग गयी यार ...
जातिगत जनगणना को लेकर ॥

अब इंटरवेऊ में
नहीं पूछा जाएगा
आपके रिसर्च का ज्ञान
भोतिक और रसायन विज्ञानं ॥
आपसे पूछा जाएगा ....
आपके जातिगत पेशे
कैसे दुहते हो गाय
कैसे कराते हो पूजा
कैसे बनाते हो जूता ...
पुनः लौटो यार
मनुवाद की ओर ॥

ओ मेरे परम प्रिय
प्रातः स्मरणीय
सर एडविन लुटियन द्वारा डिजाईन किये गए
१४४ खम्भों के अन्दर बैठने वालो
कुछ तो बक्शो .....

जाती बनानी है तो बनाओ न
अमीरों /गरीबो की जाति
डाकटरो की जाति
इंजीनिअरो की जाति
स्वतंत्रता सेनानियो की जाति
कवियो की जाति
लेखको की जाति
और सुनो ....
एक बेरोजगारों की भी
जाति बना लो यार
ताकि ये एक अलग पार्टी बना सकें ॥

पगडंडियों के फूल

(यह कविता उन लड़के -लडकियों को समर्पित है जो अंदर से कुभावना पाले है कि मैं सुंदर नहीं और मेरा चाहने वाला कोई नहीं । आशा है ,,यह कविता उन्हें एक नई उर्जा देगीं )

कमल का फूल नहीं हू मैं
ना ही गुलाब का फूल .....

मैं हू ...
सड़क की पगडंडियों के किनारे
उगने वाला फूल ..
"भवरे पंग्तिबद्ध है
उनका आलिंगन करने"
यह देख कर मैं
बराबर चिंतित रहता ॥

फिर एक दिन
एक अनजानी सी तितली
मेरे पास आयी ।
बोली ....तुमने भी
वही धूप
वही हवा
वही ऑक्सीजन
वही बरसा का पानी
पिया है ॥
तुम में भी
वही क्लोरोफिल और स्टार्च है ॥

रही बात भवरे की
तो सुनो
वे भवरे उनका आलिंगन करने नहीं
बल्कि निचोड़ने आये है ॥

यह बोल कर
उस अनजानी तितली ने
मेरा आलिंगन कर लिया ॥

दंभ से बचो , मेरे दोस्त !!

आसमान को
कौन छुना नहीं चाहता , मेरे दोस्त !!
तारे तोड़ने की ईच्छा
किसे नहीं होती ॥

परन्तु , आसमान छुने पर
दंभ मत भरना , मेरे दोस्त !!

हिमालय भी दंभ भरता था
अपनी ऊँचाई का .....
न जाने कितनी बार
तोड़ा गया उसका दंभ ॥

पहाड़ के शिखरों पर रखे
पथ्थरो की बिसात ही क्या
किसी भी दिन
कुचल दिए जायेगे
सडकों के नीचे
बड़े -बड़े मशीनों द्वारा ॥

और अंत में ....
यह भी याद रखना , मेरे दोस्त
दरखतो की उपरी टहनियां
दंभ भरती थी
मगर जब , आंधी चली
उपरी टहनियां ही
टूट कर सबसे पहले ज़मीन पर आयी ॥

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें - 1





(१)
मैं दुष्यंत तो नहीं , बनने की राह में हू
मैंने भी आपके थाल में कुछ परोसा है
अगर इसी तरह पढ़ते रहे मुझे, मेरे दोस्त
बन जाउगा एक दिन , मुझे पक्का भरोसा है ॥

(२)
इत्र भी इतनी खुशबू नहीं बिखेर सकता , जितनी आपकी सांसें ।
मयखाना भी मुझको नहीं पिला सकता इतना , जितनी आपकी आंखें ॥
(३)
फूलों में ऐसे रंग कहाँ , जैसे है आपके होठ
बड़ी मुश्किल से खोजा हू ,ये तो है पके अखरोठ ॥
(४)
फिसलती रही ऊँगलीया इसतरह ,तेरे मखमली गाल पर ।
फुदक रही गोरैया जैसे ,इस डाल से उस डाल पर ॥
(५)
क्या कमसिन बदन ,क्या कमसिन अदा ,और ये बहुरंगी चाल
जैसे कोई बच्चा घुटनों पर चल, पकड़ रहा रुमाल ॥
(६)
अगर डरना है तो खुदा से डर, लोग यूही डराया करते है ।
बालों को काला करने की ज़रूरत नहीं ,हम तेरे बुढ़ापे पे भी मरते है ॥
(७)
बादलों का रुख जान लेता हू , हवाओ को देखकर
मिजाज़ जान लेता हू आपका ,अदायों को देखकर ॥

शनिवार, 5 जून 2010

आओ, एक पुल बनाएं

पुल .....
अर्थात ...मिलन
दो गांवों का /दो देशों का
और
नदियों को लांघने का एक संरचना ॥

रिश्तों का पुल बनता है
जब दो परिवार
शादी के बंधन में बंधते है ।

कुछ दिनों पहले पढ़ा था
एक तलाक शुदा दंपत्ति के
१२ वर्षीय पुत्र ने
माता -पिता के दिलो को जोड़ा
पुल बनकर ॥


प्रजातंत्र में भी
पुल बनाया जाता है
नेताओ और वोटरों के बीच
भाषणों का / आश्वासनों का
जो तुरंत ही ढह जाता है ॥

दरअसल .....
पुरे समाज की बुनियाद
पुल पर ही टिकी है ॥

आइए......
हम सब मिलकर एक पुल बनाएं
कंक्रीट पुल के इतर (उलट )
विस्वास की सीमेंट
मित्रता की ईट
संवेदना के गारे
और सहिस्नुता की बांस - बल्लियों से ....

मगर याद रखना, मेरे दोस्त
यह पुल
नदी में बाढ़ आने से नहीं
बल्कि ...
अविश्वास और आपसी नासमझी के
हल्के झोकों से भी
बिखर जाएगा ॥

मंगलवार, 1 जून 2010

छत पर आई लड़की और मैं


गाँव में
मैं घर की छत पर जाता शाम को
मेरे पीछे पड़ोस की एक लड़की
भी अपने छत पर जाती

कभी वह हाथो से इशारा करती
कभी पलके गिराती / कभी पलकें उठाती
कभी अपना दुपट्टा गिराती
कभी हाथों पकड़ उसे उड़ाती ......
कभी अपने बालों से
अठखेलिया करती .....
कभी मुझे जीभ निकालकर चिढाती
कभी बार -बार आईने में अपना चेहरा देखती
कभी कमर लचकाती ....!!!

मैं चुपचाप देखता रहता
कुछ दिनों तक ऐसा ही चला
फिर मेरे ऊपर
ईट के छोटे -छोटे टुकड़े फेकती
मैंने छत पर जाना बंद कर दिया

फिर कुछ दिनों बाद
एकांत देख मेरा रास्ता रोका ....
कहने लगी
बुध्धू , डरपोक , पढ़ाकू ...
मेरी चिट्टी क्यों नहीं पदी ?
मैंने कहा .....
कौन सी चिट्टी
वही चिट्टी
" जो मैं ईट के छोटे -छोटे टुकडो में
बाँध कर फेकती थी तुम्हे "
वह चिहुक कर बोली
मैंने कहा ....
मैंने समझा ...मुझे मार रही हो
अरे ! बुध्धू ....
उस ईट के टुकड़े के साथ ....
कागज में तुम्हारे लिए प्यार का इज़हार था

तुम्हारी हो सकी
मेरी शादी हो रही है
आकर दुल्हन के रूप में देख लेना

(२० साल पहले लिखी गयी रचना )

खुटे की गाय और प्रजातंत्र

वैसे तो
खुटे से बंधी चरती गाय
और प्रजातंत्र में
कोई समानता नहीं दिखती ॥
मगर
थोडा गौर फरमायें
तीन महत्वपूर्ण बिंदु ....
खूंटा , गाय और रस्सी ॥

खूंटा मतलब संबिधान
अपनी जगह स्थिर
गाय मतलब नेता
चारों ओर चरने वाला
और रस्सी यानी वोटर


इस रस्सी को जब चाहो
तोड़ दो , मोड़ दो , काट दो
है ना समानता ॥

क्या हम सब रस्सी
आपस में मिलकर .....
गाय को नियंत्रित नहीं कर सकते ॥

अन्दर की चिंगारी को खोजो

मैं
समुद्र की उन लहरों की तरह नहीं
जो बार -बार गिरती है / उठती है
और
किनारे तक आते - आते
दम तोड़ देती है

मैं
उन घोड़ो की तरह भी नहीं
जिसे
चश्मा लगा देने पर
सुखी घास भी
हरी दूब समझ खा लेते हैं


मैं
उन दिहाड़ी मजदूरों की तरह भी नहीं
जो १०० रुपया और एक पेट खाना पर
बुला लिए जाते है ....
राजनेताओ की रैलियो में
भीड़ जुटाने के लिए

मैं तो चिंगारी हु मेरे दोस्त !!
सबके दिल में रहता हु
ओस की एक बूंद .......
मेरी इहलीला समाप्त कर सकती है
या
हवा की तनिक सी सिहरन
मुझे अंगारे बना सकती है

मेरे बारे में