followers

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

फूलों के बीच तुम्हारा बैठना

सब कहते थे....फूल जैसी सुन्दर हो तुम
मुझे विश्वास ही नहीं होता था
पर उस दिन ...
जब तुम
बगीचे में बैठकर
फूलों से बातें कर रही थी
मैं तुम्हें ढूंढता रहा
तुम मिली नहीं ॥


तुम मुस्कुराई होगी
मुझे फूलों के मुस्कुराने का भ्रम हुआ होगा
तुम हंसी होगी
मुझे कलियों के चटखने का भ्रम हुआ होगा
तुमने कंगन हिलाया होगा
मुझे भौरे के गुंजन का भ्रम हुआ होगा

पर जब तुमने आवाज लगाईं
मैं ...
तुम्हें निर्निमेष देखता रहा
फूलों के बीच बैठ कर
"फूलों की रानी "
लग रही तुम ॥

2 टिप्‍पणियां:

मेरे बारे में