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शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

हवा और पानी है मेरा दोस्त

एक देशभक्त हू मैं घायल
किसी और का नहीं
भारतमाता की चरणों का हू पायल ॥


सब मुझे ....
हाथ पोछा रुमाल समझते है
जब पसीना निकलता है
तब लोगों को एहसास होता है
मेरे मजदूर होने का ॥


एक सौ रूपये के बदले
पता नहीं कितना पसीना चाहिए लोगों को

आदमी नहीं है ....
मेरे मित्र ॥
मंद पवन का झोंका है
मेरा सच्चा साथी
जो ....
सुखा देता है मेरा पसीना बार -बार ॥
और पानी
जिसे पीकर ...
बनता है मेरा पसीना
मैं बचते रहता हू
डीहाईडरेसन से
और डाक्टर की फ़ीस से भी ॥

नौक्टिकल माइल

मैं ....
दूर तक निकल गया
मछलिया पकड़ते -पकड़ते ॥
मैं तो अनजाने में
लाँघ गया था नौक्टिकल माइल ॥

मुझे नहीं था
ये नौक्टिकल माइल क्या होता है ..

मैं तो बस
यही जानता हू
ये समुद्र खुदा की
बनाई सबसे बड़ी नियामत है ॥

पकड़ लिया मुझे
पाकिस्तानी तटरक्षको ने
आज सड़ रहा हू जेलों में ॥


मैं पूछना चाहता हू
पाकिस्तानी हुक्मरानों से
मुंबई के आतंक वादी भी तो
आए थे समुद्र के रास्ते
अब कौन सा सबूत चाहिए उन्हें
जेलों में डालने के लिए ॥

पक्षियों से एक अनुरोध

वोटर लिस्ट में है नाम
तो कुछ बनेगा काम
कम से कम
सरकारी नुमाइंदे
खोजने तो आते है
५ साल में एक बार ॥
घर में ताला लगा होता है
वे समझते है ...
मर गया होगा
लाल निशाँ लगा देते है तुरंत ॥


मगर ... पक्षियों
आपकी सुधि कौन लेगा
आपका नाम वोटर लिस्ट में तो नहीं है ॥
एक अनुरोध है
अपना एक संघ बनाइये
वोटर लिस्ट में अपना नाम डलवाइए
तब शायद
किसी नेता को
आपके वोट की जरुरत महसूस हो


फिर आपकी चर्चा
होने लगेगी ....संसद में
सब पार्टियां
दौडेगे आपके वोट के लिए
आपके बचाब में ॥

होंगी खूब घोषनाए
जैसे ...
मुस्लिमो के वोट के लिए
करती है सब पार्टिया ॥
शायद आप ...
विलुप्त होने से बच जाए ॥

ग्राहम वेल को लात मारने की सोची थी कभी ...

मित्रो , यह कविता लिखने की प्रेरणा भाई ओंकार जी ने दी है ...

कल मैंने ...
ग्राहम वेल की फोटो पर
मारी थी एक लात ॥
मुझे नहीं पता था
डाल देगा खटास
यह निकम्मी टेलीफोन भी ॥

बात ज्यादा नहीं थी
नाक में दम कर रखी थी पड़ोसियों ने
श्रीमती जी की ॥
गाहे -बगाहे
समय -कुसमय
जब भी टेलीफोन की घंटी बजती
मुझे लगता
एक और पडोसी से
होने जा रहा है ३६ का सम्बन्ध ॥

फलां को बुला दीजिये
न बुलाओ ...
ले लो दुश्मनी मोल ॥
रात को सोना हराम
रविबार तो बेकार ही समझे ॥


हद तो तब हो गयी
जब पडोसी ने
पुलिस वाले को नुम्बर दे दिया
अब , पिलिक वाले पूछते
सब शान्ति है न महल्ले में
मानो ..मेरा घर , घर नहीं
शान्ति समिति का कार्यालय हो


मैं चरण स्पर्श करता हू
मोबाइल के निर्माताओ का
जिनकी कृपा से
अब पड़ोसिओ से बातें क्या
उनकी सूरत भी नहीं दिखती॥
जय मोबाइल ॥

ये इश्क है क्या ...


इश्क को हर लोगों ने अपने -अपने तरीके से देखा है ....मैं ne भी
इश्क एक खट्टी इमली है
हर उम्र में फिसली है
इश्क उमड़ती है
इश्क घुमड़ती है
और इश्क की तितली
हर फूलों पर मचलती है


फूलों की तरह खिलती है
टूटने पर मुरझाती है
क्या इश्क कुराफाती है ?


दोस्तों ...
इश्क रों में रहती है
तभी तो
सुहागन तलाक शुदा
और तलाक -शुदा सुहागन बन जाती है ॥
इश्क गांवो में भी रहती है
तभी तो
चार बच्चों की माँ
अपने कुआरे देवर संग भाग जाती है ॥

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

दादी , माँ और पत्नी

प्रस्तुत कविता उनलोगों पर लागू होती है , जो नौकरी या अन्य कारणों से पलायन होकर महानगर या शहरों में आ बसे है ..

पीने का पानी लाती थी ....
मेरी दादी --- नदी से
मेरी माँ -----कुआ से
पत्नी लाती है ---
घर में लगे एकुआ-गार्ड से ॥

कपडे धोती थी
मेरी दादी ----तालाब के किनारे
मेरी माँ ---कुए की जगत पर
पत्नी धोती है ----
औटोमातिक वाशिंग मशीन में ॥


भोजन पकाती थी
मेरी दादी ---गोइठा से
मेरी माँ ---कोयला से
पत्नी लज़ीज़ व्यंजन बनाती है ---
माइक्रो -वेव ओवन से ॥


पहले गर्मियों में ...
दादी खुश रहती थी
माँ को पसीने निकलते थे
और अब ...
मेरो पत्नी / मेरे बच्चे
ऐ ० सी ० से बाहर निकलते है
घमौरिया साथ लाते है ॥


पहले प्रसव -पीड़ा को झेल कर
मेरी दादी ---खुश होती थी
मेरी माँ ---कष्ट सहती थी
मेरी पत्नी ---
अब सिजेरियन ही कराना चाहती है ॥

क्या --
हमलोग जितने सुख में रहते है
कष्ट सहने की क्षमता
उतनी ही कम हो जाती है .?

फूलों के बीच तुम्हारा बैठना

सब कहते थे....फूल जैसी सुन्दर हो तुम
मुझे विश्वास ही नहीं होता था
पर उस दिन ...
जब तुम
बगीचे में बैठकर
फूलों से बातें कर रही थी
मैं तुम्हें ढूंढता रहा
तुम मिली नहीं ॥


तुम मुस्कुराई होगी
मुझे फूलों के मुस्कुराने का भ्रम हुआ होगा
तुम हंसी होगी
मुझे कलियों के चटखने का भ्रम हुआ होगा
तुमने कंगन हिलाया होगा
मुझे भौरे के गुंजन का भ्रम हुआ होगा

पर जब तुमने आवाज लगाईं
मैं ...
तुम्हें निर्निमेष देखता रहा
फूलों के बीच बैठ कर
"फूलों की रानी "
लग रही तुम ॥

ताजमहल का पानी में तैरना

तुम्हारे
गोरे बदन पर लिपटी
सफ़ेद साडी का आँचल
कुछ ऐसे उडी
मुझे नर्मदा नदी का
भेड़ा-घाट याद आया ॥


तुम्हारा
मसूरी के कैम्पटी फ़ाल में
अधनंगे बदन नहाना
पहली बार देखा
आगरे की ताजमहल का
पानी में तैरना ॥


चलते -चलते
कश्मीर की वादियों में
तुम कुछ इस तरह झुकी
कचनार के फूलों से लदी
कोई डाली मुड़ी ॥

बनना चाहता हू डोर पतंग का

दोस्तों ....
मैं बनना चाहता हू
एक मजबूत डोर
उस पतंग का
जो माप लेना चाहता है
ऊंचाई आकाश की ॥


दोस्तों ....
मैं बनना चाहता हू
काले बादल
जिसे देख
बैरी पिया भाग कर
सजनी को गले लगाने
घर को आ जाए ॥


दोस्तों .....
मैं बनना चाहता हू
गुलाल
ताकि चिपक जाऊ
सबके कपोलों पर प्यार बनकर
जीत की ख़ुशी में
और तिउहार के कोलाहल में भी ॥


दोस्तों ....
मैं बनना चाहता हू
एक ऐसा सुगंध
जिसपर गुरुत्व का
कोई प्रभाव नहीं पड़ता
ताकि चहु दिशा उड़कर
संवेदनाओ में उपज रही दुर्गन्ध को
चिर कर हटा सकू ॥

जब हवा पागल बनती है

पागल किसे कहते है
मैं नहीं जानता
मगर इतना जानता हू कि
अगर आप पर
पागलपन सवार है
तो हिमालय लांघना
कौन सी बड़ी बात है ॥


दोस्तों ,....
हवा जब पागल बनती है
उसे तूफ़ान कहते है
और ....
तूफ़ान घंटे भर में
वह कर देता है जो
हवा वर्षों से नहीं कर सकती ॥


मेरे युवा दोस्तों ....
आइये हमलोग भी तूफ़ान बने
छतविहीन घरों को छत देने के लिए
वृक्षों को नई जड़ देने के लिए
आईये ....
तूफ़ान बन फसलों के साथ उग आई
खर -पतवारों को साफ़ कर दें॥

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

ये कैसी विडंवना है प्रभु

ये कैसी विडंवना है प्रभु
मेरे पास पैसे नहीं है
तो भूख का ज्वार उठता है
उनके पास पैसे है तो
उन्हें .....
...भूख ही नहीं लगती "


ये कैसी विडंवना है प्रभु

मेरे पास कुदाल है
दो ताकतवर हाथ है
पर खेत नहीं है
उनके पास खेत तो है
पर कुदाल नहीं है

आइये ..कुछ करते है ...

आओ... दोस्तों
पतझड़ को बसंत में बदल दे
दुश्मन को संत में बदल दें

वोट को नई चोट में बदल दे
रेत को उर्वर खेत में बदल दे

शूल को फूल में बदल दे
पथ्थरो को धुल में बदल दें

आइये , हम सब मिलकर
पर कटे पक्षियों को पंख लगा दे
नई लीक पर चलने का शंख बजा दे ॥

तैरता मन अब डूबने लगा है ....

अब सर से पानी निकलने लगा है
तैरता मन भी अब डूबने लगा है ॥

सूनी माँ की आंखों में , बेटे का इंतज़ार है
अब ,सिर्फ उनका ताबूत घर आने लगा है ॥

आशा लगाईं थी कुदाल ने , लाल कोठी पर
कपास के खेतों में भी अब दरार आने लगा है ॥

अब खाव्बो की मलिका , मरने लगी है
इच्छाओ का घर भी अब ,जलने लगा है ॥


मैं कुछ कर न सका दोस्तों, देश के लिए
इसका मलाल अब मुझे , आने लगा है॥

लाल कोठी-संसद

बुधवार, 21 जुलाई 2010

कभी -कभी उसे लगता है ....

कभी - कभी उसे लगता है
नेत्र हीन हो जाए
ताकि वह देख न सके ....
शरीर दिखाती औरतें
किसानों की आत्महत्याए
निठारी में नाले से निकले
छोटे -छोटे बच्चों के नर कंकाल
और
सैनिक बेटे को खोने के बाद
एक मूर्छित माँ का चेहरा ॥


कभी -कभी उसे लगता है
बहरा हो जाए
ताकि वह सुन न सके
नेताओं के झूठे आश्वाशन
नक्सलियों के बंदूकों से
गोलियों की तडतड़ाहट
लोक संगीत की जगह फ्यूजन -मयूजिक
और
हमलों में शहीद हुए जवानों की
पत्नियों का विधवा -विलाप॥

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

आदमी का नाम वजूद खो रहा है ....

जब मै बच्चा था
गाँव में रहता था
अलगू चाचा , कमलू लुहार
धनिया मौसी ,शांति बुआ
सबको पहचानता था
नाम से भी , चेहरा से भी ॥


आज महानगर की
पाश कालोनी के चौराहे पर
कंक्रीट के जंगल के बीच
खड़ा अकेलापन महसूस कर रहा हू ॥
सडकें वीरान है
लोग इन्टरनेट पर चैटिंग करते होंगे ॥


मैं खोज रहा हू अपना एक मित्र
दूधवाले ने कहा
मैं नाम नहीं
फ़्लैट का नंबर जानता हू
जहा पहुचाना होता है मुझे दूध ॥


दुकानदार ने कहा
मैं भी सिर्फ फ़्लैट नंबर ही जानता हू
नाम से कोई नहीं
पहचानता यहां कोई किसी को ॥


क्या अब
इन्शान के नाम की पहचान
अपना वज़ूद खो रहा है ?

सोमवार, 19 जुलाई 2010

थोडा सोचिये ...

वो गुटखा खाता है
खैनी खाता है
और चबाता है पान
कर देता है
दीवाल का हर कोना
रंग -बिरंगा ॥

बगीचे में बैठकर
सिगरेट और बीडी के धुएं से
कर देता है
फूलों का भी मन मैला ॥


हजारों बहाता है वह
हर महिना पीने में
मगर फल नहीं खाता
डाक्टर ने जब कहा
फल और दूध खाने को
वह कर्ज लेने की सोच रहा है ॥

किसने बनाया आपको ....


प्रस्तुत कविता मेरे मित्र श्री राजेश कालरा नई देहली के अनुरोध पर लिखा गया है ..क्योकि आज शाम उनके महिला मित्र का जन्म दिन है ....उनके मित्र को जन्म दिन मुबारक ..आइये हमलोग भी इसे शेयर करें



मेरे दोस्त !!
तुम मुस्कुराती हो तो
शहतूत सी लगती हो
चलती हो तो फूलों सी डाली
कौन है आपको
बनाकर सजाने वाला माली ..

आप गुल हो , या खार हो
या फिर हसीं वादियों में खिले
सफ़ेद कचनार हो
मुझे तो बस इज़ाज़त चाहिए
देखने की.....
आपके
सुर्ख गालों की लाली
कौन है आपको
बनाकर सजाने वाला माली





आपके होठों के दीवाने हम
अलग कर दिया जाम को
जमकर पार्टी होगी आज
आपके जन्म -दिन की शाम को
चहकिए ,लचकिये , बहकिये
और ख्याब देखिये शराबीकौन है बनाने वाला
आपका हुस्न ये बबाली


बतायो यार
क्योकि आज मैं बहुत खुश हू
और बजाना चाहता हू
उसके नाम की ताली

जिंदगी तो बस ......

न ओर है , न छोर है
जिंदगी तो बस .....
आशाओ से बंधी डोर है ॥


धुप भी है ,छावं भी है
मिलन भी है , बिरह भी है
जिंदगी तो बस .....
आशाओ की चित्तचोर है ॥


कभी ज्वार है , कभी भाटा है
कभी लक्ष्मी है , कभी सरस्वती है
जिंदगी तो बस ......
अनगढ़े पत्थर सी कठोर है ॥

दिल तो आज पागल है

आंखों में काजल है
आज दिल घायल है
कशीदा न पढो मेरे हुजुर
दिल तो आज पागल है॥

हाथो में दस्ताने है
मेरे ढेरों दीवाने है
पैरों में पायल है
दिल तो आज पागल है ॥

लेने दो अंगडाई
बजा ही लो शहनाई
हुस्न आगोश में आने को व्याकुल है
दिल तो आज पागल है







रविवार, 18 जुलाई 2010

आशा एक चिड़िया है

आशा .....
एक बीज है
जो रोपा जाता है
मन -मस्तिष्क की उर्वर भूमि में
और यह बीज
अंकुर कर वृक्ष बनता है
जब इसे मिलती है गर्माहट
समाज और स्वं के रिश्ते की ॥
आओ !!!
हम सब इस बीज को
मेहनत की नीर से सींचे ॥


आशा .......
एक चिड़िया है
जो उड़ती है
व्यक्ति के मन -मस्तिष्क के आकाश में ॥
आओ !!!
आशा नाम की इस चिड़िया को
मेहनत का मजबूत पंख लगायें ॥

मेरी माँ भी झूठ बोलती है

मेरी माँ मुझसे कहती है
बासी भोजन नहीं खाना चाहिए
मगर ...मैंने देखा
मेरी माँ स्वं
रात की बासी रोटी खा रही थी
माँ की पहली झूठ ॥


मेरी माँ मुझसे कहती है
रात को जल्दी सो जाना चाहिए
मगर मैंने देखा
जब पिता जी बीमार पड़े
रात -रात भर जागती रही माँ ॥


जाड़े की सर्द रातो में
जब नींद खुली ...
तब देखा
माँ मेरे शरीर पर कम्बल डाल रही है ॥
माँ की दूसरी झूठ ॥


मेरी माँ कहती है
दूध स्वस्थ आहार है
सबको दूध देती है
मगर मैंने देखा
सबको दूध देने के बाद
जब दूध कम हो गया
बचे दूध में पानी मिला दी मेरी माँ
उसका रंग उजला हो गया
सबने देखा और समझा
माँ भी दूध पी रही है
माँ की तीसरी झूठ ॥


पता नहीं
माँ ऐसे -ऐसे कितने झूठ बोलती है
मगर
उनकी झूठ में सच छिपा होता है ॥

एक मजदूर की भूख

उसके भी
दो आँख /दो कान /एक नाक है
थोड़े अलग है तो उसके हाथ ॥
मेरा हाथ उठाता है कलम
मगर
उसके हाथ उठाते है कुदाल
और इसी कुदाल से
लिख लेता है वह
अनजाने में ही
देश प्रेम की गाथा ॥

मेरी माँ कहती है
भूख लगे तो खा लो
नहीं तो भूख मर जाती है ॥


जब भारत बंद/ बिहार बंद होता है
उसकी भूख मर जाती है
कई बार /बार -बार ॥

ओ ...बंद कराने वाले नेताओ
आर्थिक नाकेबंदी करने वाले नक्सलवादियों
क्या आपकी भी भूख कभी मरी है ?


फिर एक दिन
मैं भी स्वं रो पड़ा
जब उसने कहा
थोड़ी सी सीमेंट दे दो साहब
उसका घोल बना कर पी लूँगा
फिर ख़त्म हो जायेगी
सब दिन के लिए मेरी भूख ॥

शनिवार, 17 जुलाई 2010

हम नहीं सुधरेगे

वर्षा में नाले जाम है
नगर निगम वाला आता ही होगा
दोषी , और मैं
क्या कह रहे है आप ?

मैंने क्या किया भाई
बस
घर के थोड़े से कचड़े
पोलीथिन में बाँध कर
नाले में इसलिए डाल दी
क्योकि ......
कचड़े का कंटेनर
मेरे घर से मात्र २०० फिट दूर है ॥

मैं अफसर हो कर
२०० फिट दूर क्यों जाऊ
नाक कट जायेगी मेरी
महल्ले वाले क्या कहेगे ॥


उधर , राजघाट पर
एक विदेशी सज्जन ने
लाइटर से सिगरेट जलाई
और राख एक पैकेट में रखने लगे
मैंने कहा ....
आप धुया भी पी जाइए
बात , उनकी समझ में आ गयी
उन्होंने सिगरेट बुझाकर
अपने पैंट के पॉकेट में रख ली

५ साल बाद होने वाला नाटक

हरेक ५ साल बाद होने वाले
नाटक का शंखनाद
हो चूका है बिहार में ॥
अब बजेगी चुनावी शहनाई ॥

इस नाटक में
२४४ बहुरूपिये चुने जायेगे ॥
वर्तमान बहुरूपिये
मंदिर -मस्जिद की दौड़ लगा रहे है ॥
जेलों में बंद
अपने साथी बहुरूपियों
के बुजुर्ग माता-पिता से आशीर्वाद ले रहे है ॥

वर्तमान बहुरूपिये जो
नाटक खेल रहे है
उनके पास "तीर" और "कमल " है
"तीर " पकडे बहुरूपिये कहते है
इस "तीर " से शत्रुओ का नाश कर दूंगा
"लालटेन " का शीशा फोड़ दूंगा
"हाथ " हमसे क्या हाथ मिलायेगे
और "बंगला " का तो छप्पर ही
उड़ गया है ॥
इधर "कमल " पकडे बहुरूपिये कहते है
मैंने बिहार को खुशबू से भर दिया है
गंध लेते रहिये ॥

इधर "तीर " अपने ही "कमल " को
काटने में लगा था
जब से एक फोटो छपा था
जिसमे दो बहुरूपियों ने हाथ मिलाया है ॥
अब कहते है
गलती से मिला लिए ॥

उधर "लालटेन" को पकडे बहुरूपिये
उसकी मद्धिम रौशनी में
पुनः नाटक खेलने को आतुर है ॥
"लालटेन " थामे वे कहते है
काम से वोट नहीं मिलता
तिकड़म से मिलता है ॥
सभी बहुरूपियों को
मुस्लिम लोगों की खूब चिंता रहती है ॥


इधर मनमोहन के बहरूपिये
अपना "हाथ " मजबूत करना चाहते है ॥
पिछलीबार
लालटेन से उनका हाथ जल गया था


सब बहुरूपिये अपनी जाती के लोगों
की लिस्ट तैयार कर ली है

आप घर पर ही रहिएगा
मिस न कीजिये
क्योकि ये बहुरूपिये आपके दरवाजे
५ साल में एक ही बार आते है ॥

मैल

ओ !!
तालाब/नदी / झील के किनारे
रखे शिलापट्टो पर
कपड़ों को पटकते इंसान
कितनी आसानी से
छुड़ा देते ही मैल इसका ॥


एक हम है
लाखों बार प्रेम के पाठ पढ़े
लाखों बार यत्न किये
लाखों बार प्रवचन सुनें
लाखों बार सत्संग में भाग लिया
फिर भी
अपने अन्दर का
मैल धो न सके ॥

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

नज़रिया

एक कवि ने
अपनी कवितायें
पत्रिका में
प्रकाशित करने को भेजी ॥

संपादक महोदय ने
कचड़ा कह लौटा दिया ॥
पुनः दूसरी पत्रिका में भेजी
सहर्ष स्वीकृत की गयी
और प्रकाशित हुई ॥


इधर रिश्ते बनाने के क्रम में
माँ ने
लड़की को नापसंद कर दी ॥
पुनः उसी लड़की को
दुसरे लड़के की माँ ने देखा
फूलों की मलिका की संज्ञा से नवाजा ॥

सच
हर चीज में दो चेहरा नहीं होता
बल्कि हम
अपने -अपने तरीके से देखते है ॥

कशमकश

अभिनेत्री ने
गज़ब की वस्त्र पहनी थी
लगभग
पूरा शरीर दिख रहा था ॥

पूछने पर कहती है
कहानी की डिमांड थी
दूसरी कहती है
शरीर दिखने की चीज है
क्यों न दिखाऊ ?
इसे देख
हमारे घर की बहु - बेटियों ने भी
नक़ल शुरू की ॥
फिर शुरू हुआ
कशमकश
रुढ़िवादी और स्वतंत्र विचारों का ॥

क्या बिच्छु डंक मारना छोड़ सकता है ??

मुंबई पर
आतंकवादी हमलों (२६/११) के बाद
रेलवे स्टेशनों पर
लगाए गए थे
मेटल डिटेक्टर ॥
अब
हटा दिए गए ॥
पूछने पर अधिकारी ने बताया
पकिस्तान से
हमारे रिश्ते सुधर गए है ॥



मैं सोच रहा था
क्या सचमुच
एक बिच्छू
डंक मारना छोड़ सकता है ?

वाह , क्या कहने !!!

बैंक अधिकारी है मेरे मित्र
कृषि ऋण देने में कहते है
बैंक का फायदा कम हो जाएगा ॥
मगर ...
किसानों से पूछते है
भिन्डी २५ रूपये किलो क्यों ?


महिला आयोग की सदस्यों ने
मंच पर
दहेज़ प्रथा के खिलाफ खूब बोली ॥
पर जब
रिश्तों की बात चली
भरपूर मांग कर दीं ॥
याद दिलाने पर कहा
मंच की बात मंच पर ही ॥

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

दिनचर्या

मैं नदियो पर बाँध बनाकर
और नहरें खोदकर ,
पानी किसानों के खेतों तक पहुचाता हू ॥
मैं सिंचाई विभाग में काम करता हू ॥


किसान कहते है
सर , जब फसलों में बालियां आती है
मेरे चेहरे में खुशियाली आती है ॥

पत्नी कहती है
जब किचन में लौकी काट देते हो
तुम अच्छे और सच्चे लगने लगते हो ॥



जब एक खिलाडी कम होता है
बच्चे कहते है ...
अंकल , बोल्लिंग कर दो न
कर देता हू ...
फिर कहते है ..थैंक अन्कल ॥

मैं बूढों से बतिया लेता हू
५ रुप्र्ये किलो घी की बात करते है वे
अच्चा लगता है सुनकर
फिर आशीर्वाद भी देते है ॥

आप क्या -क्या करते हो भाई
मुझे भी बताओ ॥


दोस्तों , एक काम गलत करता हू
हाथ -पैर से मजबूत आदमी के
कटोरे में सिक्का नहीं डालता ॥

मेरी कविता को लिफ्ट करो

हे ! प्रभु !!
महंगाई की तरह
मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥
सब मेरे प्रशंसक बन जाए
ऐसा कुछ गिफ्ट करो ॥


जब भारतीय नेता न माने
जनता -जनार्दन की बात
डंके की चोट पर
वोटिंग मशीन पर हीट करो
मेरी कविता को लिफ्ट करो


जब न पटे , हमारी - तुम्हारी
और काम न बने न्यारी -न्यारी
मत देखो इधर - उधर
दूसरी पार्टी में शिफ्ट करो ॥
मेरी कविता को लिफ्ट करो


जब कानून की जड़े हिल जायें
और न्याय व्यवस्था सिल जायें
रोओ मत , चिल्लाओ मत
तुरंत मीडिया को फिट करो ॥
मेरी कविता को लिफ्ट करो

सोमवार, 12 जुलाई 2010

मेरी कविता जलेबी नहीं है

मित्रो , कविता पढना प्रायः दुरूह कार्य है ...यह तब और कठिन हो जाता है ..जब कविता जलेबी हो हो जाती है , मेरा मतलब है , उसका अर्थ केवल ही कवि महोदय ही
explain कर सकते है ...कई मित्रो ने चाटिंग के दौरान मुझे बताया कि आप सरल रूप में लिखते है और कविता का भाव मन में घुस ... जाती है ।, आज अभी इसी के ऊपर एक कविता ....धन्यवाद


मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है ॥

रहती है गरीबों के घर
किसानों की सुनती है यह
ये कोई हवेली नहीं है
मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है ॥


निकलता है ,सीधा सा अर्थ
इसके भाव है , सार्थक
ये कोई पहेली नहीं है
मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है

अर्थ, पंडित तो समझेगे ही
समझ लेगें इसे अज्ञानी भी
ये रेखाओ से बनी हथेली नहीं है
मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है

हैं ये सुवासित फूल के बगीचे
जिसे मेरी कलम रोज सींचे
ये कोई झाडी , कटीली नहीं है
मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है

मेरे प्रिय !! तुम क्या नहीं कर सकती

अपनी ओठों के चमच्च से
अतीत का शरबत
पिला दो , प्रिय !!
वर्तमान का कड़वा रस
मीठा हो जाएगा ॥


अपनी इन्द्रधनुषी नयनो का
नशीली कटार
चला दो , प्रिय !!
महंगाई की सुरसा का
वध हो जाएगा ॥


अपनी मोरनी सी कमर
और आषाढ़ की जुल्फें
लचका दो , प्रिय !!
मॉनसून को भी पसीना
आ जाएगा ॥


अपनी रसबेरी सी बातें
और मस्तानी मुस्कान
फैला दो , प्रिय !!
कैक्टस में भी खुशबु
आ जाएगा ॥

जहां न रवि , वहां जाए कवि

भीड़ में अकेला लगता हू
भिखारी की मौन पीड़ा में
समुद्र की गर्जना
महसूस करता हू ॥
भूख -प्यास देख लेता हू ॥


रेगिस्तान में कमल
खिलता देखता हू
सूर्य द्वारा बनाए गए
मरीचिका मुझे धोखा नहीं देते ॥


बीजों का अंकुरण
और
अँधेरे में दीया जलता देखना
साधारण सी बात है ॥


सत्य, असत्य, ईमानदारी....
आप नहीं देख सकते
सूर्य की रोशनी में
मगर मैंने उसे देखा है कई बार ॥


क्या मेरी हरकत
कवि जैसी तो नहीं ?

रविवार, 11 जुलाई 2010

सत्य आने के बाद


जब सत्य की नदी बहती है
तो, झूठ के पत्थर
अपना वजूद खो देते है ॥

जब सत्य की आंधी आती है
तो, झूठ के बांस -बल्लियों से
बने मकान ढह जाते है ॥

जब सत्य के रामचन्द्र आते है
तो झूठ का रावण
भस्म हो जाता है ॥


और जब सत्य से प्यार हो जाता है
तो , हम शबरी की तरह
जूठे बैर भगवान को भोग लगाते है




मर्द

हवा की दिशा में
पाल बांध कर
नाव को दौड़ाना
और
पीठ पीछे धोखा देना
कौन नहीं जानता ?

वह मर्द ही क्या
जो पानी की धार की
दिशा में तैरे ॥

मर्द के मुछे जरुरी नहीं अब
मर्द वो
जो चाकू दिखा
बन्दूक छीन ले ॥



क्या आपमें
हवा की गति के उलट
छाती खोल कर
चलने की हिम्मत है ॥

दिल दुखने के कारण

बच्चों को पढने के लिए कहो
तो , उनका दिल दुखता है ॥

मॉनसून जब समय पर न आये
तो , किसानों का दिल दुखता है ॥

स्कूल के गुरूजी के पास टिउसन न पढो
तो , उनका दिल दुखता है ॥

साहित्य चोरी की पोल खोलो
तो , कवियो का दिल दुखता है ॥


किसी के लिए
जिंदगी भर करो ....
पर एक बात न मानो
तो ,फिर भी दिल दुखता है ॥

वाह रे दुनिया !!

बच्चे ने अनजाने में कुछ कह दिया

२ साल का बच्चा हू
प्ले स्कूल जाता हू
क्या आप जाते थे ?

मैं नहीं खेलता कबड्डी
गेम्स खेलता हू
कंप्यूटर में ॥

मैं दादा -दादी के कंधे पर
नहीं झूलता
दादी -दादा डराते है
अपनी डरावनी शक्लों से मुझे॥

मुझे नहीं पता
मगर आस -पडोश के लोग कहते है
मेरी माँ उन्हें ठीक से नहीं खिलाती
मेरे पापा भी उनसे
नहीं बतियाते ॥

किससे खेलू
न भाई - न बहन
अकेला हू ....
फिर...
पीठ दर्द से परेशान हू
१० किलो का बस्ता है मेरा

आगे क्या होगा
क्या मेरे पोते भी
मेरे गोद में
खेलने से मना कर देंगें ..

आपकी हँसी

ये हंसी है या है चुभन
ये सागर है या है गगन
आप चले या ना चले
मैं तो चलता हु ...
अपनी धुन में मगन .....

शनिवार, 10 जुलाई 2010

आओ , दोस्ती को पंख लगायें

दोस्ती ... एक कलम
और मित्रों का प्यार .....एक अमित स्याही
दोस्तों से गुजारिश
ये स्याही मुझे देते रहो
इस स्याही से लिखना है मुझे
एक ऐसी कहानी
जिसे पढ़कर ......
कोई कभी ना कहे
"दोस्त , दोस्त ना रहा " ॥


दोस्त .... एक कुदाल
और दोस्ती ....मेहनत
आओ ... साथ मिलकर
मोहब्बत के कुछ ऐसे पेड़ लगायें
जिसके फल
प्रभु के चरणों में रखे जा सकें ॥

दोस्त है.... फूल
और दोस्ती ...उसकी खुशबू
आओ ! मेरे दोस्त
दिल के बगीचे में
कुछ ऐसे फूल खिलायें
जिसकी खुशबू
सिर्फ हमलोग ही नहीं
हमारे आने वाले बच्चे भी सूंघे ॥

आओ दोस्तों !!!!
दोस्ती की नाम की चिड़िया को
स्वस्थ और सुन्दर पंख लागाये ॥

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

झरना

श्वेत धवल सी ओ झरना
जीवन मेरा सहज कर देना
कैसे तुम वेगमय हो
इसका राज मुझे बतला देना .... ॥

सब कहते है ऊपर जाओ
पर तुम नीचे क्यों आती हो
क्यों अपने साथ -साथ
पथ्थरो पर कहर बरपाती हो ॥

जीवों के तुम तृप्तिदायक
माना , संगीत तुम्हारा है पायल
पर , अपने थपेड़ों से तुमने
वृक्षों को क्यों कर दिया घायल ॥

भर बरसात उछलती हो तुम
पक्षियो जैसी साल भर नहीं कूकती
गर्मियों में जब हलक हो आतुर
उसी समय तुम क्यों सूखती ॥

एक बात मानोगे मेरी
अपनी उर्जा बचा कर रखना
शक्तिहीन हो गए है जो
उनको तुम संभालकर रखना ॥

एक सैनिक की पत्नी

वृक्ष की जड़े मांगती धूप
धूप मांगती बरसा
घर से बाहर , मेरे साजन
सावन में मन तरसा ॥

गोलियां रोज खाती हू
तुम्हारे आने की आस का
गालियां रोज सुनती हू
ननद- ससुर -सास का ॥

देश के दुश्मन तुम भगाओ
मैं जुझू , घर के आँगन से
मेरी गदराई जवानी
कब तक बचेगी , रावण से ॥

पायल की झंकार अब सुनी
गीत नहीं निकलता कंगन से
बुला रही है मुझे गोपियां
अब मथुरा -वृन्दावन से ॥

जोगन बन मैं भाग चलुगी
तुम देश -देश को खोजना
विरह -मिलन की यादों में ही
अपना शेष जीवन काटना ॥

दाल में कुछ काला है ...

जो खोजता हू ,वह मिलता नहीं
जो फटा है ,वह सिलता नहीं
रिश्तों की काज में , दोस्ती का बटन
लगा लेता हू ,तो खोलता नहीं ॥

मंहगाई बढ़ गयी ,तो घटती नहीं
इश्क लग गयी ,तो छूटती नहीं
ये कैसी दुनियां हो चली भाई
मछली जल बिन तड़पती नहीं ॥

अँधेरा अब रौशनी से डरता नहीं
खा -खा कर भी , पेट अब भरता नहीं
जमा खोरी की आदत जबसे लगी है
गरीबी देख दिल अब दहलता नहीं ॥

इज्ज़त लुटने की खबर से
दिल अब घबराता नहीं
साठ की उम्र में शादी कर लूँगा
क्योकि आदमी अब सठियाता नहीं ॥

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

समर्थन मूल्य

समर्थन मूल्य पर अनाज बेचकर , किसान हुए बेहाल
उत्पादों का स्वं मूल्य लगाकर , पूंजीपति हुए निहाल ॥

अरहर दाल ९० रूपये किलो , बोल- बोलकर लोग खूब चिल्लाते
५ रूपये के टैबलेट को , पूंजीपति १०० रूपये का मूल्य दिखाते ॥

मंहगाई का दीया दिखाकर , पूंजीपति खूब कमाते
कड़े -कड़े नोटों की माला , नेताओं को पहनाते ॥

चुनाव के वक़्त दिया था , नेताओं को चंदा
जी भर कर दाम बढाओ , कर लो गोरखधंधा ॥

दवा, सीमेंट और लोहा पर , सरकार की कुछ नहीं चलती
मंहगाई -मंहगाई बोलकर ,किसानों की छाती पर दाल दलती ॥

इन्ही कारणों से देश में , अमीरी -गरीवी की खाई बढ़ रही है
धीरे -धीरे अब , मजदूर -किसानों की त्योरी भी चढ़ रही है ॥

फिर एक दिन ...

ताजे फल , ताज़ी सब्जियां
बनाती है , स्वस्थ खून
ताजे विचार , ताज़ी सोच
बनाती है , स्वस्थ रिश्ते ॥

स्वस्थ रिश्ते
चढ़ाती है सीढिया
सफलता की ॥
और फिर
चंचल बनते है हम
लक्ष्मी बरसने लगती है ॥

फिर एक दिन ....
हमें जाना होता है
शाश्वत सत्य की दुनियां में
साथ नहीं जाती लक्ष्मी ॥

दुनियां .....
उसे और लक्ष्मी को भूल जाती है
याद रहती है
सिर्फ ...उसके द्वारा बनाये गए
स्वस्थ रिश्ते ॥

बुधवार, 7 जुलाई 2010

नई लीक पर चलने का दुः साहस

नई लीक पर चलने का मतलब....
एक अलग सोच
एक अलग पहचान
अपनी धुन में मगन
एक सांड जैसा चरित्र ॥

विरोध होगा
निरादर होगा
न जाने , सहने होंगे
कितने ताने ॥
मंजिल मिलेगी
तो फूल
नहीं तो धुल ॥

तो क्या
नई लीक पर नहीं चलूं
गैलेलियो की तरह
खतरा तो है
विरोध का ॥

अगर इतिहास बनाना है
तो चलना ही होगा
नई लीक पर ॥

मेरी मानिए
तमसो माँ ज्योतिगमय
कहते रहिये
और नई लीक पर आगे बढते रहिये ॥


















कहां है महगाई

महानगर में
सड़क के किनारे खड़ा था
१२ रूपये प्रति दर्जन की दर से
केले लेने पर अड़ा था ॥

कार से एक सज्जन आये
दुकानदार ने
२५ रूपये प्रति दर्जन की दर से
सब केले बेच दिए .... ॥

मैं बेवश था
सोच रहा था ....
कहां है महँगाई
खोज ही लिया मैं
महँगाई मेरे पर्स में रहती है
और जब
पर्स नोटों से भरी हो
मंहगाई पास भी नहीं फटकती

मेरी कविता की चाहत

मैं गीत नहीं हू केवल
विरह -मिलन का संगम हू
बहती नदियां हू भावों का
देवों के चरणों का अर्पण हू ॥

बिन नयनों की देख रहे जो
उनकी आँख मैं बन जाउगी
हर पल पीड़ित मूक -वधिर की
मुखर भाषा मैं बन जाउगी ॥

जो निराश पड़े है, उनके मन में
आशा का दीप जला दूंगी
माँ नहीं है , जिन बच्चों की
लोरी भी गा मैं सुना दूंगी ॥

खोल दूंगी , मन के दरवाजे
जो कब से बन्द पड़े है
राह दिखा दूंगी मैं उनको
जो नीच , अधम और गरल है ॥

चमचमाते तलवारों से
मुझे कोई डरा नहीं सकता
जब भाव समझ ले मेरा
तो उन्हें कोई लड़ा नहीं सकता ॥

मैं बन जाऊ , मजदूर की लाठी
और हल -बैलों का जोड़ा
किसानों को खाद -बीज पंहुचा दू
बन महाराणा प्रताप का घोडा ॥

लाल बहादुर शास्त्री

भारत में
जिस तरह
कीचड़ में कमल
खिलता है .....
उसी तरह
"गुदरी से लाल "
निकलता है ॥

जय -जवान ,जय -किसान
का नारा दिया आपने
आप अच्छे इंसान थे
इनके लिए
आप भगवान थे ॥

मैं पूंजीपति हू

बिजली आयी तो सही
गयी तो सही
मुझे क्या
मेरे पास एक जेनेरेटर है
मैं पूंजीपति हू ॥

वर्षा हो या न हो
मुझे क्या
आप अपनी पसीने सुखाइए
हाथ पंखा झलते रहिये
मेरे पास ऐ ० सी ० है
मैं पूंजीपति हू ॥

पीने के पानी की चिंता
आप कीजिये
नल की टोंटी खोल
घंटों बैठे रहिये
पानी के इंतज़ार में
मुझे क्या
पेय -जल बनाने की
दो फैक्ट्री है मेरे पास
मैं पूंजीपति हू ॥

आप टकटकी लगाइए
मानसून की बादलों पर
मुझे क्या
खाद्य -सामग्री तो मैं
विदेश से मंगवा लूँगा
मैं पूंजीपति हू ॥

ईट -भट्टे के मजदूर

वे इटे थापते है
बाल-बच्चो सहित
वर्षा ने कहर बरपाया
पानी ...
सर्वत्र पानी
वे वेरोजगार है आज से ॥

इधर सरकार की बेरोजगारी
दूर करने की योजना
मनरेगा भी बंद हो गयी
२८ जून के बाद
हर साल की तरह ॥

मगर उनके बच्चो का
सुनहला दिन लौट आया है
केकड़ा पकड़ना
और ....दिन भर
खेतों में /तालाबों में
मछली मारना ॥

शाम को
माँ को मछली देना
और रात के खाने में
मछली -चावल का इंतज़ार॥


उन बच्चों को नहीं पता
उसकी माँ
चावल कहां से लाएगी ॥

वोटिंग मशीन में एक और बटन होना चाहिए

प्रजातंत्र दुनिया में शासन के अच्छे विकल्प के रूप में देखा जाता है । यह एक ऐसा शासन है ,जिसमे बिना खून -खराबे के सत्ता परिवर्तन होता है ॥ मैं एक सरकारी कर्मचारी हू और मैंने चुनावों में पीठासीन पदाधिकारी से लेकर सेक्टर मजिस्टेट तक की भूमिका निभायी है ॥ जैसा कि चुनाव आयोग का आदेश होता है ,हमलोगों को गाँव में जाकर ,लोगों से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए कहा जाता है । इसी क्रम में मैं लोक -सभा चुनाव २००९ में कई गांवों में गया । मैंने लोगों से बिना डर के मताधिकार का प्रयोग करने को कहा । बात -चीत के क्रम में बहुत से लोगो ने मुझे कहा ,' मुझे एक भी उम्मीदवार पसंद नहीं है '।

इसी पर मंथन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पंहुचा हू कि इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन में एक "इनमे से कोई नहीं " लिखा हुआ बटन होना चाहिए । वैसे लोग जिन्हें कोई भी उम्मीदवार पसंद न हो वे इस बटन प्रयोग करें । अगर " इनमे से कोई नहीं " के श्रेणी में प्राप्त मत या वोट कुल प्राप्त वोट के ५१ % या जीतने वाले उम्मीदवार के मतों से ज्यादा हो तो उस क्षेस्त्र का चुनाव रद्द कर देना चाहिए और फिर नए सिरे से चुनाव कराना चाहिए ॥
इससे यह भी फायदा होगा कि राजनितिक पार्टिया बाहुबलियों या आपराधिक किस्म के उम्मीदवारों को टिकट देना बंद कर देंगी ।
मेरा विचार कैसा है ..आप सभी मित्रो का COMMENT अपेचित है .....

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

बोतल

जन्म हुआ उसका
माँ खुश हुई
उसने बच्चे को
बोतल का दूध पिलाया ॥

बच्चा स्कूल जाने लगा
माँ ने
बोतल में पानी भर कर दी ॥


माँ नाराज हुई
जब बच्चा बड़ा होकर
जब बोतल पर बोतल पीने लगा ॥

और अब ॥
वह बच्चा
सच में बोतल बन गया ॥

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

वर्षा एक --रूप अनेक

जयेष्ट की गर्मी से झुलसी
धरती को
वर्षा की पहली बूंदों से
ख़ुशी मिली
मानो .....
लंका दहन के बाद
हनुमान जी कूदें हो
समुद्र में ॥

सूर्य के अंगारे झेल रही
वर्षा की पहली बूंदों से
किसानों को
ख़ुशी मिली
मानो .....
रावण -वध के बाद
रामचंद्र जानकी सहित
लौटे हो अयोध्या ॥

वर्षा की पहली बूंदें
धरती पर जैसे गिरी
माँ ने .....
गाय के गोबर से बने
सारे उपले
घर के अन्दर कर ली ॥

वर्षा की पहली बूंदें
जैसे गिरी
चीटियों के बिल के मुह पर
उनका कुनवा
निकल पड़ा अन्डो के साथ
सुरक्चित स्थान की और ॥

वर्षा की पहली बूंदों
के साथ
खेतिहर मजदूर
खेतों को वापस आने लगे
मिल -मालिकों के चेहरे बिगड़ने लगे
क्योकि
मजदूरों को ज्यादा पैसे
देने होंगें
उन्हें रोकने के लिए ॥

वर्षा की पहली बूंदों से
इटे बननी बंद हो गयी
इधर मजदूर बेकार हुए
उधर ...
मालिकों ने
ईट के दाम बढ़ा दिए ॥























ओ ..मॉनसून के बादलों

ओ ! मॉनसून के बादलों
क्या तुम्हें भी लत लग गयी है
घूस लेने की
सरकारी नौकर शाहों की तरह ॥
बिना घूस लिए
तुम ठीक से नहीं बरसोगी क्या ॥

ओ ! मॉनसून के बादलो
क्या तुम्हें भी
लत लग गयी लेट आने की
हमारे नेताओ की तरह ॥
अब क्या
तुम्हे भी वोट चाहिए ॥


ओ ! मॉनसून के बादलो
क्या तुम्हें पता है
मेरे देश की अर्थव्यवस्था की
नीव हो तुम
बरसना तो होगा तुम्हें
ताकि ......
हर हाथ को काम मिल सके ॥

मैं कवि हू

मैं मछुआरा नहीं
जो नायलोन से बने जाल से
मछली पकड़ लू
मैं कवि हू
शब्दों के बने जाल से
भाव पकड़ता हू ॥

मैं राम नहीं
जो अपने बाण से
समुद्र सूखा दू
मैं कवि हू
नश्तर की तरह चुभने वाला
व्यंग बाण चलाता हू ॥

मैं माली नहीं
जो फूलों को तोड़कर
एक माला बना लू
मैं कवि हू
हर दिल में नित्य
हास्य -कमल खिलाता हू ॥

मरने वालों की खबरें

प्रस्तुत कविता उत्तरी बिहार के भौगोलिक स्थिति के मद्देनज़र लिखी गयी है ।


बरसा का मौसम
बाढ़ का मौसम
अब रोज उल्टेगे नाव
अखबारों में हम रोज पढ़ेगें
डूब कर
मरने वालों की खबरें ॥

बरसा का मौसम
दलदल का मौसम
अब रोज गिरेगें
बिजली के पोल और
टूटेगे बिजली के तार
अखबारों में हम रोज पढ़ेगें
करंट लगने से
मरने वालों की खबरें


बरसा का मौसम
सांप का बिलों से
निकलने का मौसम
अखबारों में हम रोज पढ़ेगें
साँप के काटने से
मरने वालों की खबरें

बरसा का मौसम
बीमारियो का मौसम
अस्पताल भर जायेगें
रोगियो से
अखबारों में हम रोज पढ़ेगें
कै- दस्त -डायरिया से
मरने वालों की खबरें

बरसा का मौसम
आंधी -तूफान का मौसम
अब रोज उड़ेगे ...
गरीवो के घर का छप्पर
गिरेगे कच्चे मकान
अखबारों में हम रोज पढ़ेगें
दीवालों से दब कर
मरने वालों की खबरें
















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