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सोमवार, 12 जुलाई 2010

मेरे प्रिय !! तुम क्या नहीं कर सकती

अपनी ओठों के चमच्च से
अतीत का शरबत
पिला दो , प्रिय !!
वर्तमान का कड़वा रस
मीठा हो जाएगा ॥


अपनी इन्द्रधनुषी नयनो का
नशीली कटार
चला दो , प्रिय !!
महंगाई की सुरसा का
वध हो जाएगा ॥


अपनी मोरनी सी कमर
और आषाढ़ की जुल्फें
लचका दो , प्रिय !!
मॉनसून को भी पसीना
आ जाएगा ॥


अपनी रसबेरी सी बातें
और मस्तानी मुस्कान
फैला दो , प्रिय !!
कैक्टस में भी खुशबु
आ जाएगा ॥

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